छत्तीसगढ़ के वाइट टाइगर सेंटर में बड़ी चूक: कल तक स्वस्थ बाघिन जया की संदिग्ध मौत

भिलाई। छत्तीसगढ़ के भिलाई स्थित मैत्री बाग ज़ू में बड़ी और दुखद घटना सामने आई है। सफेद बाघों के संरक्षण के लिए देश भर में मशहूर इस ज़ू में मादा सफेद बाघिन जया की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई । वन विभाग के अधिकारियों ने इस मौत की पुष्टि की है। इस घटना ने ज़ू के प्रबंधन और सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

 

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 मौत पर रहस्य: कल तक ठीक थी, पेट का इन्फेक्शन बताया जा रहा कारण

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ज़ू अधिकारियों के मुताबिक, बाघिन जया कल तक पूरी तरह से स्वस्थ दिख रही थी। अचानक तबीयत बिगड़ने के बाद उसकी मौत हो गई। शुरुआती जानकारी के अनुसार, जया की मौत की वजह उसके पेट में इंफेक्शन को बताया जा रहा है। हालांकि, अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर यह भी कह रहे हैं कि असली कारण का पता पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही चलेगा। फिलहाल, जया का पोस्टमार्टम किया जा रहा है। बाघिन जया को रायपुर के नंदन वन से एक्सचेंज के तहत मैत्री बाग लाया गया था।

 

 मैत्री बाग की पहचान: 19 वाइट टाइगर दिए, अब 5 बचे

 

मैत्री बाग ज़ू को देश में सफेद बाघों के सबसे अहम केंद्र में गिना जाता है। इस ज़ू की शुरुआत 1990 में नंदन कानन से लाए गए पहले सफेद बाघ जोड़े से हुई थी। तब से लेकर अब तक यहाँ कुल 19 सफेद बाघों का जन्म हुआ है। इन 19 में से 13 बाघों को देश के छह अलग-अलग राज्यों (राजकोट, कानपुर, बोकारो, इंदौर, मुकुंदपुर और रायपुर) के ज़ू में भेजा गया है। देश में सफेद बाघों की अनुमानित संख्या करीब 160 है, जिसमें मैत्री बाग का योगदान बड़ा है। जया की मौत के बाद अब ज़ू में केवल 5 सफेद बाघ बचे हैं।

ज़ू का गणित: 12 लाख पर्यटक पर सालाना 2.5 करोड़ का घाटा

बीएसपी (भिलाई स्टील प्लांट) के प्रबंधन के तहत चलने वाले इस ज़ू की स्थापना 1972 में हुई थी। यह लगभग 140 एकड़ में फैला है और यहाँ 5 श्रेणियों के लगभग 400 वन्य प्राणी मौजूद हैं। यह परिसर टॉय ट्रेन, बोटिंग और म्यूजिकल फाउंटेन जैसी सुविधाओं से भी लैस है।हर साल करीब 12 लाख पर्यटक यहाँ घूमने आते हैं। इसके बावजूद, ज़ू की आय कम है और खर्च बहुत ज्यादा।

 सालाना खर्च: लगभग 4 करोड़ रुपये।

  •  सालाना आय (20 रुपए प्रति टिकट): केवल 1.5 करोड़ रुपये।
  •  वार्षिक घाटा: करीब 2.5 करोड़ रुपये।

जू के संचालन में कुल 50 कर्मचारी कार्यरत हैं। अब एक ओर देश के इतने महत्वपूर्ण संरक्षण केंद्र में स्वस्थ बाघिन की संदिग्ध मौत हुई है, और दूसरी ओर लगातार हो रहे नुकसान के कारण जू के निजीकरण की बातें भी चल रही हैं। यह घटना और निजीकरण की चर्चा, दोनों ही बड़े सिस्टम फेलियर की तरफ इशारा कर रहे हैं। क्या करोड़ों खर्च करने के बावजूद प्रबंधन लापरवाही बरत रहा है? क्या यह सिर्फ संयोग है या बड़ी प्रशासनिक चूक का संकेत?

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