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N J V विशेष: 3200 करोड़ के शराब घोटाले में नया मोड़, 29 आबकारी अधिकारी खुलेआम घूम रहे, सरकार चुप
रायपुर: छत्तीसगढ़ के 3200 करोड़ के बहुचर्चित शराब घोटाले में एक नया मोड़ आया है। एक शिकायत के अनुसार, इस महाघोटाले में शामिल 29 आबकारी अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं हो रही है। आरोप है कि ये सभी अधिकारी फरार घोषित होने के बावजूद मंत्रालय और विभागों में खुलेआम घूम रहे हैं। भाजपा नेता ने इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर इन अधिकारियों को तुरंत गिरफ्तार करने और जांच में लापरवाही बरतने वाले एसीबी-ईओडब्ल्यू के प्रमुख अमरेश मिश्रा को हटाने की मांग की है।
शिकायत में कहा गया है कि यह घोटाला पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कार्यकाल में हुआ था। आरोप है कि एसीबी-ईओडब्ल्यू की जांच में लापरवाही बरती जा रही है, जिससे मुख्य साजिशकर्ता भूपेश बघेल को बचाया जा रहा है। हाल ही में इस मामले में चार्जशीट भी दायर की गई, लेकिन उसमें 29 आबकारी अधिकारियों को गिरफ्तार नहीं किया गया। इन अधिकारियों में 22 सेवारत और 7 सेवानिवृत्त हैं, जो घोटाले के मुख्य अपराधी बताए जा रहे हैं।
शिकायतकर्ता ने बताया कि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने भी इस मामले में जांच एजेंसी पर गंभीर सवाल उठाए थे। कोर्ट ने कहा था कि जिन डिस्टिलरियों ने 3200 करोड़ रुपये की अवैध शराब की आपूर्ति की, उन्हें आरोपी तक नहीं बनाया गया, जबकि उनका नाम प्रवर्तन निदेशालय ईडी की शिकायत में था।
आबकारी अधिकारियों की मिलीभगत से हुआ घोटाला
आरोप है कि नकली होलोग्राम का उपयोग करके सरकारी दुकानों से नकली शराब बेची गई, जिसमें इन आबकारी अधिकारियों की सीधी मिलीभगत थी। उन्होंने डिस्टिलरी मालिकों, बोतल आपूर्तिकर्ताओं और नकली होलोग्राम एजेंसियों के साथ मिलकर इस बड़े घोटाले को अंजाम दिया। इसके अलावा, शिकायत में एक और चौंकाने वाला खुलासा किया गया है। कि विदेशी शराब निर्माताओं से रिश्वत लेने के लिए आबकारी विभाग ने 'एफ.एल.10-ए' लाइसेंस योजना चलाई थी। यह लाइसेंस विशेष रूप से अनवर ढेबर के करीबी तीन फर्मों को दिया गया था। इन फर्मों ने विदेशी शराब खरीदी और राज्य सरकार को 10% लाभ पर बेची। इस लाभ का 60% सिंडिकेट को और 40% लाइसेंसधारकों को मिला। यह पूरा लेन-देन आबकारी अधिकारियों की संलिप्तता के बिना संभव नहीं था।
अदालत में भी आरोपियों का पक्ष ले रहे सरकारी वकील
शिकायत में एक के बाद एक गंभीर आरोप लगाए गए हैंशिकायतकर्ता ने बताया कि एसीबी के अभियोजक श्री सिद्धार्थ ने अदालत में आरोपियों के पक्ष में दलीलें दीं। उन्होंने कहा कि चूंकि आरोपी जांच में सहयोग कर रहे हैं, इसलिए उन्हें जमानत मिलनी चाहिए। शिकायतकर्ता ने इसे अभियोजन पक्ष के कर्तव्य का उल्लंघन बताया है। इसके अलावा, घोटाले के एक महत्वपूर्ण किरदार आबकारी के एक बड़े रसूखदार अधिकारी को भी भारी धनराशि के बदले बचाया गया। मीडिया में भी ऐसी खबरें थीं कि इन आरोपियों को गिरफ्तार न करने के बदले रिश्वत दी गई, जिसका फायदा आखिरकार मुख्य साजिशकर्ता भूपेश बघेल को मिला।
जांच में लापरवाही के कारण झारखंड में गिरफ्तारी
शिकायत में बताया गया है कि एसीबी-ईओडब्ल्यू की लापरवाही के कारण ही झारखंड पुलिस ने इसी घोटाले के एक आरोपी को गिरफ्तार किया, जो छत्तीसगढ़ से जुड़ा था। यह दिखाता है कि छत्तीसगढ़ में जांच किस तरह से धीमी गति से चल रही है।
क्या है मांग?
शिकायतकर्ता भाजपा नेता ने अपने पत्र में केंद्रीय गृह मंत्रालय से अपील की है कि वे तत्काल हस्तक्षेप करें और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करें।
उन्होंने दो प्रमुख मांगें रखी हैं:
1...एसीबी-ईओडब्ल्यू को निर्देश दिया जाए कि 29 फरार आबकारी अधिकारियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए।
2....निष्पक्ष जांच के लिए एसीबी-ईओडब्ल्यू निदेशक अमरेश मिश्रा को तत्काल हटाकर उनकी जगह एक ईमानदार अधिकारी की नियुक्ति की जाए।
यह देखना बाकी है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय इस गंभीर मामले में क्या कदम उठाता है।
