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सुशासन के बजाय 'ठेका राज'? छत्तीसगढ़ में 'पंच तत्वों' के हाथ सत्ता की कमान
रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सत्ता के गलियारों में इन दिनों अजीब सी बेचैनी है। एक ओर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय 'सुशासन तिहार' मनाने में व्यस्त हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार के भीतर से ही ऐसी खबरें छनकर आ रही हैं, जो 'ठेका राज' की ओर इशारा कर रही हैं। कहा जा रहा है कि मंत्रियों की भूमिका सिर्फ नाम मात्र की रह गई है और उनके कुछ करीबी या सरकार से जुड़े 'खासमखास' लोग विभागों की असली कमान संभाले हुए हैं।
सूत्रों के मुताबिक, वन, कृषि और उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विभागों में मंत्री की जगह उनके 'वफादारों' का फैसला ही अंतिम माना जा रहा है। उदाहरण के लिए, वन विभाग, जिसकी जिम्मेदारी एक आदिवासी मंत्री के पास है, उसकी पतवार एक प्रभावशाली "भाईसाहब" के नजदीकी अफसर के हाथ में बताई जा रही है। कृषि विभाग की फाइलें मंत्रालय की बजाए, राजधानी के एक वीआईपी रोड स्थित होटल की तीसरी मंजिल से ऑपरेट होने की चर्चा गर्म है। उद्योग विभाग में तो बाकायदा एक "त्रिमूर्ति" का दबदबा है, जो बिना किसी आधिकारिक पद के बैठकों में शामिल होते हैं और निर्णयों को प्रभावित करते हैं।
सीएम और सचिव के बीच खटास, पॉवर शिफ्ट का खेल!
बात सिर्फ मंत्रियों तक ही सीमित नहीं है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और उनके एक प्रमुख सचिव के बीच तल्खी की खबरें भी सामने आ रही हैं। नाराजगी इस कदर बढ़ी कि उस सचिव के कई अधिकार किसी अन्य अधिकारी को सौंप दिए गए। हालिया प्रशासनिक फेरबदल को इसी का नतीजा माना जा रहा है, जहां सीएम ने उस सचिव से एक अहम जिम्मेदारी वापस लेकर अपने एक भरोसेमंद अफसर को सौंप दी है। अब सचिवालय के सबसे बड़े अफसर मुख्यमंत्री के साथ हर मंच पर दिखाई दे रहे हैं, जो बदलते समीकरणों का साफ संकेत है।
'एक बैच के पांच अय्यार' - सरकार के असली सूत्रधार?
प्रदेश की नौकरशाही और राजनीति में अब 'पंच तत्वों' की चर्चा जोरों पर है। ये एक ही बैच के पांच ऐसे अफसर बताए जा रहे हैं, जिनमें आईएएस, आईपीएस और कुछ राजनीतिक पैठ वाले व्यक्ति शामिल हैं। कहा जा रहा है कि पूरा सिस्टम इन्हीं की उंगलियों पर नाच रहा है। ये सीधे तौर पर सीएम के करीब हैं या उनके विश्वसनीय अफसरों के खास। कौन अफसर दिल्ली जाएगा, किसे महत्वपूर्ण कुर्सी मिलेगी या किससे जिम्मेदारी छीनी जाएगी, यह सब इन्हीं 'पंच तत्वों' की मर्जी से तय होने की बात कही जा रही है।
हालाँकि मुख्यमंत्री की मंशा सुशासन लाने की ही होगी, लेकिन जिस तरह से विभागों का संचालन मंत्रियों के हाथ से निकलकर कुछ चुनिंदा चेहरों के पास जा रहा है, वह तस्वीर 'ठेका राज' की लग रही है। अगर इस पर जल्द लगाम नहीं लगाई गई तो यह न सिर्फ मुख्यमंत्री की छवि को धूमिल कर सकता है, बल्कि पूरी सरकार की साख पर भी गंभीर सवाल खड़े कर सकता है।
