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जस्टिस यशवंत वर्मा केस: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मुख्य न्यायाधीश सिर्फ डाकघर नहीं होते; जांच कमेटी पर सवाल उठाने से बेंच नाराज
नई दिल्ली। जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की सिफारिश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश सिर्फ एक डाकघर नहीं होते, उनकी देश के प्रति कुछ जिम्मेदारियां होती हैं। यह टिप्पणी जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने तब की, जब वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने एक इन हाउस जांच कमेटी की रिपोर्ट पर सवाल उठाए थे। इस कमेटी ने जस्टिस वर्मा की भूमिका को गलत पाया था, जिसके आधार पर पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने महाभियोग की सिफारिश की थी।
क्यों भड़का सुप्रीम कोर्ट?
बुधवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस वर्मा का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी भी जज के खिलाफ आंतरिक जांच के आधार पर महाभियोग की सिफारिश करने का कोई प्रावधान नहीं है। इस तरह उन्होंने पूर्व मुख्य न्यायाधीश के उस फैसले पर सवाल उठाया, जिसमें तीन जजों की कमेटी गठित की गई थी।
इस पर जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कड़ा जवाब दिया। बेंच ने कहा कि इन हाउस जांच की व्यवस्था 1999 में आई थी और उसी के आधार पर कार्रवाई की जाती है। बेंच ने साफ किया कि मुख्य न्यायाधीश कोई पोस्ट ऑफिस नहीं हैं। अगर उनके पास कोई ऐसी जानकारी आती है, जिससे कुछ गड़बड़ी का संदेह होता है, तो वह राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को सूचित कर सकते हैं।
सिब्बल की दलीलें और बेंच का जवाब
जब कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर बेंच ने पहले ही मन बना लिया है, तो क्या किया जाए, तो बेंच ने जवाब दिया कि हम चुप रहकर आपको दलीलें देने की अनुमति दे सकते हैं, लेकिन ऐसा करना सही नहीं होगा। सिब्बल ने यह भी तर्क दिया कि जिस तरह से जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाया जा रहा है, वह एक गलत उदाहरण पेश करेगा। इस पर बेंच ने उन्हें बीच में रोकते हुए कहा कि आप सिर्फ इस बात पर बहस करें कि क्या जांच कमेटी असंवैधानिक थी या नहीं।
आखिर में बेंच ने जस्टिस यशवंत वर्मा की उस याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है, जिसमें उन्होंने जांच पैनल को अवैध घोषित करने की मांग की थी।
