- Hindi News
- अपराध
- आलोक का झूठा लोक, 7 करोड़ मनी लॉन्ड्रिंग केस में हाईकोर्ट से झटका! फिर भी झूठा हलफनामा देकर लिया प्र...
आलोक का झूठा लोक, 7 करोड़ मनी लॉन्ड्रिंग केस में हाईकोर्ट से झटका! फिर भी झूठा हलफनामा देकर लिया प्रमोशन
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने जल संसाधन विभाग के पांच इंजीनियरों को 7 करोड़ रुपये की मनी लॉन्ड्रिंग के पुराने मामले में कोई राहत देने से इनकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने 17 जून 2022 को दिए अपने अहम फैसले में साफ कर दिया था कि सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद PMLA (मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम) के तहत मुकदमा चलाने के लिए सरकारी स्वीकृति (Sanction) जरूरी नहीं है।
लेकिन इस बड़े कानूनी झटके के बाद भी, मामले के मुख्य आरोपी कार्यपालन अभियंता अलोक कुमार अग्रवाल ने गंभीर कूट रचना और हेराफेरी करते हुए सरकारी विभाग से प्रमोशन प्राप्त कर लिया है। सूत्रों के अनुसार, अग्रवाल ने झूठा हलफनामा (एफिडेविट) पेश कर यह जानकारी छिपाई कि उनके खिलाफ EOW-ACB कोर्ट में मनी लॉन्ड्रिंग का मामला लंबित है, और इस आधार पर पदोन्नति हासिल कर ली।
क्या है 7 करोड़ की अवैध कमाई का खेल?
यह पूरा मामला अलोक कुमार अग्रवाल पर लगे भ्रष्टाचार और अवैध संपत्ति अर्जित करने के आरोपों से जुड़ा है। आरोप है कि अग्रवाल ने टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी कर करोड़ों रुपये कमाए थे।
जांच के दौरान, आलोक अग्रवाल के अधीनस्थ पांच इंजीनियरों विनोद मालेवार, अब्रार बेग, विजय कुमार सिंह, गोविंद देवांगन और बी.डी.एस. नरवरिया के घरों से लगभग 7 करोड़ रुपये नकद बरामद हुए थे। ED का कहना है कि यह धन भ्रष्टाचार से अर्जित अवैध संपत्ति था, जिसे छिपाने में इन अभियंताओं ने मदद की थी।
हाईकोर्ट में इंजीनियरों के तर्क पर ED का पलटवार
इंजीनियरों का दावा: इन अभियंताओं ने कोर्ट में कहा था कि जब्त 7 करोड़ रुपये अग्रवाल के थे, जिसे उन्होंने दबाव और धमकी के कारण अपने पास रखा। उनका मुख्य तर्क था कि सरकारी कर्मचारी होने के नाते उन पर केस चलाने से पहले सरकारी स्वीकृति अनिवार्य है।
कोर्ट ने किया खारिज
जस्टिस गौतम चौर्डिया की एकलपीठ ने 2022 में इन तर्कों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने साफ कहा कि PMLA कानून में मुकदमा चलाने के लिए किसी सरकारी स्वीकृति की जरूरत नहीं होती।
हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद लिया प्रमोशन, सरकारी तंत्र पर सवालकोर्ट के आदेश से यह साफ हो गया था कि इन इंजीनियरों के खिलाफ निचली अदालत में ट्रायल जारी रहेगा। इसके बावजूद, मुख्य आरोपी अलोक कुमार अग्रवाल ने सरकारी तंत्र को धोखा देते हुए प्रमोशन पा लिया।
जब हाईकोर्ट ने 2022 में ही मामले की गंभीरता पर मुहर लगा दी थी और मामला EOW-ACB न्यायालय में लंबित था, तब विभागीय जांच में इस तथ्य को क्यों छिपाया गया? या फिर जानबूझकर लंबित केस की जानकारी पर आँखें बंद कर ली गईं? झूठा हलफनामा पेश करके पदोन्नति लेना न्यायपालिका की अवमानना के साथ-साथ सरकारी सेवा नियमों का गंभीर उल्लंघन माना जाता है। इस घटना से सरकारी कर्मचारियों के बीच यह संदेश गया है कि गंभीर आरोप लगने और कोर्ट में केस लंबित होने के बावजूद गलत जानकारी देकर प्रमोशन लिया जा सकता है।
