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सरकारी अस्पतालों में दवाओं का टोटा! डॉक्टर लिखते हैं दवाएं, पर मरीज बाहर से खरीदने को मजबूर
रायपुर। शहर के सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में इन दिनों दवाओं की भारी कमी सामने आ रही है। गरीब और कमजोर वर्ग के जो मरीज मुफ्त इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में आते हैं, उन्हें इलाज के बाद भी दवाएं नहीं मिल पा रही हैं। मजबूरन मरीजों को निजी मेडिकल स्टोर से महंगी कीमतों पर दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं। यह स्वास्थ्य सुविधाओं के दावों पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।
जब मीडिया ने शहर के स्वास्थ्य केंद्रों का जायजा लिया, जहां पता चला कि मरीजों को डॉक्टर द्वारा लिखी गई सभी आवश्यक दवाएं उपलब्ध नहीं होतीं। अस्पताल के मेडिकल स्टोर के कर्मचारी जिन दवाओं की उपलब्धता नहीं होती, उन पर टिक लगाकर मरीजों को बाहर के निजी स्टोर से खरीदने के लिए भेज देते हैं।
ये दवाएं नहीं मिल रहीं:
- अमोक्सीक्लैव-625 टैबलेट
- मेनोरेग सिरप
- यू-ज्ञानटोन सिरप
- साइक्लोपाम सस्पेंशन सिरप
ये दवाएं बाजार में 150 से 250 रुपये तक की मिलती हैं। ऐसे में गरीब मरीजों पर आर्थिक बोझ पड़ रहा है। गुढ़ियारी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का हाल और बुरा है। यहां रोज सैकड़ों मरीज आते हैं, जिनमें गर्भवती महिलाएं भी शामिल हैं। इलाज के बाद जो दवाएं देनी होती हैं, वे स्वास्थ्य केंद्र में मौजूद नहीं होतीं। मेडिकल कर्मचारी दवाई के नाम पर टिक लगाकर उन्हें बाहर के निजी मेडिकल स्टोर से खरीदने के लिए भेज देते हैं।
इलाज करवाने आई एक महिला मरीज ने बताया कि डॉक्टर तो ईमानदारी से इलाज करके दवाएं पर्चे पर लिख देते हैं, मगर पर्ची पर लिखी तीन दवाओं में से दो दवाएं तक स्वास्थ्य केंद्र के स्टोर में नहीं मिल पातीं। ऐसे में उन्हें हर बार निजी मेडिकल स्टोर से खरीदना पड़ता है। यह प्रशासनिक लापरवाही सीधे तौर पर मरीजों की जेब काट रही है और सरकारी स्वास्थ्य सेवा के खोखले दावों की पोल खोल रही है।
