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भारत माला घोटाला: बिना रूट तय किए कर लिया जमीन अधिग्रहण, 84 किसानों को करोड़ों का मुआवजा
भारत माला घोटाला: बिना रूट तय किए कर लिया जमीन अधिग्रहण, 84 किसानों को करोड़ों का मुआवजा
भारत माला प्रोजेक्ट में बड़ा खुलासा! रायपुर-विशाखापट्टनम कॉरिडोर के लिए रूट तय होने से पहले ही जमीन अधिग्रहण कर लिया गया और करोड़ों का मुआवजा बांटा गया। जांच में सामने आई राजस्व रिकॉर्ड में भारी गड़बड़ी।
रायपुर: भारतमाला परियोजना के तहत रायपुर-विशाखापट्टनम इकोनॉमिक कॉरिडोर के लिए अधिग्रहित की गई जमीनों में बड़ा घोटाला उजागर हुआ है। अभनपुर तहसील के चार गांवों में राजस्व अधिकारियों ने रूट फाइनल होने से पहले ही किसानों की निजी जमीनों को भारतमाला प्रोजेक्ट के नाम पर दर्ज कर दिया। इतना ही नहीं, अवार्ड जारी होने से पहले करोड़ों रुपये का मुआवजा भी मंजूर कर लिया गया।
पड़ताल में सामने आया कि जिन जमीनों का नामांतरण 2018 और 2019 में कर दिया गया था, उन जमीनों को केंद्र सरकार ने 2021 में अधिग्रहित करने की मंजूरी दी थी। इस तरह करीब 84 किसानों की निजी जमीनों को पहले ही "सरकारी" कर दिया गया।
कैसे हुआ घोटाला?
1. नामांतरण पहले, रूट निर्धारण बाद में
रूट को केंद्र सरकार ने अप्रैल 2019 में फाइनल किया, लेकिन खसरा नंबर 1664/9 का नामांतरण सितंबर 2018 में ही कर दिया गया था। किसान किशोर शर्मा की मात्र 0.0100 हेक्टेयर जमीन के बदले मार्च 2021 में उन्हें 1.18 करोड़ का मुआवजा मिला।
2. अधिग्रहण की मंजूरी से 2 साल पहले जमीन दर्ज
नायकबांधा गांव के कई खसरों का नाम 2019 में ही परिवर्तित कर भारतमाला परियोजना के नाम कर दिया गया था, जबकि केंद्र ने इसकी अधिग्रहण मंजूरी मार्च 2021 में दी।
3. सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा नायकबांधा में
यहां 72 खसरा नंबरों को सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज किया गया। वहीं भिल्वाडीह में 4, टोकरो में 6 और सातपारा में 3 खसरों का नामांतरण मुआवजा अवार्ड से पहले किया गया।
मुआवजे की भारी भरकम रकम
किशोर शर्मा: 1.18 करोड़ (सितंबर 2018 को नामांतरण)
शशिकांत: 38.68 लाख (अक्टूबर 2018 को नामांतरण)
अन्य किसानों को भी लाखों का मुआवजा दिया गया, जबकि जमीनें 2019 से पहले ही सरकारी कर दी गई थीं।
नियमों की खुलेआम अवहेलना
कानूनन तब तक किसी जमीन का नामांतरण नहीं किया जा सकता, जब तक कि अधिग्रहण प्रक्रिया पूरी न हो जाए और अंतिम अधिसूचना (अवार्ड) जारी न हो। लेकिन इस मामले में रूट निर्धारण और अधिग्रहण की प्रक्रिया से 2 साल पहले ही सरकारी नामांतरण कर दिया गया, जिससे स्पष्ट होता है कि अंदरूनी सांठगांठ और भ्रष्टाचार की मिलीभगत से करोड़ों रुपये का फर्जी मुआवजा बांटा गया।
अब क्या होगा?
राजस्व विभाग के उच्च अधिकारियों का कहना है कि यदि इस प्रकार की अनियमितता हुई है, तो जांच के बाद जिम्मेदारों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। फिलहाल, स्थानीय प्रशासन पर दबाव बढ़ रहा है कि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए और घोटाले की निष्पक्ष जांच कराई जाए।
