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राजधानी में 'वाटरवे लूट कांड' का पर्दाफाश: नहर-नाले पर बनी अवैध कॉलोनियों पर सरकार का डंडा
रायपुर: मुख्य सचिव के शपथपत्र से खुली पोल, भू-माफिया और अधिकारियों की मिलीभगत उजागर
रायपुर। हाई कोर्ट के सख्त निर्देश के बाद भी छत्तीसगढ़ में भू माफियाओं और रेत माफियाओं का चहलकदमी बढ़ती जा रही है। ताजा मामला छत्तीसगढ़ के रायपुर का हैजहां सरकारी नहरों और नालों की ज़मीनों पर अवैध कब्ज़ा कर आलीशान कॉलोनियों और बगीचों के निर्माण का एक बड़ा घोटाला हुआ है, जिसे 'वाटरवे लूट कांड' का नाम दिया जा रहा है। छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्य सचिव अमिताभ जैन द्वारा हाईकोर्ट में दायर एक शपथपत्र ने इस पूरे मामले की परतें खोल दी हैं, जिससे सरकार, प्रशासन और बिल्डरों की सांठगागांठ पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
यह खुलासा तब हुआ जब छत्तीसगढ़ अधिकार आंदोलन समिति ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL क्रमांक 81/2021) दायर की, जिसमें आरोप लगाया गया था कि रायपुर के अमलीडीह क्षेत्र में निजी बिल्डरों ने नहर और नाले की ज़मीन पर अवैध रूप से कॉलोनियां बसा दी हैं। माननीय उच्च न्यायालय ने 24 जुलाई 2024 को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए थे, जिसके बाद रायपुर कलेक्टर को अतिक्रमणकारियों पर शिकंजा कसने के आदेश मिले।
मुख्य सचिव अमिताभ जैन के शपथपत्र के अनुसार, रायपुर कलेक्टर के निर्देश पर 5 सितंबर 2024 को नायब तहसीलदार ने 37 अतिक्रमणकारियों के खिलाफ बेदखली वारंट जारी किए और 10 सितंबर से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है, जो अभी भी जारी है। 9 सितंबर की एक रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 'अमृत होम्स प्रा. लि.' नामक बिल्डर ने नहर पर बाउंड्री वॉल खड़ी कर रास्ता और गार्डन बना दिया था। अब यह दीवार हटा दी गई है और नहर को उसके मूल स्वरूप में लाने का काम चल रहा है।
इस 'वाटरवे लूट कांड' में कुछ बड़े बिल्डरों के नाम सामने आए हैं, जिनमें प्रीतपाल सिंह विंद्रा (अमृत होम्स), संजय सुंदरानी, संतोष जैन, मेसर्स आहुजा प्रोजेक्ट प्रा.लि. के डायरेक्टर महेंद्र आहुजा, मेसर्स रघु वेंचर प्रा.लि. के डायरेक्टर पी. आदर्श और संजय नचरानी शामिल हैं। इन पर आरोप है कि इन्होंने बिना किसी वैध स्वीकृति के नाले और नहर की ज़मीन पर कॉलोनियां, रास्ते और बगीचे खड़े कर दिए।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कॉलोनीवासियों को प्लॉट बेचते समय यह जानकारी नहीं दी गई कि उस ज़मीन के नीचे नाला है। लेआउट के नक्शे में भी नाले को नहीं दर्शाया गया, जिससे खरीदारों को पूरी तरह अंधेरे में रखा गया। यह सवाल खड़ा होता है कि रेरा और नगर एवं ग्राम निवेश निदेशालय ने बिना जांचे ऐसे लेआउट को मंज़ूरी कैसे दे दी? शपथपत्र और दस्तावेजों के अनुसार, इस पूरे खेल में पटवारी, तहसीलदार, एसडीएम, नगर निगम और योजना विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत साफ दिख रही है।स्थानीय नागरिकों का कहना है कि भोपाल से जुड़े बिल्डर सब कुछ बेचकर फरार हो गए हैं, जिससे सैकड़ों परिवार अब संकट में हैं। नाला अब भी ज़मीन के नीचे बह रहा है, और बारिश में जलभराव की आशंका बढ़ गई है। यह सिर्फ ज़मीन का मामला नहीं, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे 'ड्रॉइंग रूम प्लानिंग' से प्राकृतिक संसाधनों का भी दुरुपयोग किया गया। अदालत की सख्ती के बाद ही सरकार हरकत में आई है। यह मामला अब पूरे प्रदेश में अतिक्रमण विरोधी अभियानों की दिशा तय कर सकता है, जिस पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं।
