छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर ठोका 1 लाख का जुर्माना, दहेज प्रताड़ना का है मामला , बिना नोटिस दिए पुलिस ने किया था गिरफ्तार

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर ठोका 1 लाख का जुर्माना, दहेज प्रताड़ना का है मामला , बिना नोटिस दिए पुलिस ने किया था गिरफ्तार बिलासपुर :  चार साल पुराने दहेज़ प्रताड़ना के मामले में छत्तीसगढ़ में पहली बार धारा 41 ए का पालन नहीं करने पर हाईकोर्ट ने राज्य शासन पर 1 लाख का […]

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर ठोका 1 लाख का जुर्माना, दहेज प्रताड़ना का है मामला , बिना नोटिस दिए पुलिस ने किया था गिरफ्तार


बिलासपुर :  चार साल पुराने दहेज़ प्रताड़ना के मामले में छत्तीसगढ़ में पहली बार धारा 41 ए का पालन नहीं करने पर हाईकोर्ट ने राज्य शासन पर 1 लाख का जुर्माना लगाया है। भिलाई के युवक दीपक त्रिपाठी की याचिका पर हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया है। अपने आदेश में चीफ जस्टिस ने राज्य शासन को फटकार भी लगाई है कि प्रदेश के हर थाने में 7 साल से कम की सजा वाले मामलों में धारा 41 A के नोटिस का पालन किया जाए। ध्यान रहें कि 41 A में बताया गया है कि गिरफ्तारी से पहले आरोपी को नोटिस भेजकर जवाब मांगना जरूरी है।

चार साल पुराना मामला

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याचिका के मुताबिक चार साल पहले दुर्ग महिला थाना प्रभारी और महिला थाना की में SI ने एक युवती के आवेदन पर झूठा दहेज का मामला दर्ज कर लिया था। जिसकी वजह से उसे दो महीने से अधिक का समय जेल में बिताने पड़े थे। याचिकाकर्ता ने बताया कि मामले में रिपोर्ट करवाते समय युवती ने अपने बयान में यह कहा था कि उसकी और दीपक की शादी की जानकारी घर में किसी को नहीं है और न ही वह अपने ससुराल कभी गई है। बावजूद इसके युवक पर मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भेज दिया गया। याचिकाकर्ता दीपक की ओर से कहा गया कि बयान के बाद महिला थाना प्रभारी ने युवती से कोरे कागज पर हस्ताक्षर ले लिए और उसके बाद दहेज का मामला बनाकर अपराध दर्ज कर लिया। इसके बाद उन्हें 41 A का नोटिस दिए बिना गिरफ्तार भी कर लिया गया।

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पुलिस की लापरवाही से जेल में बिताने पड़े 77 दिन

याचिका में कहा गया कि पुलिस की लापरवाही के कारण पूरा मामला हुआ है। याचिका में बताया गया कि 28 जनवरी 2020 को एक शिकायत के आधार पर उसी दिन धारा 498 के दहेज़ प्रताड़ना का मामला दर्ज कर लिया गया। अगले दिन 29 जनवरी 2020 को याचिकाकर्ता को गिरफ्तार भी कर लिया गया। इसके बाद लॉकडाउन लग गया और याचिकाकर्ता को 77 दिन जेल में बिताना पड़ा। लेकिन हाईकोर्ट से मामले में जमानत मिलने के बाद तत्कालीन एसपी और आईजी से मामले की जांच करने आवेदन दिया गया। जिसकी जांच में महिला थाना प्रभारी और एसआई द्वारा दर्ज रिपोर्ट में 41 A के नोटिस का कोई उल्लेख नहीं था। पुलिस कर्मियों की गलती सामने आने के बाद भी पुलिस अधीक्षक ने उन पर कोई कार्रवाई नहीं की। जिसके बाद उसने हाईकोर्ट में याचिका लगाई जिसके चार साल बाद अब फैसला आया है। इस फैसले में चीफ जस्टिस ने राज्य शासन को 1 लाख रुपए का हर्जाना आवेदक को देने का आदेश दिया है।

क्या है धारा 41A का नोटिस

अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ उन धाराओं के तहत शिकायत दर्ज है जिसमें सात साल से कम की सजा का प्रावधान है तो गिरफ्तार करने से पहले पुलिस द्वारा उस व्यक्ति को नोटिस भेजना अनिवार्य है, जिसके बारे में धारा 41A में बताया गया है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है कि इन मामलों में पुलिस बिना सूचना दिए किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकती है। अगर पुलिस किसी को नोटिस भेजती है तो नोटिस जिस व्यक्ति के नाम निकाला गया है उसकी भी यह जिम्मेदारी है कि वह निर्देशों का पालन करे और तय समय पर पुलिस के सामने हाजिर हो । हालांकि अगर पुलिस को लगा कि गिरफ्तारी जरूरी है तो वह गिरफ्तार भी कर सकती है लेकिन इसके लिए भी पुलिस को लिखित में गिरफ्तारी के लिए वजह बतानी होगी।

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