बिलासपुर में अपराध पर पुलिस का शिकंजा, फिर भी असामाजिक तत्वों पर लगाम क्यों नहीं?

 निचले स्तर पर ढिलाई बनी चुनौती; कबाड़ और गांजा तस्करी ने बढ़ाई चिंता

बिलासपुर। बिलासपुर पुलिस अधीक्षक के मार्गदर्शन में अपराधियों पर नकेल कसने की लगातार कोशिशें जारी हैं, लेकिन निचले स्तर पर व्याप्त कमियों के चलते असामाजिक तत्व सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। शहर में अवैध गतिविधियां अपने पैर पसार चुकी हैं, जिसमें चोरी के कबाड़ और गांजा जैसे मादक पदार्थों की तस्करी प्रमुख है। हालिया पुलिस कार्रवाईयों में कई जगहों पर छापेमारी कर बड़ी मात्रा में अवैध कबाड़ और नशे के सामान की बरामदगी ने अपराध की गहरी जड़ों को उजागर किया है।

कबाड़ की आड़ में संगठित अपराध

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कबाड़ कारोबार की जांच के दौरान संतोष रजक, सूरज पटेल, असगर खान और संतोष सोनी जैसे व्यापारियों के पास से भारी मात्रा में अवैध कबाड़ बरामद हुआ। यह दर्शाता है कि चोरी के सामान को खुलेआम खरीदा और बेचा जा रहा है, जो न केवल चोरी को बढ़ावा देता है, बल्कि शहरी सुरक्षा व्यवस्था को भी कमजोर करता है। पुलिस द्वारा बार-बार कार्रवाई के बावजूद इन कारोबारियों का न सुधरना इस बात का संकेत है कि या तो सजा का भय नहीं है, या कानून की प्रक्रिया धीमी है।

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गांजा तस्करी: गाँवों तक फैला जाल

गांजा तस्करी के मामले और भी चिंताजनक हैं। 70 वर्षीय ईश्वर बरेठ और महिला कांति पांडे जैसे लोगों की संलिप्तता यह बताती है कि नशे का व्यापार अब किसी वर्ग या उम्र तक सीमित नहीं रहा। मोपका क्षेत्र से पकड़े गए महेंद्र वर्मा और जीतन वर्मा के माध्यम से कृष्ण उर्फ हल्की शिकारी पवार का नाम सामने आना जिले में एक सक्रिय मादक पदार्थ आपूर्ति श्रृंखला की पुष्टि करता है।

पुलिस कार्रवाई: सराहनीय, पर पर्याप्त नहीं

पुलिस की कार्रवाई सराहनीय है, जिसमें आरोपियों को गिरफ्तार कर न्यायिक रिमांड पर भेजा गया है। यह अपराधियों के लिए एक कड़ी चेतावनी है। हालांकि, यह भी स्पष्ट है कि केवल गिरफ्तारियां ही पर्याप्त नहीं हैं। जरूरत है कि इन मामलों की सुनवाई तेजी से हो, दोषियों को जल्द सजा मिले, और अपराध की पुनरावृत्ति रोकी जाए। इसके साथ ही, पुनर्वास और नशा मुक्ति के सामाजिक उपायों को भी समानांतर रूप से लागू करना आवश्यक है।

कबाड़ और गांजा जैसे अवैध कारोबार कानून-व्यवस्था को चुनौती देते हैं और समाज की जड़ों को खोखला करते हैं। पुलिस की सक्रियता एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन अब समाज, न्याय व्यवस्था और शासन को मिलकर एक दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी ताकि अपराधियों को अपराध से लाभ मिलने की उम्मीद खत्म हो सके। सख्त कानून, तेज न्याय और सामाजिक सहयोग ही इस लड़ाई को निर्णायक दिशा में ले जा सकते हैं।

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