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छत्तीसगढ़ नन गिरफ्तारी केस में नया मोड़: प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस को मिली जमानत, पीड़िता ने लगाए जबरन बयान बदलवाने के आरोप, दुर्ग से दिल्ली-केरल तक बवाल
छत्तीसगढ़ नन गिरफ्तारी केस में नया मोड़: प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस को मिली जमानत, पीड़िता ने लगाए जबरन बयान बदलवाने के आरोप, दुर्ग से दिल्ली-केरल तक बवाल
छत्तीसगढ़ में मानव तस्करी और धर्मांतरण मामले में गिरफ्तार नन प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस को कोर्ट से सशर्त जमानत मिली। पीड़िता ने जबरन बयान बदलवाने के आरोप लगाए।
बिलासपुर: छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित ह्यूमन ट्रैफिकिंग और जबरन धर्मांतरण केस में शनिवार को केरल की दो नन प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस समेत एक अन्य आरोपी सुकमन मंडावी को विशेष एनआईए कोर्ट से सशर्त जमानत मिल गई है। इस मामले ने दुर्ग से लेकर दिल्ली-केरल तक राजनीतिक और सामाजिक हलकों में विवाद खड़ा कर दिया है।
विशेष एनआईए अदालत के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश सिराजुद्दीन कुरैशी की अदालत ने शुक्रवार को मामले की सुनवाई के बाद शनिवार को अपना निर्णय सुनाया। अदालत ने तीनों आरोपियों को सशर्त जमानत देते हुए कहा कि वे जांच में सहयोग करेंगे और बिना अनुमति के क्षेत्र नहीं छोड़ेंगे।
क्या है पूरा मामला?
25 जुलाई को बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने मानव तस्करी और धर्मांतरण का आरोप लगाकर दुर्ग रेलवे स्टेशन के GRP चौकी में नारेबाजी कर हंगामा शुरू कर दिया। इस दौरान बजरंग दल के दुर्ग जिला संयोजक रवि निगम और बजरंग दल की प्रदेश संयोजिका ज्योति शर्मा को सूचना दी। इस दौरान बजरंग दल की प्रदेश संयोजिका ज्योति शर्मा भी कार्यकर्ताओं के साथ थाने पहुंची। ज्योति शर्मा ने मिशनरी सिस्टर (नन) पर युवतियों को नौकरी का झांसा देकर ले जाकर बेचने और धर्मांतरण का आरोप लगाया।
साथ ही कहा कि यह मामला सिर्फ नौकरी दिलाने का नहीं, बल्कि मानव तस्करी और धर्मांतरण से जुड़ा है। इसके बाद 25 जुलाई 2025 को दोनों ननों प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस के खिलाफ GRP थाना दुर्ग में FIR दर्ज हुई। इसमें BNS धारा 143 मानव तस्करी से जुड़ी धारा और गैर-जमानती अपराध के तहत केस दर्ज हुआ। साथ ही छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 1968 की धारा 4 बिना अनुमति धर्मांतरण कराने का अपराध। उन्हें गिरफ्तार किया गया।
गिरफ्तारी को लेकर प्रदर्शन, संसद में उठा मामला
छत्तीसगढ़ के कई जिलों दुर्ग, रायपुर, रायगढ़, कोरबा और जगदलपुर में ईसाई संगठनों ने प्रदर्शन किया। यह मामला संसद में उठा। केरल के सांसद डेरेक ओ ब्रायन और बिनॉय विश्वम ने राज्यसभा में इस घटना को "ईसाई समुदाय पर हमला" बताया। उन्होंने इसे राजनीतिक द्वेष और धार्मिक असहिष्णुता से प्रेरित गिरफ्तारी कहा।
पीड़िता के गंभीर आरोप
पीड़िता ने न्यायालय में दायर बयान में दावा किया कि उससे मारपीट कर जबरन बयान बदलवाया गया। इस आरोप ने जांच प्रक्रिया और कानून व्यवस्था पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं। मानवाधिकार संगठनों ने मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है।बचाव पक्ष के अधिवक्ता अमृतो दास ने कहा कि उनके मुवक्किल निर्दोष हैं और उन पर लगे आरोपों का कोई ठोस सबूत नहीं है।
उन्होंने कहा कि यह मामला राजनीतिक दबाव और धार्मिक ध्रुवीकरण का परिणाम हो सकता है। यह मामला न केवल कानूनी और सामाजिक दृष्टि से संवेदनशील है, बल्कि इससे जुड़े पहलू धार्मिक स्वतंत्रता, मानवाधिकार, और कानून के दुरुपयोग जैसे कई अहम मुद्दों को उजागर करते हैं। आने वाले दिनों में इस केस की अगली सुनवाई और जांच रिपोर्ट पर देशभर की निगाहें टिकी रहेंगी।
