दागी दबंग इंजिनियर की बहाली, अब सुशासन सरकार की गले की हड्डी।

EOW केस के बावजूद प्रमोशन: जल संसाधन विभाग में नियमों की धज्जियां

रायपुर, छत्तीसगढ़: जल संसाधन विभाग में दागी कार्यपालन अभियंता आलोक अग्रवाल पदोन्नति  मामला अब भ्रष्टाचार मुक्त सरकार और सुशासन के दावों पर बड़ा सवाल बनता जा रहा है। पिछली भूपेश सरकार द्वारा आपराधिक मामलों के बावजूद बहाल कर प्रमोशन का रास्ता साफ करने और मौजूदा सरकार की इस पर चुप्पी, दोनों ने मिलकर राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। विधानसभा में लगातार उठ रहे सवालों और ध्यानाकर्षण प्रस्तावों से साफ है कि नियमों को ताक पर रखकर अयोग्य व्यक्ति को नियम विरुद्ध को लाभ पहुंचाया जा रहा है, जिससे विभाग के अन्य ईमानदार कर्मचारियों का मनोबल भी गिर रहा है।

मामले को लेकर विधानसभा के पटल पर कई विधायकों ने तारांकित प्रश्नों और ध्यानाकर्षण सूचनाओं जैसे प्रश्न क्र. 2367, 1880 और ध्यानाकर्षण श्रीमती शेषराज हरंबश, श्रीमती चतुरी नंद, श्रीमती संगीता सिन्हा, श्रीमती अनिला भेड़िया के माध्यम से जल संसाधन विभाग में पदोन्नति प्रक्रिया की गंभीर अनियमितताओं का खुलासा किया है। इन सभी में यह बात प्रमुखता से सामने आई है कि विभाग में सामान्य नियमों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन कर पदोन्नति दी जा रही है।

जेल से राजयोग तक: भूपेश बघेल से कनेक्शन का कमाल

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इस पूरे मामले का केंद्र बिंदु कार्यपालन अभियंता आलोक अग्रवाल हैं। विधानसभा में प्रस्तुत दस्तावेजों के अनुसार, अग्रवाल के खिलाफ EOW और ACB में दो गंभीर आपराधिक प्रकरण संख्या 56/2014 और 05/2015 आज भी लंबित हैं। इन गंभीर आरोपों के बावजूद पिछली सरकार के कार्यकाल में उन्हें न केवल बहाल किया गया, बल्कि सहायक अभियंता से अधीक्षण अभियंता के पद पर पदोन्नति भी दी गई।

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लीगल सूत्रों बताते है कि आलोक अग्रवाल EOW और ACB मामले में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद 6 साल जेल में रहे थे। पूर्ववर्ती भूपेश सरकार में स्वास्थ्य खराब होने के बाद उन्हें रायपुर जेल में शिफ्ट किया गया, जहाँ उनकी मुलाकात उस समय के तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल से हुई। बताया जाता है कि अग्रवाल ने जेल में भूपेश बघेल की जमकर आवभगत की, जिसका सरकार बनने पर उन्हें बड़ा फायदा मिला। जेल से निकलते ही उन्हें पुनः बहाल कर मलाईदार पद पर बैठा दिया गया ।

नियम ताक पर, टारगेट' पर गवाह

पदोन्नति के बाद आलोक अग्रवाल की अब जैसे लॉटरी' लग गई। आरोप है कि उन्होंने पद का दुरुपयोग करते हुए अपने खिलाफ गवाह देने वालों को चुन-चुन कर टारगेट करना शुरू कर दिया है और सबके खिलाफ झूठे मामले दर्ज करवा रहे है इतना ही नहीं, उन पर सरकार को झूठी जानकारी देकर अवैध संपत्ति अर्जित करने का भी आरोप है, जिसके विरुद्ध बिलासपुर में अभी भी मामला चल रहा है।

विपक्ष का सीधा आरोप है कि जल संसाधन विभाग ने पदोन्नति के लिए निर्धारित प्रक्रियाओं और सेवा शर्तों का खुला उल्लंघन किया है। नियमों के मुताबिक, पदोन्नति के लिए पांच साल का गोपनीय प्रतिवेदन अच्छा होना चाहिए और संबंधित अधिकारी के खिलाफ कोई विभागीय जांच या न्यायालयीन वाद लंबित नहीं होना चाहिए। लेकिन आलोक अग्रवाल के मामले में इन सभी नियमों को धता बताते हुए उन्हें पदोन्नति दी गई। विधानसभा में यह भी पूछा गया कि क्या ऐसे ही अन्य लोक सेवकों के प्रकरणों में उन्हें पदोन्नति के लिए अनुपयुक्त पाया गया या बंद लिफाफा की पद्धति अपनाई गई, और यदि ऐसा हुआ तो भेदभाव का कारण क्या था?

सरकार की चुप्पी' पर सुलगते सवाल

आलोक अग्रवाल 70-71% अस्थि दिव्यांग श्रेणी में आते हैं, जिस पर पदोन्नति के नियमों के उल्लंघन का आरोप है। विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है कि जब आपराधिक मामले लंबित हैं और दिव्यांगता को लेकर भी सवाल हैं, तो किस आधार पर उन्हें प्रमोशन दिया गया? क्या पदोन्नति समिति के समक्ष इन तथ्यों को छुपाया गया, या फिर जानबूझकर अनदेखी की गई? इन लगातार उठते गंभीर सवालों के बावजूद, सरकार की ओर से अभी तक कोई ठोस कार्रवाई या स्पष्टीकरण सामने नहीं आया है।

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