सुप्रीम कोर्ट ने बांग्लादेशी महिला उसके बच्चे को दी भारत में एंट्री की इजाजत, कहा- 'कानून को इंसानियत के आगे झुकना पड़ता है'

नई दिल्ली। बांग्लादेश भेजी गई सोनाली खातून के लिए सुप्रीम कोर्ट उम्मीद की नई किरण बनकर सामने आया है। 27 जून को बांग्लादेशी होने के शक में सोनाली और उसके परिवार के पांच सदस्यों को सीमा पार भेज दिया गया था, लेकिन अब देश की सर्वोच्च अदालत ने इंसानियत को कानून से ऊपर रखते हुए सोनाली और उसके आठ साल के बच्चे को वापस भारत आने की अनुमति दे दी है। नौ महीने की गर्भवती सोनाली के लिए यह फैसला राहत की सांस लेकर आया है।

कानून को कभी-कभी इंसानियत के आगे झुकना पड़ता है – सुप्रीम कोर्ट
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट कहा कि कभी-कभी परिस्थितियाँ मानवीय दृष्टि से फैसले मांगती हैं। कोर्ट ने केंद्र सरकार से सोनाली और उसके बेटे को तुरंत भारत लाने और आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराने को कहा। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी अदालत को बताया कि केंद्र केवल मानवीय आधार पर इस कदम के लिए तैयार हुआ है और यह निर्णय किसी अन्य मामले के लिए मिसाल नहीं बनेगा।

पश्चिम बंगाल सरकार को स्पष्ट निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को आदेश दिया है कि सोनाली के आठ साल के बच्चे की पूरी देखभाल की जाए। वहीं, बीरभूम के चीफ मेडिकल ऑफिसर को सोनाली को हर संभव चिकित्सा सुविधा देने का निर्देश दिया गया है, ताकि उसकी गर्भावस्था के दौरान किसी भी तरह की परेशानी न हो।

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निगरानी में रखा जाएगा, फिर दिल्ली भेजा जाएगा
अदालत ने स्पष्ट किया कि सोनाली और उसके बेटे को मानवीय आधार पर भारत में प्रवेश दिया जा रहा है, लेकिन उन्हें निगरानी में रखा जाएगा। इसके बाद उन्हें दिल्ली भेजा जाएगा, जहाँ से औपचारिक रूप से उनकी डिपोर्टेशन प्रक्रिया पूरी की जाएगी।

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परिवार को भी वापस लाने की मांग—लेकिन बाधा अभी बरकरार
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और संजय हेगड़े ने कोर्ट से सोनाली के पति और परिवार के अन्य सदस्यों को भी भारत लाने की अपील की। इस पर केंद्र का पक्ष था कि परिवार के बाकी लोग भारतीय नागरिक नहीं हैं और इसी कारण उन्हें वापस नहीं लाया जा सकता। केंद्र ने दोहराया सिर्फ सोनाली और उसके बेटे को असाधारण मानवीय आधार पर अनुमति दी गई है।

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