एचआईवी पीड़ित पिता को झटका, हाईकोर्ट बोला बेटी की परवरिश और पढ़ाई के लिए पैसा देना होगा

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक कांस्टेबल की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उसने अपनी बेटी के लिए भरण पोषण (गुज़ारा भत्ता) देने से इनकार किया था। कांस्टेबल का कहना था कि वह एचआईवी पीड़ित है और बच्ची उसकी नहीं है, इसलिए वह खर्च नहीं देगा। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया जिसमें बेटी के लिए हर महीने 5,000 रुपये देने का आदेश दिया गया था। कोर्ट ने साफ कहा कि बच्ची की परवरिश और शिक्षा के लिए यह आर्थिक मदद बेहद ज़रूरी है।

यह मामला तब सामने आया जब कोण्डागांव जिला पुलिस बल में पदस्थ कांस्टेबल की पत्नी ने अंबिकापुर फैमिली कोर्ट में याचिका दायर कर खुद और बेटी के लिए 30,000 रुपये प्रतिमाह गुज़ारा भत्ता मांगा था। पत्नी ने पति पर शारीरिक प्रताड़ना, अकेला छोड़ देने और बेटी की देखभाल न करने जैसे गंभीर आरोप लगाए थे।

फैमिली कोर्ट अंबिकापुर ने 9 जून 2025 को अपना फैसला सुनाते हुए पत्नी की भरण पोषण की मांग तो ठुकरा दी, लेकिन छह साल की बेटी के लिए हर महीने 5,000 रुपये देने का आदेश दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में इस बात पर जोर दिया कि बच्ची के बेहतर भविष्य और शिक्षा के लिए यह आर्थिक सहायता अनिवार्य है। फैमिली कोर्ट के इस आदेश को कांस्टेबल ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी दलीलों को नामंज़ूर करते हुए फैमिली कोर्ट के फैसले को पूरी तरह वैध बताया और इसमें किसी भी तरह के हस्तक्षेप से इनकार कर दिया।

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