रेप से जन्मी बेटी के जैविक पिता की तलाश: हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की, 2 साल बाद डीएनए टेस्ट की मांग

बिलासपुर. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में यौन शोषण से जन्मी एक नाबालिग बच्ची के जैविक पिता को स्थापित करने के लिए दायर याचिका खारिज कर दी है। याचिका में दो अन्य लोगों का डीएनए प्रोफाइलिंग कराने और उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की गई थी। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जब मुख्य मामले का निराकरण हो चुका है और फैसला सुनाए जाने के दो साल बाद यह याचिका दायर की गई है, तो इस चरण में राहत नहीं दी जा सकती।

पीड़िता की बेटी के जन्म के बाद हुआ था केस दर्ज

सरगुजा क्षेत्र की रहने वाली पीड़िता ने यह याचिका हाईकोर्ट में दाखिल की थी। पीड़िता ने बताया कि 12 मई, 2018 को उसके साथ दो अन्य आरोपियों ने मिलकर गंभीर यौन उत्पीड़न किया था, जिसके बाद 5 दिसंबर, 2018 को उसने एक बच्ची को जन्म दिया। इसके बाद उसके पिता ने 19 जून, 2019 को महिला थाने में केस दर्ज कराया था। इस मामले में पोक्सो एक्ट की धाराएं भी लगाई गई थीं। 26 जुलाई, 2019 को पीड़िता का बयान भी दर्ज हुआ, लेकिन रिपोर्ट में सिर्फ एक ही आरोपी का नाम था।

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सुनवाई के बाद कोर्ट ने मुख्य आरोपी को किया था बरी

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इस मामले की सुनवाई निचली अदालत में 8 जनवरी, 2020 से 7 अगस्त, 2023 तक चली, जिसमें 11 गवाहों से पूछताछ हुई। 18 अगस्त, 2023 को निचली अदालत ने फैसला सुनाया और एक ही आरोपी का नाम होने पर उसे दोषमुक्त कर दिया। इसके बाद निचली अदालत ने नियमानुसार पीड़िता को मुआवजा दिलाने के लिए नालसा को केस भेजा था। इस फैसले के करीब दो साल बाद पीड़िता ने दो अन्य लोगों को आरोपी बनाने और डीएनए टेस्ट कराकर उनके खिलाफ नए सिरे से मुकदमा चलाने की मांग की थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।

हाईकोर्ट ने कहा समय रहते याचिका क्यों नहीं लगाई गई

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जब चार्जशीट दाखिल हुई, तब या सुनवाई के दौरान पीड़िता ने दो अन्य आरोपियों के नाम जोड़े जाने पर कोई सवाल नहीं उठाया। निचली अदालत में मुकदमा 18 अगस्त, 2023 को समाप्त हो चुका है और इस फैसले को उच्च न्यायालय में भी चुनौती नहीं दी गई। कोर्ट ने कहा कि जब मामला खत्म हो चुका है और लगभग दो साल बीत चुके हैं, तो इस स्तर पर याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत नहीं दी जा सकती। अगर याचिकाकर्ता दो अन्य आरोपियों को शामिल करवाना चाहती थी, तो उसे सही समय पर उचित फोरम से संपर्क करना चाहिए था। इसी आधार पर हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।

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