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मुख्य सचिव को एक्सटेंशन पर राजभवन भी हैरान, आखिर क्या चल रहा? पढ़े पूरा मामला......
रायपुर। छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक हलकों में सोमवार को हुए घटनाक्रम ने सरकार की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मुख्य सचिव अमिताभ जैन को सेवानिवृत्ति के कुछ घंटे बाद ही तीन महीने का सेवा विस्तार मिल गया। इस पूरे प्रकरण में राजभवन को कथित तौर पर अंधेरे में रखने और आनन फानन में दिल्ली से मंजूरी मिलने पर राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में तीखी बहस छिड़ गई है।
राज्य गठन के 25 साल में ऐसा पहली बार देखा जा रहा है जब सरकार इतने महत्वपूर्ण प्रशासनिक फैसले लेने में पूरी तरह से लाचार और बेबस नजर आ रही है। सोमवार को मुख्य सचिव अमिताभ जैन को सेवानिवृत्त होना था। सुबह वह राजभवन पहुंचे, जहां राज्यपाल ने उन्हें सेवानिवृत्ति की शुभकामनाएं दीं। लेकिन कुछ ही घंटों बाद खबर आई कि उन्हें तीन महीने का एक्सटेंशन मिल गया है। सवाल यह उठ रहा है कि क्या सरकार ने राज्यपाल को एक्सटेंशन के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी थी? जबकि रविवार को मुख्यमंत्री राज्यपाल से मिलने राजभवन गए थे। अगर राज्यपाल को पहले से अवगत कराया गया होता, तो वे उन्हें सेवानिवृत्ति के अवसर पर राजकीय गमछा और स्मृति चिन्ह भेंट कर शुभकामनाएं क्यों देते?
चंद घंटों में ऐसी कौन सी आपातकालीन स्थिति बन गई कि आनन फानन में मुख्य सचिव को तीन महीने का एक्सटेंशन देने का प्रस्ताव दिल्ली भेजा गया और कुछ ही मिनटों में उसे मंजूरी भी मिल गई। ब्यूरोक्रेसी में भी यह सवाल उठ रहा है कि आखिर इन पांच सालों में मुख्य सचिव ने ऐसा क्या कर दिखाया या कौन सा काम बाकी रह गया, जिसके लिए उन्हें यह सेवा विस्तार दिया गया है। कहीं यह कुछ महीने खरीदने की कवायद तो नहीं है, ताकि मनपसंद मुख्य सचिव की नियुक्ति की जा सके? या फिर पर्दे के पीछे कुछ बड़े काम अटके हों, जिन्हें पूरा होने में अभी समय है। जैसे एक आरोप यह भी है कि लॉ विस्टा जैसी पॉश कॉलोनी से नाले को गायब करवा कर न्यायालय में झूठा शपथ पत्र पेश किया गया, और शायद इसी का इनाम उन्हें दिया गया है।
यह कोई सामान्य घटना नहीं है और इसका असर निचले स्तर की ब्यूरोक्रेसी पर भी पड़ना तय है। पूरे घटनाक्रम को देखकर सभी जानकार भौचक्के हैं। यह सवाल भी उठ रहा है कि राजधानी के कलेक्ट्रेट से लेकर मुख्य सचिव तक के सफर में क्या हुआ और अगले तीन महीने में क्या कमाल होने वाला है?
सरकार को बने 18 महीने हो चुके हैं, लेकिन वह नौकरशाही पर अपनी पकड़ नहीं बना पाई है। शीर्ष पदों पर वही नौकरशाह बैठे हैं जो पिछली सरकार में भी प्रमुख भूमिकाओं में थे। तब विपक्ष में बैठी भाजपा इन अधिकारियों को कोसती थी, लेकिन अब जब सत्ता बदली तो इन्हीं नौकरशाहों ने वर्तमान सरकार को भी अपने सांचे में ढाल लिया है। 18 महीनों में यह सरकार न तो मंत्रिमंडल का विस्तार कर पा रही है और न ही शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारियों को हटा पा रही है। पहले डीजीपी को एक्सटेंशन मिला और अब मुख्य सचिव को। वन विभाग, लोक निर्माण विभाग, पुलिस विभाग हर जगह वही अधिकारी हावी दिख रहे हैं, जो पिछली सरकार में कथित तौर पर स्लीपर सेल की तरह काम कर रहे थे और राज्य को घोटालों और भ्रष्टाचार का गढ़ बना दिया था।
मौजूदा स्थिति यह है कि देश ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी राज्य को अच्छी नजर से नहीं देखा जा रहा है। यहां तक कि अमेरिकी सरकार ने अपने नागरिकों को छत्तीसगढ़ न आने की सलाह जारी की है। यह क्यों और किसलिए हो रहा है, यह सुशासन का ढिंढोरा पीटने से नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत देखने से समझ आएगा। ऐसा लगता है कि नौकरशाहों ने खुद को बचाने के लिए राज्य की अस्मिता से भी खिलवाड़ कर दिया है। यह खेल भले ही सरकार और सत्ता संगठन को अभी समझ न आए, लेकिन प्रदेश की जनता समझदार है और सब कुछ देख, सुन और समझ रही है। जैसे 15 सालों की सत्ता को महज 14 सीटों पर और भ्रष्टाचार में डूबी तत्कालीन सरकार के अहंकार को 34 सीटों पर ला दिया था। सरकार के कार्यकाल के अब तीन साल ही शेष हैं, जनता फिर इन्हें वहीं लाकर छोड़ देगी, जहां 14 से 54 का सफर कराया था।
