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कानून-व्यवस्था की बैठक में गृहमंत्री को दिल्ली से बुलाना पड़ा: क्या संगठन से चलेगी सरकार?
रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में हाल ही में हुई दो दिवसीय कलेक्टर-एसपी कॉन्फ्रेंस ने प्रदेश के सियासी गलियारों में हड़कंप मचा दिया है। बैठक में एक खाली कुर्सी और गृहमंत्री की देर से एंट्री ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। चर्चा है कि गृहमंत्री को बैठक में बुलाने के लिए संगठन को खुद दखल देना पड़ा और आदेश दिल्ली से आया, जबकि गृह विभाग उन्हीं के पास है। सूत्र बताते हैं, यह मामला अब बुलावे का नहीं, बल्कि संविधान की गरिमा और मर्यादा का बन गया है।
गृहमंत्री का बुलावा: संगठन का दखल और खाली कुर्सी का सस्पेंस
सूत्रों के अनुसार, पूरी बैठक की स्क्रिप्ट पहले से तय थी। पिछली बार की तरह इस बार भी गृहमंत्री के बिना ही पुलिस विभाग की समीक्षा होनी थी। इसके पीछे अंदरखाने की चर्चा यह है कि गृहमंत्री बैठकों में जोरदार तरीके से बोलते हैं, जिससे सीएम साहब को सुनने वाली ऑडियंस बिखर जाती है और मंच का ध्यान उधर शिफ्ट हो जाता है।
बैठक में पी. दयानंद की खाली कुर्सी ने भी ध्यान खींचा, जिनकी नामौजूदगी अब चर्चा का विषय बनी हुई है। बताया जा रहा है कि वह पिछले कुछ समय से कम सक्रिय दिख रहे हैं। वहीं, पुलिस विभाग की समीक्षा वही अफसर लेने वाले थे, जिनके इशारों पर पूरा गृह विभाग चलता है। मंत्रालय के गलियारों में यही नाम बगुला भगत के नाम से चर्चित है।
डीजीपी साहेब मौन, दिल्ली से घड़घड़ा उठे फोन!
बैठक में प्रभारी डीजीपी साहेब की मौजूदगी थी, मगर उनकी भाव-भंगिमाएँ खुद कहानी कह रही थीं। न उनके लिए आगे कोई टेबल लगी थी, न ही उन पर किसी का ध्यान था। वह पूरी बैठक में मौन बैठे रहे, जैसे शब्द भी अनुशासन में चले गए हों।
अचानक माहौल तब बदला जब संगठन से लेकर दिल्ली तक फोन घड़घड़ा उठे। आदेश आया कि गृहमंत्री को बुलाइए, आखिर विभाग उनका है। बस, फिर क्या था! आनन-फानन में मंत्रालय के दरवाजे खुले और गृहमंत्री को बुलावा भेजा गया।
मर्यादा का सवाल: तीखी बहस और कानून-व्यवस्था पर संदेह
विडंबना देखिए, राज्य की कानून-व्यवस्था पर चर्चा उस बैठक में होती है, जिसमें प्रदेश के गृह मंत्री को बुलाने के लिए दिल्ली से फोन कराना पड़े। अंदरखाने खबर यह भी है कि गृहमंत्री साहेब इस बार भी एक अफसर पर बिफर पड़े और एक जिले के एसपी से तीखी बहस तक हो गई। शायद यही वजह है कि उन्हें इन बैठकों से दूर रखा जाता है।
कारण चाहे जो भी हो, पर जो घटनाक्रम सामने आया है, वह भाजपा और सरकार के साथ-साथ प्रदेश की कानून-व्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है। मंत्रालय के गलियारों में अब यही चर्चा गर्म है कि क्या अब विभागीय बैठकें भी राजनीतिक अनुमति और संगठन के आदेश से चलेंगी? कहा जा रहा है कि जब गृहमंत्री को अपने ही विभाग की बैठक में बुलाने के लिए दिल्ली से आदेश लगाना पड़े, तो समझिए समीक्षा कानून-व्यवस्था की नहीं, बल्कि संविधान की गरिमा की हो रही है!
