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SIR को लेकर राज्य सरकारों को सुप्रीम कोर्ट का निर्देश, 'बीएलओ पर काम का दबाव कम करें, छुट्टी भी दीजिए'
नई दिल्ली। देश के 12 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश इन दिनों मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान से गुजर रहे हैं। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) के रूप में काम कर रहे कर्मचारियों की मौत पर गंभीर चिंता जताई। अदालत ने कहा कि मतदाता सूची संशोधन के दौरान बीएलओ पर अत्यधिक दबाव डाला जा रहा है, जिसके चलते कई मामलों में कर्मचारियों ने आत्महत्या तक कर ली है। कोर्ट ने इस स्थिति को बेहद चिंताजनक बताते हुए अधिकारियों से जवाब तलब किया है।
दरअसल, मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य सरकारों को बीएलओ की कार्य स्थितियों और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार ठहराया। इसके साथ ही तर्क दिया कि जहां दस हजार कर्मचारी तैनात किए गए हैं, वहां 30,000 भी तैनात किए जा सकते हैं। इससे काम करने में आसानी होगी और काम का बोझ भी हल्का हो जाएगा।
'छुट्टी मांगने वाले BLO को मिले राहत'
वहीं, मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष न्यायालय ने सरकारों से यह भी कहा कि ड्यूटी से छूट का अनुरोध करने वाले बीएलओ को छुट्टी दी जानी चाहिए और उनके स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त किया जाना चाहिए। शीर्ष न्यायालय ने माना कि कई बीएलओ गंभीर बीमार होने के कारण ड्यूटी से छुट्टी मांग रहे हैं। वहीं, न्यायालय ने यह भी कहा कि यही ऐसे बीएलओ को राहत नहीं प्रदान की जाती है को वह अदालत का रूख कर सकता है।
विजय की पार्टी ने किया था कोर्ट का रुख
गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्देश अभिनेता विजय की पार्टी तमिलगा वेत्री कझगम की याचिका के बाद दिया है। टीवीके ने देश के कई राज्यों में कई बीएलओ की मौत के विवाद के बीच कोर्ट का रुख किया था। टीवके ने चुनाव आयोग पर प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 32 के तहत जेल भेजने की धमकी देकर बीएलओ को काम करने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया था।
टीवीके ने दिया था ये तर्क
विजय की पार्टी टीवीके का तर्क है कि प्रत्येक राज्य में ऐसे परिवार हैं जिनके बच्चे अनाथ हो गए हैं या माता-पिता अलग हो गए हैं क्योंकि चुनाव आयोग धारा 32 के तहत नोटिस भेज रहा है। टीवीके का दावा है कि अकेले उत्तर प्रदेश में ही बीएलओ के खिलाफ 50 से ज्यादा पुलिस मामले दर्ज किए गए हैं, चुनाव आयोग से बस यही अनुरोध है कि वह ऐसी कठोर कार्रवाई न करे। हालांकि, न्यायालय ने बीएलओ की मौतों के लिए चुनाव आयोग को जिम्मेदार ठहराने की मांग को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश कांत ने कहा कि बीएलओ राज्य सरकार के कर्मचारी हैं।
चुनाव आयोग ने टीवीके के आरोपों को बताया निराधार
इन सब के बीच चुनाव आयोग ने इस याचिका को पूरी तरीके झूठा और निराधार बताया है और तर्क दिया है कि मतदाता पुनः सत्यापन कार्य में देरी करने से चुनावों पर भी बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। उल्लेखनीय है कि तमिलनाडु और केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने को हैं। बंगाल में भी 2026 में ही विधानसभा चुनाव होंगे। वहीं, गुजरात और उत्तर प्रदेश में 2027 में विधानसभा चुनाव होने को हैं। वहां भी विशेष गहन पुनरीक्षण कार्य चल रहा है।
