जल संसाधन विभाग में मेहरबानी का खेल: रिटायर्ड ईएनसी इंद्रजीत उइके को तुरंत मिली संविदा नियुक्ति और वित्तीय अधिकार, अधिकारी हाईकोर्ट जाने की तैयारी में

रायपुर। जल संसाधन विभाग के रिटायर्ड अफसर पर सरकार मेहरबान है यही कारण है कि रिटायर होने के कुछ दिन बाद उन्हें फिर से जल संसाधन विभाग के प्रमुख होने का दायित्व सौंप दिया गया।
इतना ही नहीं उन्हें वह सब अधिकार सौंप दिए गए जो एक राजपत्रित अधिकारी के पास होते है। 

                      छत्तीसगढ़ के जल संसाधन विभाग में मुख्य अभियंता (ईएनसी) इंद्रजीत उइके की सेवानिवृत्ति के तत्काल बाद उन्हें संविदा पर दोबारा नियुक्त करने और वित्तीय अधिकार सौंपने का मामला गरमा गया है। इस फैसले से विभागीय अधिकारियों में भारी रोष है, और कुछ अधिकारी इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट की शरण में जाने की तैयारी कर रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल उनके वित्तीय अधिकारों को लेकर है क्योंकि विभाग के ही एक आदेश के अनुसार, संविदा पर नियुक्त अधिकारियों को कार्यालय प्रमुख या आहरण संवितरण अधिकारी का दायित्व नहीं सौंपा जा सकता।


                घटनाक्रम की शुरुआत 30 जून को हुई जब ईएनसी इंद्रजीत उइके सेवानिवृत्त हुए। उसी दिन उन्होंने एक आदेश जारी कर मुख्य अभियंता दीपक भूम्मेरकर को विभाग का प्रभारी ईएनसी बनाया था। हालांकि, यह व्यवस्था ज्यादा दिन नहीं चली। हफ्तेभर के भीतर ही, यानी 7 जुलाई को जल संसाधन विभाग की अवर सचिव विद्या भारती ने मंत्रालय से एक आदेश जारी किया, जिसमें इंद्रजीत उइके को ईएनसी के खाली पद पर 6 महीने के लिए या किसी इंजीनियर की पदोन्नति होने तक, जो भी पहले हो, संविदा पर नियुक्त कर दिया गया। उन्हें एकमुश्त वेतन दिया जाएगा, जिसमें कोई विशेष भत्ता शामिल नहीं होगा।
यह नियुक्ति कई सवाल खड़े कर रही है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि उइके के बाद दो वरिष्ठ अधिकारी विभाग में मौजूद थे, फिर भी उइके को ही यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई। इतना ही नहीं, संविदा नियुक्ति के साथ उन्हें वे अधिकार भी सौंपे गए जो केवल नियमित राजपत्रित अधिकारी को मिलते हैं। सूत्रों के अनुसार, 2012 और 2014 में भी संविदा पर पदस्थ अधिकारियों को न तो कोई वित्तीय अधिकार दिए गए थे और न ही विभाग प्रमुख का दायित्व सौंपा गया था।
जल संसाधन विभाग द्वारा 7 जुलाई 2022 को जारी आदेश (क्रमांक 1599/1013/31/स्था/2022) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि "सेवानिवृत्त पश्चात् संविदा में पदस्थ अधिकारियों को कार्यालय प्रमुख तथा आहरण संवितरण अधिकार का दायित्व निरस्त करते हुए, उक्त दायित्व किसी नियमित राजपत्रित शासकीय अधिकारी को तत्काल प्रभाव से सौंपा जाए।" यह आदेश वित्त विभाग के निर्देश 04/2014 के मार्गदर्शन पर आधारित था। ऐसे में इंद्रजीत उइके को ईएनसी के रूप में वित्तीय अधिकार सौंपना इस आदेश का सीधा उल्लंघन है।

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                 अधिकारियों का रोष इस बात पर भी है कि इसी ईएनसी इंद्रजीत उइके के कार्यकाल में आय से अधिक संपत्ति के भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए आलोक अग्रवाल को नियम विरुद्ध बहाल करते हुए पदोन्नति भी दी गई थी। सूत्रों का यह भी आरोप है कि हाल ही में आलोक अग्रवाल पर मानचित्रकार दिलीप पैकरा के साथ अभद्र व्यवहार और जातिसूचक गाली देने का आरोप लगा, लेकिन अपनी पहुंच और प्रभाव के कारण आलोक अग्रवाल ने अभी तक इस मामले में  किसी तरह का मामला दर्ज नहीं होने दिया । बताया जा रहा है कि इसमें एक ओएसडी ने आलोक को बचाने में मदद की है।
विभागीय अधिकारियों का मानना है कि इस तरह की नियुक्तियों पदोन्नतियों और आरोपी अधिकारियों को संरक्षण देने से सरकार की छवि पर विपरीत असर पड़ रहा है।
 ऐसे ही एक मामले में रायगढ़ में भी जमीन मुआवजा में 500 करोड़ के घोटाले के आरोपी डिप्टी कलेक्टर तिरथ अग्रवाल को बहाल कर  मंत्री केदार कश्यप का ओएसडी बना दिया गया है। 
अधिकारी  मान रहे हैं कि यह सब मामले प्रदेश की सुशासन सरकार को बदनाम करने की साजिश हो सकती है, जिसके पीछे किसी विभीषण का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है। इस पूरे मामले पर सरकार को तत्काल संज्ञान लेते हुए पारदर्शिता सुनिश्चित करने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

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