चीन और पाकिस्तान की बढ़ने वाली है टेंशन! भारत को जल्द मिलेंगी ये हाई-तकनीकी मिसाइलें, जानें कैसे करती हैं काम

Hypersonic Missiles: भारत की प्रमुख रक्षा अनुसंधान संस्था DRDO (Defence Research and Development Organisation) लगातार देश की सैन्य ताकत को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए आधुनिक और उन्नत हथियार प्रणालियों पर काम कर रही है. इसमें हाइपरसोनिक मिसाइलें, हाई-एनर्जी लेजर, स्टील्थ फाइटर जेट, एंटी-ड्रोन तकनीक और एयर डिफेंस सिस्टम शामिल हैं. NDTV को दिए एक साक्षात्कार में DRDO प्रमुख डॉ. समीर वी कामत ने बताया कि कैसे भारत अगली पीढ़ी के अत्याधुनिक हथियार विकसित करने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है.

सबसे पहले चर्चा है ब्रह्मोस-NG (नेक्स्ट जनरेशन) क्रूज़ मिसाइल की जो मौजूदा ब्रह्मोस मिसाइल से हल्की और छोटी होगी. इसका उद्देश्य इसे विभिन्न प्रकार के लड़ाकू विमानों पर लगाना है जबकि अभी की ब्रह्मोस केवल Su-30MKI जैसे भारी जेट पर ही फिट हो सकती है. DRDO इसकी रेंज बढ़ाने और साइज घटाने पर काम कर रहा है ताकि भारतीय वायुसेना को अधिक रणनीतिक लचीलापन मिल सके.

दो हाइपरसोनिक मिसाइलों पर हो रहा काम
इसके साथ ही दो हाइपरसोनिक मिसाइल सिस्टमों पर भी काम हो रहा है. इनमें से एक है हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HGV) जो अपने परीक्षणों के अंतिम चरण में है और अगले दो से तीन साल में सेना में शामिल हो सकता है. वहीं दूसरी दिशा में स्क्रैमजेट इंजन तकनीक में भी बड़ी सफलता मिली है, जो 1000 सेकंड तक संचालित रही. इसके जरिए हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनाने की तैयारी है, जो सरकार की मंजूरी मिलने पर 5-7 वर्षों में तैयार हो सकती है.

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एयर-टू-एयर मिसाइल
हवाई युद्ध क्षमता को मजबूत करने के लिए DRDO एयर-टू-एयर मिसाइल ‘अस्त्र Mk-2 और Mk-3’ पर काम कर रहा है. वहीं ज़मीन से हमला करने वाली मिसाइलें ‘रुद्रम-2’, ‘रुद्रम-3’ और ‘रुद्रम-4’ भारतीय सशस्त्र बलों को और भी सशक्त बनाएंगी. ड्रोन जैसे खतरों से निपटने के लिए DRDO एक डायरेक्टेड एनर्जी वेपन सिस्टम पर भी काम कर रहा है, जिसमें लेजर और हाई पावर माइक्रोवेव तकनीक शामिल होगी. भारत के एयर डिफेंस नेटवर्क को मज़बूत करने के लिए ‘कुशा’ नामक लॉन्ग रेंज सर्फेस-टू-एयर मिसाइल सिस्टम का विकास भी तेज़ी से चल रहा है.

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स्वदेशी स्टील्थ फाइटर जेट
वहीं स्वदेशी स्टील्थ फाइटर जेट, AMCA (एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) भी अब नई साझेदारी मॉडल के तहत विकसित हो रहा है. इस प्रोजेक्ट में HAL के साथ निजी कंपनियों की भागीदारी या जॉइंट वेंचर की संभावना है, और इसके लिए हाल ही में ADA ने EOI (Expression of Interest) जारी किया है. ज़मीन पर तैनात बलों के लिए हल्के टैंक ‘ज़ोरावर’ का निर्माण भी लगभग पूरा हो चुका है, जिसे लद्दाख और सिक्किम जैसे ऊंचे इलाकों के लिए डिजाइन किया गया है.

इसके परीक्षण पूरे हो चुके हैं और अब इसे फील्ड ट्रायल के लिए भेजा जाएगा. डॉ. कामत ने यह भी स्पष्ट किया कि अब DRDO की रणनीति पूरी तरह बदल चुकी है. उन्होंने कहा, “अब हमें यह समझ आ गया है कि हमारे सभी हथियार ऐसे माहौल में काम करने चाहिए जो इलेक्ट्रॉनिक रूप से अवरुद्ध हो. इसके लिए पूरी तरह से ऑटोनॉमस सिस्टम तैयार करने होंगे.”

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