क्या कर रही है जांच एजेंसियां,2200 करोड़ के शराब घोटाले में एसीबी की कार्रवाई सवालों के घेरे में,हाईकोर्ट के आदेशों का खुला उल्लंघन 

रायपुर। तत्कालीन कांग्रेस सरकार में हुए 2200 करोड़ के आबकारी घोटाले में एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) की कार्रवाई पर प्रश्न चिन्ह लग गया है । सोमवार को 28 वर्तमान और सेवानिवृत्त अधिकारियों को विशेष सत्र न्यायालय में पेश होने के लिए नोटिस तामील किया गया। वहीं एसीबी और ईओडब्ल्यू ने तीन रूलिंग जजों को बताया है कि जांच के दौरान करोड़ों के भ्रष्टाचार के आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया गया। और इसके पीछे एसीबी ने हैरत में डालने वाला तर्क दिया कि करोड़ों के घोटाले के आरोपी अधिकारी कर्मचारियों को गिरफ्तार करना आवश्यक नहीं। इधर सीबीआई ने भी घोटाले के आरोपियों की गिरफ्तारी को जरूरी नहीं समझा। देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई ने अपना तर्क दिया कि किसी भी गैर जमानती या संज्ञेय अपराधों में पुलिस को गिरफ्तार करने की कोई आवश्यकता नहीं होती और यह नागरिकों की स्वतंत्रता है।अब सवाल उठता है कि जिन अधिकारियों पर प्रदेश के सबसे बड़े घोटाले में लिप्त होने का आरोप है उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार करना क्यों जरूरी नहीं समझा। यह कैसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है जिसमें करोड़ों के भ्रष्टाचार के आरोपी को ऐसे ही खुला छोड़ दिया गया हो और बिना गिरफ्तारी के ही न्यायालय में चालान और अभियुक्तों को नोटिस तामील कर अपने अधिवक्ताओं के साथ पेश होने के लिए कहा गया । जबकि इस घोटाले में कई आईएएस अधिकारी और प्रदेश के बड़े नेता जेल की सलाखों के पीछे हैं। इन अधिकारियों पर कार्रवाई न कर गिरफ्तारी न करने के पीछे क्या मंशा है यह रहस्य बरकरार है।

बता दें कि वर्ष 2017 में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि भ्रष्टाचार या घोटालों में संलिप्त आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद ही चालान पेश किया जाना न्यायोचित होगा। ऐसे में क्या एसीबी और ईओडब्ल्यू ने इतने बड़े घोटाले में हाईकोर्ट के निर्देशों की भी अवहेलना कर आरोपियों को बचाने की साजिश रची है। 2019 से 2022 तक चार साल चले इस सिंडिकेट घोटाले में लगातार जांच पर जांच चल रही है।

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उच्च न्यायालय का कड़ा रुख: जांच में मनमानी और लचीलापन

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इस गंभीर और सिंडिकेट घोटाले में 30 सितंबर 2024 को हाईकोर्ट ने भी अपने आदेश में कहा था कि कुछ अधिकारियों द्वारा अपने धारा 164 के दिए बयानों में घोटाले के सिंडिकेट में शामिल होने की बात स्वीकारी थी। जिस पर न्यायालय की कार्रवाई के बिना ही आरोपियों को गवाह के रूप में पेश किया गया है। हाईकोर्ट ने भी इस बात पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि जांच एजेंसियों ने अपने मन मुताबिक चालान पेश किया है और जांच में लचीलापन लाते हुए चुनिंदा तरीके से काम किया है। जांच एजेंसियों के इस लचीलेपन और कार्रवाई को प्रभावित करने में लंबे चौड़े लेनदेन की चर्चाएं भी जोरों पर हैं।

एम सीआर सी नंबर 5081/2024 के तहत हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने अपने आदेश की कंडिका क्रमांक 30 में साफ कहा था: प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट है कि एक ओर अभियोजन एजेंसी दावा कर रही है कि यह मामला राज्य के खजाने को भारी आर्थिक नुकसान का है और अपराध अत्यधिक गंभीर प्रकृति का है। और दूसरी ओर कथित रूप से 1200 करोड़ रुपये की अवैध शराब की आपूर्ति करने वाले डिस्टिलर्स को आरोपी नहीं बनाया गया है भले ही ई डी की शिकायत में उनका नाम सिंडिकेट के सदस्य के रूप में उल्लिखित किया गया है। भले ही कुछ गवाहों ने पुलिस के सामने अपने बयान में और सी आर पी सी की धारा 164 के तहत दर्ज बयान में स्वीकार किया है कि वे सिंडिकेट अपराध में शामिल थे लेकिन उन्हें सक्षम अदालत द्वारा क्षमादान दिए बिना अभियोजन गवाहों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि अभियोजन ने अपने दृष्टिकोण में गर्म और ठंडे दोनों तरह का असंगत रुख अपनाया है और जांच में मनमानी की है। हालांकि श्री जेठमलानी विद्वान वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि अभियोजन एजेंसी के पास उन व्यक्तियों को आरोपी बनाने का समय नहीं है क्योंकि जांच अभी भी जारी है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि तीन चार आरोप पत्र अभी भी दाखिल किए जाने हैं और यह केवल एक प्रारंभिक आरोप पत्र है।

हाईकोर्ट की यह टिप्पणी सीधे तौर पर जांच एजेंसियों पर उंगली उठाती है और उनकी कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है। इस मामले में आगे क्या होता है और क्या उच्च न्यायालय के आदेशों का पालन होता है । प्रदेश में चुनाव के दौरान विष्णुदेव साय सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इस बात को साफ तौर पर कहा था कि प्रदेश में जीरो टॉलरेंस और भ्रष्टाचार रहित सरकार चलाई जाएगी साथ ही केंद्र सरकार की यह टैगलाइन भी काम कर रही थी कि मोदी की गारंटी के साथ पूरे प्रदेश का विकास होगा और भ्रष्टाचारियो को सजा दी जाएगी लेकिन इस पूरे मामले में मोदी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति पर बट्टा लगता नजर आ रहा है और विष्णुदेव साय सरकार के सुशासन वाले वादे पर भी सवालिया निशान लग गया है अब देखना होगा कि इस मामले में सरकार और सरकार के अधिकारी क्या निर्णय लेते हैं या इस मामले को भी इतिहास के गर्त में धकेल दिया जाएगा।

                प्रदेश के विद्वान अधिवक्ता नरेश चंद्र गुप्ता ने भी इस मामले में एक्स पर ट्वीट कर मामले में कार्यवाही की पैरवी की है। और यह भी कहा है कि यदि कार्यवाही नहीं हुई तो पूरे साक्ष्य और सबूत के साथ स्वयं सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे ।

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