अरे ये क्या...दागी का सम्मान, बिलासपुर हाईकोर्ट के एक फैसले से सिस्टम पर उठा सवाल 

सरकार का सूचना तंत्र फेल

बिलासपुर। 7 अगस्त का दिन छत्तीसगढ़ के कानूनी इतिहास में एक ऐसे फैसले के लिए याद किया जाएगा, जिसने उन लोगो की उम्मीदों पर चोट किया है जो लोग न्याय पालिका पर अटूट विश्वास रखते है। 

ये वो दिन है जब हाई कोर्ट ने तीन अधिवक्ताओं को वरिष्ठ अधिवक्ता (सीनियर एडवोकेट) का दर्जा दिया। यह सम्मान उन अधिवक्ताओं को मिलता है जिन्होंने अपने पेशे में असाधारण योग्यता और ईमानदारी साबित की हो। 

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लेकिन इस बार, इस सूची में एक ऐसा नाम शामिल है जो कथित तौर पर ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) की चार्जशीट में दर्ज है। इस खबर ने सभी वकीलों और आम लोगों को हैरान कर दिया है 

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एक युवा वकील ने अपनी पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर बताया, हम सालों तक मेहनत करते हैं, ईमानदारी से काम करते हैं, ताकि एक दिन हमें भी यह सम्मान मिले। लेकिन जिस व्यक्ति पर गंभीर आरोप हैं उसे यह सम्मान मिल जाता है, तो हमारा मनोबल टूट जाता है। यह सिर्फ एक नाम नहीं है, यह हमारे सपनों और हमारी मेहनत पर गहरी चोट है। 

अधिवक्ता अधिनियम 2018 /नियम 7 के तहत लिया गया निर्णय.....

ये फैसला अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 16 और छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट (वरिष्ठ अधिवक्ताओं का पदनाम) नियम 2018 के नियम 7 के तहत लिया गया है। पूर्ण न्यायालय (Full Court) ने इस पर मुहर लगाई थी। आम तौर पर, पदनाम से पहले बार काउंसिल, एलआईबी और एसबी से जानकारी मांगी जाती है। लेकिन इस मामले में या तो इन जांचों को नजरअंदाज कर दिया गया, या फिर सूचना तंत्र पूरी तरह से विफल रहा।

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जानकार इस निर्णय को पूरे सिस्टम की नाकामी बता रहे हैं । लोगों का कहना है कि 

सरकार का खुफिया तंत्र क्या कर रहा था? क्या उन्हें पता नहीं था कि जिस व्यक्ति को सम्मानित किया जा रहा है, उसका नाम एक गंभीर मामले में आ चुका है?

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