- Hindi News
- राष्ट्रीय
- भ्रष्ट इंस्पेक्टर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आम जनता का भरोसा तोड़ने जैसा, जाने क्या है मामल...
भ्रष्ट इंस्पेक्टर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आम जनता का भरोसा तोड़ने जैसा, जाने क्या है मामला...

दिल्ली: भ्रष्टाचारी अधिकारी को फिर से ड्यूटी ज्वॉइन करने की अनुमति मिलनी चाहिए या नहीं ? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराए गए सरकारी अधिकारी को जब तक बरी नहीं किया जाता, उसे फिर से सेवा में शामिल होने की अनुमतिनहीं दी जानी चाहिए। जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने आगे कहा कि भ्रष्ट अधिकारी को फिर से ड्यूटी ज्वॉइन करने की इजाजत देना आम जनता के भरोसे को तोड़ना है। सुप्रीम कोर्ट, घूसखोरी के केस में सजा पाए एक रेलवे इंस्पेक्टर की याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे इंस्पेक्टर की याचिका निरस्त करते हुए कुछ सवाल उठाए। बेंच ने पूछा कि एक भ्रष्ट अधिकारी को नौकरी पर बहाली की अनुमति क्यों मिलनी चाहिए? अदालत ने कहा कि अगर ऐसा हुआ तो फिर सिस्टम की नींव कमजोर हो जाएगी। इसके साथ ही यह ईमानदार अफसर का अपमान होगा। मामला रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स के इंस्पेक्टर का है। इस इंस्पेक्टर को गुजरात में ट्रायल घूसखोरी के केस में सजा सुनाई थी। बाद में मामला गुजरात हाई कोर्ट पहुंचा। यहां पर हाई कोर्ट ने इंस्पेक्टर को राहत देते हुए उसे जमानत दे दी। हालांकि सजा से बरी करने से इनकार कर दिया।
इसके बाद इंस्पेक्टर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी। याचिककर्ता के वकील नितिन कुमार सिन्हा ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने इंस्पेक्टर को सजा देने और दो साल के लिए जेल भेजने के फैसले में गलती की है। उन्होंने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इंस्पेक्टर घूस मांगी थी। वकील ने इसके बाद शीर्ष अदालत से गुहार लगाई थी कि इंस्पेक्टर की सजा पर रोक लगाई जाए। साथ ही उसकी नौकरी बहाल की जाए।
बेंच ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए केसी सरीन वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया केस का हवाला दिया है। बेंच ने कहा कि एक सजा पा चुके अधिकारी को इस आधार पर बहाल नहीं किया जा सकता है कि उसका केस एक उच्च अदालत में विचाराधीन है। किसी पब्लिक सर्वेंट को इस तरह की इजाजत आम जनता का भरोसा तोड़ने जैसा होगा। केसी सरीन बनाम भारत संघ मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने नोट किया था कि जब एक पब्लिक सर्वेंट को अदालत में भ्रष्टाचार का दोषी पाया जाता है, तो उसे तब तक भ्रष्ट माना जाए जब तक कि उच्चतर न्यायालय द्वारा उसे बरी नहीं किया जाता।