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कोरबा में भाजपा नेत्री का 'थप्पड़कांड': थाना परिसर में गुंडई, आदिवासी किसान को सरेआम पीटा! वीडियो वायरल, हड़कंप
कोरबा, छत्तीसगढ़: छत्तीसगढ़ में एक बार फिर कानून-व्यवस्था तार-तार होती दिख रही है। इस बार एक भाजपा नेत्री और पूर्व नगर पालिका सदस्य ज्योति महंत का खौफनाक चेहरा सामने आया है। सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेज़ी से वायरल हो रहा है, जिसमें ज्योति महंत एक आदिवासी किसान बलवंत सिंह कंवर को सरेआम सड़क पर और फिर बांकी मोंगरा थाना परिसर में बेरहमी से पीटती दिख रही हैं। यह घटना बताती है कि सत्ता का नशा जब सिर चढ़कर बोलता है, तो किस तरह संविधान और कानून को जूते की नोक पर रखा जाता है। इस 'थप्पड़कांड' ने छत्तीसगढ़ की कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, और जनता में भारी आक्रोश है, जो इस नेत्री के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग कर रही है।
वायरल वीडियो में ज्योति महंत किसान को पीटते और धमकाते दिख रही हैं। वे कहती हैं, “माफी क्यों मांगा, अगर गाली नहीं दी तो? औरत जात को मजाक बनाकर रख दिया। रोड किसकी है? मरना है तो मर जा, मुझे फर्क नहीं पड़ता।” वीडियो में थाना परिसर में भी मारपीट की घटना नजर आ रही है, जिसने पुलिस की मौजूदगी पर सवाल खड़े किए हैं।
विधायक ने की कार्रवाई की मांग
रामपुर विधायक फूलसिंह राठिया ने कोरबा पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर ज्योति महंत पर कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने कहा कि थाना परिसर में आदिवासी किसान के साथ अभद्र व्यवहार का वीडियो देखकर वे आहत हैं। एक आदिवासी विधायक होने के नाते उन्हें लगता है कि ज्योति को न शासन का डर है, न प्रशासन का। उन्होंने इस मामले में अपराध दर्ज कर त्वरित कार्रवाई की मांग की।
क्या पुलिस सिर्फ 'मूकदर्शक' बनी रहेगी? थाना प्रभारी के बयान ने खड़े किए गंभीर सवाल!
बांकी मोंगरा थाना प्रभारी तेज कुमार यादव ने इस पूरे मामले पर जो बयान दिया है, वह अपने आप में कई गंभीर सवाल खड़े करता है। उन्होंने स्वीकार किया है कि थाना परिसर में पिटाई की घटना हुई थी, लेकिन साथ ही यह भी कह रहे हैं कि दोनों पक्षों ने कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं की है। यह बयान पुलिस की कार्यप्रणाली पर ही उंगली उठाता है। क्या पुलिस सिर्फ शिकायत का इंतज़ार करेगी जब सरेआम थाना परिसर में एक आदिवासी को पीटा जा रहा हो? क्या वायरल वीडियो में साफ दिख रही मारपीट पुलिस के लिए 'औपचारिक शिकायत' का विषय नहीं है? इसके अलावा, बलवंत के उस गंभीर आरोप को भी थाना प्रभारी ने सिरे से खारिज कर दिया है, जिसमें उसने 3-4 हजार रुपये देकर थाने से छोड़े जाने की बात कही थी। पुलिस अब इस मामले में 'जांच' की बात कर रही है, लेकिन जनता जानना चाहती है कि कब तक ऐसे दबंगों को राजनीतिक संरक्षण मिलता रहेगा और कानून का राज कब स्थापित होगा? यह घटना बता रही है कि छत्तीसगढ़ में 'कानून सबके लिए बराबर' की कहावत सिर्फ किताबों तक ही सीमित है।
