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पं रविशंकर शुक्ल विवि में बड़ा घोटाला, पिता की बजाय पति की जाति पर नौकरी, 18 लोग जांच के घेरे में
रायपुर । पं रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में नियमों की धज्जियां उड़ाकर बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े की खबर है। यहां 18 लोगों की फर्जी प्रमाण पत्रों से नौकरी करने की गंभीर शिकायतें सामने आई हैं। आरोप है कि नियुक्ति के लिए विश्वविद्यालय के अपने ही नियमों, विज्ञापन शतों और आयु मानदंडों का खुला उल्लंघन किया गया है। प्रमाण पत्र सत्यापन समिति अब इस पूरे मामले की जांच कर रही है।
सूचना के अधिकार आरटीआई से मिले कागजों के अनुसार, कई ऐसे लोग हैं जिनकी उम्र 35 वर्ष से अधिक है। इन्हें भी आयु सीमा के दायरे में बता कर नियुक्ति दे दी गई है। किसी ने अस्थाई जाति प्रमाण पत्र लगाकर स्थाई नौकरी ह थिया ली। इसके बाद से स्थाई प्रमाण पत्र जमा नहीं किया गया।
पिता की बजाय पति की जाति का प्रमाण पत्र
नियमानुसार जाति प्रमाण पत्र पिता के जाति के हिसाब से बनता है। लेकिन कई ऐसे लोग हैं जो पति के नाम पर जाति प्रमाण पत्र बनवा कर नौकरी कर रहे हैं। हाल ही में 18 लोगों के खिलाफ कुलपति के पास दोबारा शिकायतें की गईं हैं। दस्तावेजों में मामला पूरी तरह से फर्जी साबित हो रहा है। इसके बाद से चयनकर्ताओं पर भी कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं।
शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि विवि में कई ऐसे कंडीडेट हैं जिनकी नियुक्ति अनारक्षित कोटे से हुई है। लेकिन विवि की ओर से क्षेत्रीय उच्च शिक्षा कार्यालय, राज्यपाल कार्यालय, यूजीसी और एनएएसी जैसे उच्च संस्थानों को व्यवस्थित रूप से गलत जानकारी भेजी गई है कि उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में नियुक्त किया गया है।
37 साल के व्यक्ति को 35 की सीमा में दी नौकरी
तकनीकी दस्तावेजों के परीक्षण में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। विश्वविद्यालय में टेक्नीशियन ग्रेड 2 के पद पर बालगोविंद नायक नामक कर्मचारी की नियुक्ति से जुड़े दस्तावेजों की जांच हुई। विश्वविद्यालय के विज्ञापन में सामान्य वर्ग के लिए अधिकतम आयु सीमा 35 वर्ष निर्धारित थी। लेकिन बालगोविंद नायक की जन्मतिथि 15.07.1974 है। इस आधार पर वे विज्ञापन तिथि को 37 वर्ष 5 माह 13 दिन के थे। वे स्पष्ट रूप से अपात्र थे, फिर भी उनकी नियुक्ति अनारक्षित वर्ग में कर दी गई।
वहीं, मंजूषा डाली दयाल के संबंध में आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार इनकी जाति से जुड़ा प्रमाण पत्र विवि में अब तक जमा नहीं किया जा सका है। लेकिन ये कई सालों से विवि में नौकरी कर रहीं हैं।
जांच को वर्षों तक रोका गया
शिकायतों के बाद जांच को वर्षों तक रोककर रखना और नोटशीटों में गलत जानकारी देने जैसी अनियमितताएं के बाद अब प्रबंधन व जांच समिति पर भी कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। आखिरकार लंबे समय चल रही जांच अब तक पूरी क्यों नहीं हो पाई है।इस पूरे मामले पर कुलपति सच्चिदानंद शुक्ल ने बताया कि जाति प्रमाण पत्र को लेकर जिनकी शिकायत है, उनका वेरिफिकेशन समिति कर रही है। रिपोर्ट आने पर कार्रवाई की जाएगी।
