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क्या होता है ऑफिस चेयर सिंड्रोम, ये कैसे बिगाड़ रहा हड्डियों की शेप
ऑफिस चेयर सिंड्रोम लंबे समय तक एक ही पोज़िशन में बैठने से जुड़ी एक गंभीर समस्या है. आजकल अधिकांश लोग रोजाना 7-8 घंटे कुर्सी पर बैठकर कंप्यूटर पर काम करते हैं. इस दौरान शरीर का अधिकांश भार रीढ़, कूल्हों और पैरों की हड्डियों पर पड़ता है, जिससे उनका नैचुरल शेप और अलाइनमेंट धीरे-धीरे बदलने लगता है. लगातार बैठे रहने से मांसपेशियां कमजोर होती हैं, हड्डियों की डेंसिटी कम हो सकती है और जोड़ों पर दबाव बढ़ जाता है. यह समस्या अक्सर उन लोगों में देखी जाती है जिनकी जॉब डेस्क-बेस्ड होती है और जिनके दिनचर्या में फिजिकल एक्टिविटी बहुत कम होती है. शुरुआत में यह केवल अकड़न या हल्के दर्द जैसा लगता है, लेकिन समय के साथ यह स्पाइनल डिस्क की समस्या, स्लिप डिस्क या हड्डियों के असामान्य आकार का कारण भी बन सकता है.
रोजाना घंटों तक कुर्सी पर बैठे रहने से शरीर की मांसपेशियां और हड्डियां इम्बैलेंस हो जाती हैं. सबसे ज्यादा असर रीढ़ की हड्डी, गर्दन, कंधे और कूल्हों पर पड़ता है. लगातार झुककर या गलत पोज़िशन में बैठने से स्पाइनल कॉलम का नैचुरल कर्व बिगड़ सकता है, जिससे पीठ दर्द, स्लिप डिस्क और हड्डियों के शेप में बदलाव होने लगता है. इसके अलावा, लंबे समय तक बैठने से ब्लड सर्कुलेशन धीमा हो जाता है, खासकर पैरों में, जिससे नसों में सूजन और वैरिकोज़ वेन्स का खतरा बढ़ता है.
हड्डियों पर लगातार दबाव पड़ने से बोन डेंसिटी कम हो सकती है, जो आगे चलकर ऑस्टियोपोरोसिस का कारण बन सकती है. मांसपेशियों के कमजोर होने से जोड़ों की पकड़ ढीली हो जाती है, जिससे चाल-ढाल प्रभावित होती है और गिरने या चोट लगने की संभावना बढ़ जाती है. साथ ही, कम मूवमेंट के कारण कैलोरी बर्न कम होती है, जिससे वजन बढ़ना और मेटाबॉलिक डिसऑर्डर जैसे डायबिटीज और हाई BP का खतरा भी बढ़ सकता है.
8 घंटे बैठने से कैसे बदल रहा है हड्डियों का शेप?
डॉ. बताते हैं किजब हम लगातार 8 घंटे तक बैठते हैं, तो शरीर के कुछ हिस्सों पर हमेशा एक समान दबाव पड़ता है. इससे हड्डियां अपने नैचुरल शेप से धीरे-धीरे बदलने लगती हैं. ऐसे में रीढ़ की हड्डी का कर्व सीधा या अत्यधिक झुका हुआ हो सकता है, कूल्हों की हड्डियां बाहर की ओर फैल सकती हैं और घुटनों के जोड़ों का एंगल बदल सकता है. बच्चों और युवाओं में यह असर जल्दी दिख सकता है क्योंकि उनकी हड्डियां अभी विकास के दौर में होती हैं, जबकि बड़ों में यह धीरे-धीरे गंभीर समस्याओं का रूप लेता है.
कैसे करें बचाव?
- हर 30-40 मिनट में उठकर 2-3 मिनट टहलें या स्ट्रेचिंग करें.
- काम करते समय मॉनिटर आंखों के स्तर पर रखें और कुर्सी-टेबल की ऊंचाई सही रखें.
- रीढ़ को सपोर्ट देने वाली एर्गोनॉमिक चेयर का इस्तेमाल करें.
- बैठते समय पैरों को पूरी तरह जमीन पर टिकाकर रखें.
- रोजाना कम से कम 30 मिनट एक्सरसाइज या वॉक जरूर करें.
- पानी पीने के लिए बार-बार उठें, ताकि मूवमेंट बना रहे.
