- Hindi News
- कानून
- पश्चिम बंगाल के मजदूरों को बांग्लादेशी बताकर जेल में डालने का मामला: हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार से
पश्चिम बंगाल के मजदूरों को बांग्लादेशी बताकर जेल में डालने का मामला: हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार से मांगा जवाब
छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में पश्चिम बंगाल के 12 मजदूरों को कथित तौर पर बांग्लादेशी बताकर गिरफ्तार किया गया था। इस मामले को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। मजदूरों की तरफ से दायर याचिका में उनके खिलाफ की गई कार्रवाई को रद्द करने के साथ-साथ एक लाख रुपए प्रति व्यक्ति मुआवजे की मांग भी की गई है। इसके अलावा, याचिका में छत्तीसगढ़ में रोजगार के दौरान मजदूरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की भी मांग की गई है। कोर्ट ने सरकार को दो हफ्ते में अपना जवाब पेश करने का निर्देश दिया है, जिसके बाद मामले की अगली सुनवाई होगी।
ये है पूरा मामला
29 जून 2025 को पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर और मुर्शिदाबाद से 12 निर्माण श्रमिक कोंडागांव में एक स्कूल के निर्माण कार्य के लिए आए थे। 12 जुलाई को कोंडागांव पुलिस ने इन सभी मजदूरों को निर्माण स्थल से पकड़ लिया। आरोप है कि साइबर सेल थाने में इन मजदूरों के साथ मारपीट और दुर्व्यवहार किया गया। आधार कार्ड दिखाने के बावजूद भी पुलिस ने उन्हें लगातार बांग्लादेशी कहकर संबोधित किया। इसके बाद 12 और 13 जुलाई की दरमियानी रात उन्हें जगदलपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया।
अगले दिन, 13 जुलाई को जब यह खबर फैली तो पश्चिम बंगाल में उनके परिजनों ने सांसद महुआ मित्रा से संपर्क किया। पश्चिम बंगाल पुलिस ने इन सभी मजदूरों के भारतीय नागरिक होने की रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसके बाद अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव और रजनी सोरेन ने हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। हालांकि, याचिका पर सुनवाई होने से पहले ही कोंडागांव एसडीएम के आदेश पर 14 जुलाई को इन सभी मजदूरों को रिहा कर दिया गया। रिहाई के बाद भी पुलिस ने कथित तौर पर उन्हें धमकाकर छत्तीसगढ़ छोड़ने पर मजबूर कर दिया, जिससे वे अपनी रोजी-रोटी गंवाकर वापस लौट गए।
मजदूरों ने लगाई थी याचिका
7 अगस्त 2025 को महबूब शेख और 11 अन्य मजदूरों ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर कर उनके खिलाफ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 128 के तहत की गई कार्रवाई को रद्द करने की मांग की। याचिका में कहा गया है कि वे सभी भारतीय नागरिक हैं और उन्हें देश में कहीं भी काम करने का संवैधानिक अधिकार है। लगभग 12 दिनों तक काम करने के दौरान उन्होंने न तो अपनी पहचान छिपाई और न ही कोई अपराध किया, फिर भी उन्हें प्रताड़ित किया गया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव और रजनी सोरेन ने बहस की। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी डी गुरु की खंडपीठ ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार से दो हफ्ते के भीतर जवाब मांगा है। इसके बाद याचिकाकर्ता एक हफ्ते में प्रतिउत्तर देंगे, और फिर मामले की अगली सुनवाई होगी।
