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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का सख्त संदेश: कन्यादान नैतिक कर्तव्य, खर्च से पीछे नहीं हट सकते पिता
बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने एक अहम फैसले में कहा है कि अविवाहित बेटी की देखभाल, उसके पालन–पोषण, शिक्षा और विवाह का खर्च उठाने की जिम्मेदारी से कोई भी पिता पीछे नहीं हट सकता। अदालत ने टिप्पणी की कि ‘कन्यादान’ हिंदू पिता का केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि नैतिक दायित्व भी है। यह फैसला उस मामले में आया है, जिसमें एक शिक्षक पिता ने अपनी 25 वर्षीय अविवाहित बेटी को भरण–पोषण देने के फैमिली कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
अविवाहित बेटी की जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकता पिता – हाईकोर्ट
सूरजपुर की 25 वर्षीय युवती ने फैमिली कोर्ट में याचिका दायर कर बताया था कि मां की मृत्यु के बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली और अब वह अपनी पहली बेटी की परवरिश में कोई ध्यान नहीं दे रहा है. पिता सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं और हर महीने 44,642 रुपये वेतन प्राप्त करते हैं. बेटी ने कोर्ट से हिंदू दत्तक और भरण–पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20 और 3(बी) के तहत गुजारा भत्ता और शादी खर्च की मांग की थी.
फैमिली कोर्ट ने युवती की दलीलें सुनने के बाद 2 सितंबर 2024 को आदेश दिया था कि पिता अपनी बेटी की शादी होने तक हर महीने 2,500 रुपये भरण–पोषण के रूप में दें। इसके साथ ही विवाह खर्च के लिए 5 लाख रुपये अतिरिक्त देने का निर्देश भी दिया गया। इसी फैसले को पिता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
