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शिक्षा विभाग में बड़ी लापरवाही: अतिशेष होने के बावजूद शिक्षक का नाम सूची से गायब, DEO कार्यालय ने नहीं सुनी फरियाद
बिलासपुर: बिलासपुर शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर एक बार फिर सवालों के घेरे में है । अतिशेष शिक्षकों की सूची में चौंकाने वाली त्रुटियां सामने आई हैं, जहां एक शिक्षिका का नाम अतिशेष होने के बावजूद सूची से गायब कर दिया गया है। जब शिक्षिका ने अपनी शिकायत लेकर जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) कार्यालय का दरवाजा खटखटाया, तो उन्हें वहां मौजूद अधिकारियों और कर्मचारियों से कोई सहयोग नहीं मिला, जिसके बाद उन्हें निराश होकर लौटना पड़ा
यह मामला शासकीय हाई स्कूल जरहाभाटा में पदस्थ व्याख्याता अनिता राय से जुड़ा है। जिला शिक्षा कार्यालय बिलासपुर द्वारा जारी अतिशेष व्याख्याताओं की सूची में उनकी वरिष्ठता दिनांक गलत दर्ज की गई है। शिक्षिका राय ने DEO, बिलासपुर को लिखे पत्र में बताया है कि उनकी मूल पदस्थापना 5 फरवरी 1999 को शिक्षाकर्मी वर्ग 1 (इतिहास) के पद पर हुई थी। वर्तमान में वे 14 अक्टूबर 2022 से शासकीय हाई स्कूल जरहाभाटा में कार्यरत हैं।

लेकिन, विभाग द्वारा जारी सूची में उनकी वरिष्ठता 11 अक्टूबर 2017 दर्शाई गई है, जिसे शिक्षिका राय ने पूरी तरह से गलत बताया है। इससे भी अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि जब शिक्षिका राय अपनी दावा-आपत्ति दर्ज कराने जिला शिक्षा कार्यालय के निर्धारित कक्ष में गईं, तो उनकी आपत्ति लेने से साफ मना कर दिया गया।
भ्रष्टाचार और लेनदेन का गहरा संदेह: विभाग के बाबू खेल रहे खेल?
इस पूरे प्रकरण में भ्रष्टाचार और लेनदेन की बु आ रही है। सवाल उठ रहा है कि आखिर क्यों एक शिक्षिका का नाम अतिशेष होने के बावजूद सूची से गायब कर दिया गया और क्यों उनकी वैध आपत्ति को सुनने से भी इनकार किया गया? सूत्रों के अनुसार, विभाग के भीतर बाबू स्तर पर लंबी रकम लेकर शिक्षकों के नाम सूची से हटाने या जोड़ने का खेल चल रहा है। आरोप है कि ऐसे मामले केवल अनिता राय तक सीमित नहीं हैं, बल्कि कई अन्य शिक्षकों के साथ भी ऐसी ही मनमानी की जा रही है।
एक और ऐसा मामला सामने आया है जिसमें अतिशेष होने के बावजूद शिक्षक का नाम अतिशेष सूची में नहीं है और उसका वेतन किसी अन्य स्कूल से आहरित किया जा रहा है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि विभाग में डेटा प्रबंधन और कर्मचारियों के रिकॉर्ड को लेकर भारी अव्यवस्था नहीं, बल्कि जानबूझकर की जा रही हेराफेरी है। इस तरह की अनियमितताएं न केवल शिक्षकों के साथ अन्याय हैं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था को भी खोखला कर रही हैं।
राज्य में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर और समावेशी बनाने के लिए शालाओं और शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण किया जा रहा है। इसका उद्देश्य शहरी इलाकों में जहां छात्रों की तुलना में अधिक शिक्षक पदस्थ हैं, वहीं ग्रामीण और दूरस्थ अंचलों की शालाओं में शिक्षकों की कमी को दूर करना है। यह कदम शैक्षिक गतिविधियों को सुचारु बनाने और छात्र-छात्राओं के परीक्षा परिणाम सुधारने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
हाल ही में बिलासपुर जिले के कोटा के खपराखेल, कुसुमखेड़ा, मस्तूरी के सबरियाडेरा, लोहर्सी और तखतपुर के डिलवापारा जैसे आदिवासी बैगा बाहुल्य ग्रामों में, जो पहले शिक्षकविहीन थे, वहां 2-2 शिक्षक दिए गए हैं। इसी प्रकार, एकल शिक्षकीय पूर्व माध्यमिक शाला चितवार (तखतपुर), जैतपुर (मस्तूरी), तरवा व नगोई (कोटा) में 3-3 शिक्षक और शिक्षकविहीन शाला शासकीय हाईस्कूल कुकुदा (मस्तूरी) में 5, सैदा (तखतपुर) में 4, कुकुर्दीकला (मस्तूरी) में 3 शिक्षक दिए गए हैं।
शहर के भीतर, पूर्व माध्यमिक शाला तारबहार (बिल्हा) में जहां 11 शिक्षक पदस्थ थे और दर्ज संख्या मात्र 142 थी, ऐसे अतिशेष शिक्षकों को अन्यत्र शालाओं में पदस्थापना दी गई है। हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद, अतिशेष सूची में त्रुटियां और कार्यालय की उदासीनता विभाग की साख पर सवाल उठाती है।
यह देखना होगा कि जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय इस गंभीर लापरवाही और भ्रष्टाचार के आरोपों पर कब संज्ञान लेता है और शिक्षिका अनिता राय को न्याय दिलाने के लिए क्या कदम उठाता है। क्या विभाग इन त्रुटियों को सुधारने और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कोई ठोस रणनीति बनाएगा, या फिर विभाग के बाबूओं का यह 'खेल' यूं ही जारी रहेगा?
