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छत्तीसगढ़: दागी IAS अफसर को सेवा विस्तार पर BJP में घमासान, दिल्ली तक हड़कंप
नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ में एक वरिष्ठ IAS अधिकारी के सेवा विस्तार की तैयारी को लेकर भाजपा के भीतर ही बवाल मच गया है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO), गृह मंत्रालय और कार्मिक विभाग को 7 पन्नों की गोपनीय चिट्ठी लिखकर इस अफसर के दागदार विवादित और निष्क्रिय कार्यकाल पर सवाल उठाते हुए विस्तार रोकने की मांग की है। इस चिट्ठी और एक पत्रकार के ट्वीट के बाद दिल्ली तक सियासत तेज हो गई है, जिसमें पूछा जा रहा है कि आखिर छत्तीसगढ़ को कौन चला रहा है चुनी हुई सरकार या बेलगाम अफसरशाही?
मामला तब और गंभीर हो गया जब राष्ट्रीय जगत विजन के वरिष्ठ पत्रकार ने दावा किया कि यह अफसर कांग्रेस शासन के दौरान हुए शराब घोटाले, कोल लेवी, खनिज घोटाले और महादेव सट्टा रैकेट जैसे बड़े मामलों में संस्थागत चुप्पी का प्रतीक रहा है। अब उसी अधिकारी को फिर से कुर्सी देने की तैयारी हो रही है, जिससे भाजपा के अंदर ही तीखा आक्रोश है।
7 पन्नों की गोपनीय चिट्ठी में क्या है?
भाजपा नेता ने प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखी अपनी चिट्ठी में आरोप लगाए हैं कि संबंधित IAS अफसर ने 2019 से 2023 के बीच छत्तीसगढ़ में हुए बड़े घोटालों जैसे शराब घोटाला, कोल लेवी, खनिज पट्टा घोटाला और महादेव सट्टा रैकेट पर पूरी तरह चुप्पी साधे रखी। चिट्ठी में यह भी कहा गया है कि आठ बार लिखित आदेशों के बावजूद इस अधिकारी ने घोटालों से जुड़े अधीनस्थ अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं की। आरोप है कि जांच एजेंसी ACB,EOW को भी रबर स्टांप बना दिया गया था और आयकर विभाग व प्रवर्तन निदेशालय की रिपोर्टों को भी दरकिनार कर दिया गया। चिट्ठी में यह भी दावा किया गया है कि व्हिसिलब्लोअर्स को चुप करा दिया गया था।
भाजपा के भीतर आक्रोश: सिस्टम निगल जाएगा चिट्ठी
इस मामले पर भाजपा के ही एक अन्य वरिष्ठ नेता ने व्यक्त करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में नौकरशाही इतनी मजबूत हो चुकी है कि चुने हुए नेताओं की आवाज दबा दी जाती है। उन्होंने आशंका जताई कि यह अफसर आराम से सेवा विस्तार लेकर निकल जाएगा और ईमानदार भाजपा नेता की चिट्ठी धूल चाटेगी। उनका सवाल था कि यही असली सवाल है छत्तीसगढ़ को कौन चला रहा है?
PMO से क्या मांग की गई है?
इस गोपनीय पत्र में प्रधानमंत्री कार्यालय से आग्रह किया गया है कि ऐसे दागदार अफसर को सेवा विस्तार न दिया जाए। इसके बजाय, एक बेदाग, निष्पक्ष और राजनीतिक प्रभाव से मुक्त" अधिकारी की नियुक्ति की जाए, ताकि जनता का शासन प्रणाली पर विश्वास बहाल हो सके। इस पूरे प्रकरण ने छत्तीसगढ़ की सियासत में नौकरशाही और जनप्रतिनिधित्व के बीच की पुरानी बहस को एक बार फिर गर
मा दिया है।
