बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: पत्नी को है पति को नपुंसक कहने का अधिकार, मानहानि की याचिक खारिज

बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: पत्नी को है पति को नपुंसक कहने का अधिकार, मानहानि की याचिक खारिज

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि वैवाहिक विवाद के दौरान पत्नी द्वारा पति को 'नपुंसक' कहना मानहानि नहीं है। यह टिप्पणी IPC की धारा 499 के अपवाद के तहत संरक्षित मानी जाएगी।

मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने वैवाहिक विवादों से जुड़े एक बेहद अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि पत्नी अगर तलाक या भरण-पोषण के मुकदमे के दौरान अपने पति को "नपुंसक" कहती है, तो इसे आपराधिक मानहानि नहीं माना जाएगा। अदालत ने कहा कि ऐसे आरोप भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के नौवें अपवाद के अंतर्गत संरक्षित होते हैं। न्यायमूर्ति एस.एम. मोडक ने कहा, "जब कोई मुकदमा पति-पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद से संबंधित होता है, तो पत्नी को अपने पक्ष में ऐसे आरोप लगाने का अधिकार है।"  अदालत ने यह भी कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत जब कोई पत्नी मानसिक उत्पीड़न या उपेक्षा को साबित करना चाहती है, तब नपुंसकता जैसे आरोप प्रासंगिक और आवश्यक माने जाते हैं।

आपको बता दें कि यह मामला एक पति द्वारा अपनी पत्नी के खिलाफ मानहानि की शिकायत से जुड़ा है। पति ने आरोप लगाया कि पत्नी ने तलाक की याचिका, भरण-पोषण की याचिका और एक एफआईआर में उनकी यौन अक्षमता के बारे में अपमानजनक और झूठे आरोप लगाए हैं। हालांकि, अप्रैल 2023 में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने पति की शिकायत को धारा 203 CrPC के तहत खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आरोप वैवाहिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं और इसमें कोई आपराधिक भयभीत करने का प्रमाण नहीं मिला। बाद में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, ग्रेटर मुंबई ने अप्रैल 2024 में उस निर्णय को पलटते हुए मजिस्ट्रेट को धारा 202 CrPC के तहत आगे की जांच का आदेश दिया।

पति की शिकायत को पुनः खोलने के सत्र न्यायालय के आदेश के खिलाफ पत्नी, उनके पिता और भाई ने बॉम्बे उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि ये आरोप न्यायिक कार्यवाही में लगाए गए और इसलिए IPC की धारा 499 के अपवादों के तहत संरक्षित हैं। सत्र न्यायालय ने जो कारण बताए, वे पति की पुनरीक्षण याचिका में नहीं थे। मानसिक उत्पीड़न और उपेक्षा को साबित करने के लिए आरोप प्रासंगिक थे। पति ने कहा कि आरोप गलत मंशा से लगाए गए और सार्वजनिक रिकॉर्ड का हिस्सा बन जाने से प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची। उन्होंने कहा कि उन्हें शिकायत दायर करने की सीमित अवधि खत्म होने से पहले ही कार्यवाही शुरू करनी पड़ी।

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बॉम्बे हाईकोर्ट ने सत्र न्यायालय का आदेश खारिज कर दिया। पति की मानहानि की शिकायत को खारिज करने के मजिस्ट्रेट के फैसले को बहाल कर दिया। न्यायालय ने कहा, "इन आरोपों का तलाक और भरण-पोषण मामलों से घनिष्ठ संबंध है और यह कानून द्वारा संरक्षित हैं। जब मजिस्ट्रेट ने शिकायत इस आधार पर खारिज की कि नपुंसकता तलाक का आधार है, तब पुनरीक्षण अदालत को इस निष्कर्ष के विरुद्ध कुछ प्रारंभिक टिप्पणियां करनी चाहिए थीं। ऐसा कोई आधार नहीं दिया गया।"  

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