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वित्त विभाग ने उड़ाई हाईकोर्ट के नियमों की धज्जियां, रिटायर्ड उइके फिर बने बॉस, वित्तीय अधिकार भी!
रायपुर। छत्तीसगढ़ के जल संसाधन विभाग में बड़ा घोटाला सामने आया है, जिससे सुशासन की सरकार पर दाग लग गया है। प्रमुख अभियंता (ENC) पद से 30 जून 2025 को रिटायर हुए इंद्रजीत उइके को महज एक हफ्ते बाद ही संविदा पर दोबारा विभाग का मुखिया बना दिया गया। 7 जुलाई को मिली इस संविदा नियुक्ति के बाद अब उन्हें वित्तीय अधिकार भी सौंप दिए गए हैं, जो वित्त विभाग और हाईकोर्ट के नियमों के सीधे खिलाफ है। इस फैसले से पूरे विभाग में भारी रोष है और अधिकारी सवाल उठा रहे हैं कि जब संविदा पर नियुक्त किसी भी अधिकारी को वित्तीय अधिकार देना प्रतिबंधित है, तो फिर ऐसा क्यों किया गया।
घटनाक्रम की शुरुआत 30 जून 2025 को हुई, जब इंद्रजीत उइके सेवानिवृत्त हुए। उसी दिन उन्होंने मुख्य अभियंता दीपक भूम्मेरकर को प्रभारी ENC बनाने का आदेश जारी कर दिया। लेकिन यह व्यवस्था सिर्फ सात दिन ही चल पाई। 7 जुलाई को जल संसाधन विभाग की अवर सचिव विद्या भारती ने मंत्रालय से आदेश जारी कर उइके को छह महीने के लिए या किसी नए इंजीनियर की पदोन्नति होने तक संविदा पर ENC नियुक्त कर दिया। उन्हें एकमुश्त वेतन मिलेगा, जिसमें कोई अतिरिक्त भत्ते शामिल नहीं होंगे।
विभागीय सूत्रों का साफ कहना है कि यह नियुक्ति नियमों को ताक पर रखकर की गई है। 7 जुलाई 2022 के एक आदेश (क्रमांक 1599/1013/31/स्था/2022) में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि संविदा अधिकारियों को न तो कार्यालय प्रमुख बनाया जा सकता है और न ही वित्तीय अधिकार दिए जा सकते हैं। यह आदेश वित्त विभाग के 2014 के निर्देशों पर आधारित था, जिन्हें हाईकोर्ट ने भी पुष्ट किया था। इसके बावजूद उइके को ये अधिकार देना नियमों का सीधा उल्लंघन माना जा रहा है। यह सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े करता है।
बात यहीं खत्म नहीं होती। सूत्रों का यह भी दावा है कि 2012 और 2014 में भी संविदा अधिकारियों को ऐसे अधिकार नहीं दिए गए थे। विभागीय अधिकारियों में इस बात को लेकर भी गुस्सा है कि उइके के पिछले कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए आलोक अग्रवाल को नियमों के खिलाफ जाकर बहाल कर पदोन्नति भी दे दी गई थी।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “जब विभाग में पहले से ही सक्षम अधिकारी मौजूद हैं, तो एक रिटायर अफसर को वापस लाने का क्या मतलब है? यह सरकार की सुशासन की छवि को गंभीर धक्का पहुंचा सकता है।” वहीं, कुछ अधिकारियों का मानना है कि इस नियुक्ति के पीछे कोई बड़ा 'खेल' या 'डील' हो सकती है।
यह पूरा मामला अब गंभीर रूप से तूल पकड़ रहा है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि सरकार को इस पर तुरंत संज्ञान लेना चाहिए और कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। पारदर्शिता के लिए यह जरूरी है कि इस नियुक्ति और वित्तीय अधिकारों के फैसले की गहराई से जांच हो। अगर नियमों का उल्लंघन हुआ है, तो जिम्मेदारों पर कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि विभाग में जनता का भरोसा बना रहे और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगे।
