बिलासपुर हाइकोर्ट का फैसला,गैंगरेप-ट्रिपल मर्डर: फांसी की जगह अब उम्रकैद

बिलासपुर, छत्तीसगढ़: कोरबा में चार साल पहले हुए दिल दहला देने वाले गैंगरेप और ट्रिपल मर्डर केस में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने इस "समाज को झकझोरने वाले" मामले में चार आरोपियों की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया है। हाईकोर्ट ने माना कि यह मामला "दुर्लभतम से दुर्लभ" श्रेणी में नहीं आता, इसलिए मृत्युदंड उचित नहीं है । यह सनसनीखेज वारदात कोरबा जिले में 2021 में हुई थी, जब 16 साल की पहाड़ी कोरवा आदिवासी लड़की से गैंगरेप के बाद उसकी, उसके पिता और 4 साल की बच्ची की निर्मम हत्या कर दी गई थी। जिला न्यायालय ने इस मामले में चार आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी, जबकि एक को आजीवन कारावास। हाईकोर्ट ने आरोपियों की आपराधिक पृष्ठभूमि न होने और उनकी उम्र को देखते हुए यह फैसला लिया है।

क्या था पूरा मामला?

देवपहरी गांव के धरमू उर्फ झकड़ी राम (45) संतराम मंझवार के मवेशी चराते थे। एग्रीमेंट के अनुसार, संतराम को धरमू को सालाना ₹8000 और 10 किलो चावल देना था। लेकिन, संतराम ने बकाया भुगतान नहीं किया और केवल ₹600 व कुछ चावल ही दिए। बकाया मांगने पर वह टालमटोल करता रहा।

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धरमू की पत्नी ने पुलिस को बताया कि वे पति और बच्चों के साथ हिसाब-किताब के लिए संतराम के पास गए थे। कुछ पैसे और सामान मिलने के बाद वे घर के लिए निकले, लेकिन संतराम और उसके साथी उन्हें रास्ते में रोककर बाइक पर छोड़ने की बात कहकर पति, बेटी और नातिन को रोक लिया। जब वे घर नहीं पहुंचे तो धरमू की पत्नी ने तलाश शुरू की और बाद में पुलिस को शिकायत की।

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जंगल में मिलीं लाशें, सामने आई खौफनाक सच्चाई

इस घटना के दूसरे दिन, 30 जनवरी 2021 को, गढ़-उपोड़ा के कोराई जंगल में धरमू, उनकी 16 वर्षीय बेटी और 4 वर्षीय नातिन सतमति के शव मिले। पुलिस जांच में सामने आया कि आरोपी संतराम और उसके साथियों ने धरमू को अपने साथ ले जाकर शराब पिलाई। फिर, सुनियोजित साजिश के तहत धरमू के सामने उसकी बेटी से गैंगरेप किया। जब धरमू ने विरोध किया तो लाठी-डंडों से पीट-पीटकर उसकी हत्या कर दी गई। इसके बाद, उसकी बेटी और मासूम नातिन को भी मौत के घाट उतार दिया गया।

निचली अदालत ने सुनाई थी फांसी

पुलिस ने सतरेंगा निवासी संतराम मंझवार (45), अनिल कुमार सारथी (20), आनंद दास (26), परदेशी दास (35) और जब्बार उर्फ विक्की (21) के साथ ही उमाशंकर यादव (22) को गैंगरेप और हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया। ट्रायल के बाद, जिला एवं अपर सत्र न्यायालय (पॉक्सो) की विशेष न्यायाधीश डॉ. ममता भोजवानी ने चार आरोपियों को फांसी और उमाशंकर यादव को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यह कृत्य अमानवीय, वीभत्स, पाशविक और कायरतापूर्ण है, जिसने समाज की सामूहिक चेतना को आघात पहुंचाया है।

हाईकोर्ट ने क्यों बदला फैसला?

फांसी की सजा की पुष्टि के लिए मामला हाईकोर्ट पहुंचा। चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि भले ही यह मामला समाज को झकझोरने वाला है, लेकिन तथ्यों, परिस्थितियों और अपीलकर्ताओं की उम्र को ध्यान में रखते हुए, मृत्युदंड की कठोर सजा उचित नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह "दुर्लभतम से दुर्लभतम मामला" नहीं है, जिसमें मृत्युदंड की पुष्टि की जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि आजीवन कारावास न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगा। इसके साथ ही, हाईकोर्ट ने उमाशंकर यादव की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखते हुए उसकी अपील खारिज कर दी।

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