राजेन्द्र शुक्ला की चमक पड़ी फीकी : विरोधी टिकट कटवाने में हुए सक्रिय

राजेन्द्र शुक्ला की चमक पड़ी फीकी : विरोधी टिकट कटवाने में हुए सक्रिय नई दिल्ली ( मनीशंकर पान्डेय ) : शिवराज सिंह चौहान के करीबी रहे रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ला की सत्ता में वापसी नहीं होने से उनकी बेचैनी बढ़ गई है। क्यों कि संभागीय मुख्यालय रीवा में नगरीय निकाय चुनाव में भगवा छतरी नहीं […]

राजेन्द्र शुक्ला की चमक पड़ी फीकी : विरोधी टिकट कटवाने में हुए सक्रिय

नई दिल्ली ( मनीशंकर पान्डेय ) : शिवराज सिंह चौहान के करीबी रहे रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ला की सत्ता में वापसी नहीं होने से उनकी बेचैनी बढ़ गई है। क्यों कि संभागीय मुख्यालय रीवा में नगरीय निकाय चुनाव में भगवा छतरी नहीं तनी,बल्कि सिकुड़ गई। सीधी में आप का मेयर बना और सभागीय मुख्यालय रीवा में कांग्रेस का मेयर बन गया। राजेन्द्र के विरोधियों को मौका मिल गया इनकी खिलाफत का। राजेन्द्र शुक्ला के समर्थक और रीवा जिले के सातो बीजेपी के विधायक भी कहने लगे हैं कि राजेन्द्र को टिकट मिली तो बीजेपी रीवा जिले में चार सीट खो देगी। अपनी गिरती लोकप्रियता को उठाने के लिए पिछले दिनों राजेन्द्र शुक्ला ने भोपाल दूरदर्शन में प्रायोजित साक्षात्कार प्रसारित कराया। कैसे वे फिट रहते हैं। क्या क्या किए,वो बात रखी। जबकि वे रीवा में कभी किसी पत्रकार को इन्टरव्यूह नहीं देते। वरिष्ठ पत्रकारों के फोन नहीं उठाते।

बढ़ती बेचैनी -राजेन्द्र शुक्ला की बेचैनी की सबसे बड़ी वजह यह है कि नगरीय निकाय में बीजेपी के हारने के बाद से उनके विरोधी सक्रिय हो गए हैं। उनके टिकट कटने की बात करने लगे हैं। इसलिए कि कभी वे पंचूलाल प्रजापति और अभय मिश्रा का टिकट कटवाने में कामयाब हो गए थे। अब वे सत्ता से बाहर हैं। वहीं भोपाल में कांग्रेस का एक गुट उन्हें वापस कांग्रेस में लाने को कह रहा है। बीजेपी की सत्ता में उन्हें कुछ मिला नहीं। निराश हैं। हताश हैं। परेशान हैं। उनकी टिकट भी उनके विरोधी कटवाने में लग गए हैं। इस वजह सें कांग्रेस का एक गुट उनकी वापसी के पक्ष में है।

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मिश्रा से नहीं बनती। जाहिर है ये उनके मंत्री बनने और प्रदेश अध्यक्ष बनने की राह में रोड़ा बनेंगे। वैसे भी राजेन्द्र शुक्ला कभी सगठन के आदमी थे नहीं। वे जानते हैं,प्रदेश में सत्ता रहने के बावजूद वी.डी शर्मा के नेतृत्व में नगरीय निकाय चुनाव में छह जगह बीजेपी हार गई है। चुनाव के वक्त बात कुछ और रहेगी। उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने पर बीजेपी की सरकार नहीं बनी, तो उनका सियासी विकास अवरूद्ध हो जाएगा। वैसे भी प्रदेश में एंटीइन्कम्बैंसी कुछ ज्यादा ही है। यह बीजेपी के आंतरिक सर्वे की रिपोर्ट से स्पष्ट हो गया है।

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पार्टी अभी सीएम नहीं बदल रही है। प्रदेश अध्यक्ष बदले जाने के आसार है। बीजेपी का एक गुट कैलाश विजयवर्गीय को प्रदेशध्याक्ष के रूप में पसंद करता है। वैसे शिवराज की पसंद भी बहुत मायने रखती है।

पत्नी को करेंगे आगे – आंतरिक विरोध को कम करने करीब 65 विधायकों की टिकट हाईकमान काटेगा। उस सूची में नाम जुड़वाने राजेन्द्र के विरोधी एड़ी चोटी एक किए हुए हैं। रीवा के सारे विधायकों की रायशुमारी भी यही है,इनकी जगह दूसरे को टिकट दी जाए। ऐसे में राजेन्द्र अपनी पत्नी सुनीता की टिकट की मांग कर सकते हैं। जैसे अभय मिश्रा और पंचूलाल प्रजापति ने किया था।

विकास का वन टू फोर – राजेन्द्र शुक्ला के प्रति धारणाएं कभी इस कदर बटी नहीं,जितनी आज है। कुछ साल पहले तक उन्हें बेजोड़ बताया जाता था,वो कोई चूक नहीं कर सकते। लेकिन मंत्री रहते उन्होंने जिस पेड़ में विरोध का मट्ठा डाला उसका अंत नहीं हुआ। अब राजेंद्र हर मोर्चे में बेहिसाब बेचैन हैं। उनकी चमक फीकी पड़ गई है,जो हालात सुधारने की मांग कर रही है। रीवा का दूसरा मोदेी बनने चले थे। मोदी ने देश की संपत्तियां बेची,ये रीवा की जमीन बेच कर विकास का वन टू का फोर पढ़ा रहे हैं। पिछले 18 सालों से बनाओ तोड़ो,खोदो यही इनके विकास की परिभाषा है। मास्टर प्लान की फजीहत कर दी। राजेन्द्र और बीजेपी दोनों ने जनता के मन में असंतोष पैदा कर दिया है।

राजेन्द्र के लिए राहत की बात यही है कि पचास फीसदी सिंधी अभी भी उनके साथ है। और पांच फीसदी मुस्लिम वोटर। पार्टी के अंदर रीवा विधान सभा का उम्मीदवार ढूंढ लिया गया है। जिसकी चर्चा रीवा से भोपाल तक है।यह चर्चा सच में तब्दील हुई तो राजेंद्र की टिकट कटने से शिवराज भी नहीं रोक सकते ।

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