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बिलासपुर रेल हादसे का तीसरा दिन: साइकोलॉजिकल टेस्ट में फेल लोको पायलट को सौंपी थी पैसेंजर ट्रेन की जिम्मेदारी
बिलासपुर। गेवरारोड-बिलासपुर रेल हादसे के तीसरे दिन एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है, जिसने एसईसीआर प्रबंधन को एक बार फिर कटघरे में खड़ा कर दिया है। मेमू पैसेंजर ट्रेन के लोको पायलट विद्या सागर प्रमोशन के दौरान साइकोलॉजिकल (मनोवैज्ञानिक) टेस्ट में फेल हो गए थे। नियमों के विपरीत उन्हें यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई, और उसी दिन यह दर्दनाक हादसा हो गया।
विपरीत परिस्थितियों में ही चलाने की थी मंजूरी
- मालगाड़ी के लोको पायलट को प्रमोशन के बाद पैसेंजर ट्रेन चलाने की जिम्मेदारी दी जाती है, जिसके लिए स्किल, मेडिकल और मनोवैज्ञानिक टेस्ट अनिवार्य होता है। इस टेस्ट में बौद्धिक क्षमता, मानसिक स्थिति और विपरीत परिस्थितियों में निर्णय लेने की क्षमता आदि जाँची जाती है।
- खुलासे के अनुसार, लोको पायलट विद्या सागर इस साइकोलॉजिकल टेस्ट में फेल हो गए थे।
- आदेश था कि मेमू ट्रेनों के संचालन की जिम्मेदारी केवल उन्हीं लोको पायलटों को दी जाए, जो एप्टीट्यूड टेस्ट में उपयुक्त पाए जाएं।
- टेस्ट पास नहीं करने वाले लोको पायलट को केवल गंभीर परिस्थितियों में ही असिस्टेंट लोको पायलट के साथ ट्रेन चलाने की जिम्मेदारी देनी थी।
महीने भर पहले ही मिली थी मेमू की जिम्मेदारी
हादसे के तीसरे दिन यह जानकारी सामने आई है कि विद्या सागर को महीने भर पहले ही प्रमोट कर पैसेंजर ट्रेन की (मेमू) जिम्मेदारी दी गई थी। एसईसीआर के मुख्य विद्युत इंजीनियर, परिचालन राजेंद्र कुमार साहू के हस्ताक्षर से 14 नवंबर 2024 को जारी एक आदेश में भी स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि एप्टीट्यूड टेस्ट पास नहीं करने वालों को मेमू चलाने की ट्रेनिंग देने पर ही रोक लगा दी जाए। नियमों की इस घोर अनदेखी के चलते अब रेलवे प्रबंधन की बड़ी लापरवाही उजागर हुई है कि फेल हुए लोको पायलट को संवेदनशील पैसेंजर ट्रेन चलाने की अनुमति क्यों दी गई।
