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शराब घोटाला: 22 आबकारी अधिकारियों की अग्रिम जमानत खारिज, अब गिरफ्तारी पर सस्पेंस!
रायपुर, 27 जुलाई: छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित 3200 करोड़ रुपये के शराब घोटाले में 22 निलंबित आबकारी अधिकारियों को बड़ा झटका लगा है. विशेष कोर्ट ने 18 जुलाई को इनकी अग्रिम जमानत याचिकाएं खारिज कर दी हैं. इस फैसले के बाद से इन अधिकारियों की गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है, लेकिन अब तक कोई गिरफ्तारी न होने से कई सवाल खड़े हो गए हैं. ईओडब्ल्यू ने 2300 पन्नों का चालान पेश किया था, जिसमें घोटाले में इन अधिकारियों की संलिप्तता का खुलासा हुआ था.
सूत्रों के अनुसार, विशेष न्यायालय से अग्रिम जमानत अर्जी खारिज होने के बाद भी ईओडब्ल्यू और एसीबी इन अधिकारियों को गिरफ्तार करने में देरी कर रही है. ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि जांच एजेंसियां इन अधिकारियों को हाईकोर्ट में जमानत याचिका दायर करने का इंतजार कर रही हैं. इनसें अनेक प्रकार के संदेह पैदा हो रहे हैं. बाजार में यह चर्चा भी जोरों पर है कि अधिकारियों की भाजपा के कुछ बड़े नेताओं से गिरफ्तारी न होने और जमानत मिलने की 'डील' हुई थी, लेकिन विशेष न्यायालय से जमानत खारिज होने के बाद अब ये अधिकारी खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं.
क्या है पूरा मामला?
यह घोटाला 2019 से 2023 के बीच का है, जब आबकारी विभाग के अधिकारियों ने कथित तौर पर अनवर ढेबर के सिंडिकेट के साथ मिलकर अवैध शराब बिक्री का खेल रचा. जांच में सामने आया कि बिना ड्यूटी पेड शराब को सरकारी दुकानों में बेचा गया, जिससे राज्य को भारी राजस्व का नुकसान हुआ. ईओडब्ल्यू की चार्जशीट में खुलासा हुआ है कि इस घोटाले से 88 करोड़ रुपये की अवैध संपत्ति अर्जित की गई. अनवर ढेबर को इस रैकेट का मास्टरमाइंड बताया जा रहा है, जिसे 90 करोड़ रुपये का कमीशन मिला. रायपुर निवासी सामाजिक कार्यकर्ता संजय राठौर ने इस घोटाले को सत्ताधारी नेताओं और अधिकारियों की मिलीभगत का नतीजा बताया है और कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए दोषियों को सजा दिलाने की मांग की है. इस मामले में पूर्व मंत्री कवासी लखमा और पूर्व आईएएस अनिल टुटेजा जैसे बड़े नाम भी शामिल हैं. ईओडब्ल्यू और ईडी की जांच में यह भी सामने आया है कि 2017 में बदली गई आबकारी नीति ने इस घोटाले की राह आसान कर दी थी.
कोर्ट के इस फैसले से प्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है. विशेषज्ञों का मानना है कि जमानत खारिज होने से अधिकारियों पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है, और अगर सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो यह भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को कमजोर कर सकता है. अब सबकी निगाहें ईओडब्ल्यू की अगली कार्रवाई और 22 जुलाई को होने वाली सुनवाई पर टिकी हैं.
ये हैं आरोपी अधिकारी:
जनार्दन कौरव (सहायक जिला आबकारी अधिकारी), अनिमेष नेताम (उपायुक्त आबकारी), विजय सेन शर्मा (उपायुक्त आबकारी), अरविंद कुमार पाटले (उपायुक्त आबकारी), प्रमोद कुमार नेताम (सहायक आयुक्त आबकारी), रामकृष्ण मिश्रा (सहायक आयुक्त आबकारी), विकास कुमार गोस्वामी (सहायक आयुक्त आबकारी), इकबाल खान (जिला आबकारी अधिकारी), नितिन खंडुजा (सहायक जिला आबकारी अधिकारी), नवीन प्रताप सिंग तोमर (सहायक आयुक्त आबकारी), मंजुश्री कसेर (सहायक आबकारी अधिकारी), सौरभ बख्शी (सहायक आयुक्त आबकारी), दिनकर वासनिक (सहायक आयुक्त आबकारी), मोहित कुमार जायसवाल (अधिकारी जिला आबकारी), नीतू नोतानी ठाकुर (उपायुक्त आबकारी), गरीबपाल सिंह दर्दी (जिला आबकारी अधिकारी), नोहर सिंह ठाकुर (उपायुक्त आबकारी), सोनल नेताम (सहायक आयुक्त, आबकारी), प्रकाश पाल (सहायक आयुक्त आबकारी), अलेख राम सिदार (सहायक आयुक्त आबकारी), आशीष कोसम (सहायक आयुक्त आबकारी), राजेश जायसवाल (सहायक आयुक्त आबकारी).
