मोदी की कुर्सी पॉलिटिक्स: साय से रखी दूरी, रमन को बिठाया बगल में; छत्तीसगढ़ की सियासत गरमाई 

रायपुर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन दिवसीय छत्तीसगढ़ दौरे के दौरान एक तस्वीर ने राज्य की राजनीति में भूचाल ला दिया है। यह तस्वीर है मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ मोदी के बैठने की। सियासी गलियारों में इस कुर्सी व्यवस्था को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं, मानो हर कुर्सी कोई बड़ा राजनीतिक संकेत दे रही हो।

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सोशल डिस्टेंसिंग का नया प्रोटोकॉल?

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तस्वीर में साफ दिखा कि जब प्रधानमंत्री मोदी, मुख्यमंत्री साय से मुलाकात कर रहे थे, तो दोनों के बीच काफी दूरी थी। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ऐसा लगा मानो राजनीतिक सोशल डिस्टेंसिंग का कोई नया प्रोटोकॉल जारी हुआ हो। लेकिन जैसे ही मुलाकात की बारी डॉ. रमन सिंह से आई, मोदी ने उन्हें ठीक बगल में बैठा लिया। इसे देखकर पुराने जानकार कह रहे हैं कि भई पुरानी यारी में इतनी दूरियाँ अच्छी नहीं लगतीं।

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सूत्रों की मानें तो राजनीतिक विश्लेषक इस तस्वीर के अलग-अलग मायने निकाल रहे हैं। कुछ लोग इसे मुख्यमंत्री साय की सरकार यानी साय-साय सरकार में बड़े फेरबदल का संकेत बता रहे हैं, तो वहीं कई का मानना है कि यह तस्वीर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के राजनीतिक कद में भारी इजाफे की ओर इशारा करती है।

कद कम आंकने वालों को सीधा संदेश

छत्तीसगढ़ की राजनीति में कुछ नए नेता इन दिनों डॉ. रमन सिंह के राजनीतिक प्रभाव को कम आंककर अपनी दुकानदारी चमकाने की फिराक में रहते हैं। प्रधानमंत्री मोदी की इस बैठक व्यवस्था को उन नवांकुरित नेताओं के लिए एक सीधा और कड़ा संकेत माना जा रहा है कि शेर की बगल में शेर ही बैठ सकता है।

इस पूरे मामले पर एक गोबरहीन टुरी (स्थानीय युवती) ने चुटकी लेते हुए कहा कि महाराज, साय तो राजनीति के नए हीरो हैं, फिर ये पुराना फिल्म वाला चैनल क्यों चालू हो गया? ये कैसी बात है कि नए वाले साय-साय से दूरी और पुराने वाले डॉ. साहब से इतनी करीबी? समझ में नहीं आया, ऐसा क्यों हुआ?

चलते चलते - आरटीओ बैरियर पर .....

राजनीति में कुर्सियाँ केवल बैठने के लिए नहीं होतीं, कभी-कभी बड़े संकेत देने के लिए भी होती हैं। लेकिन यह प्रधानमंत्री मोदी हैं, उनके संकेत को समझना इतना आसान नहीं। इसलिए छत्तीसगढ़ की राजनीति में आगे क्या धमाल होने वाला है, इसके लिए बस समय का इंतजार करना होगा।

इधर प्रशासनिक गलियारों में चर्चा यह भी है कि चिल्फी आरटीओ बैरियर पर लठैतों के आतंक और इंट्री के नाम पर खुलेआम हो रही वसूली पर बड़े अफसर लगाम क्यों नहीं लगा पा रहे हैं? कहीं यह चर्चा तो कोरी अफवाह नहीं है कि वसूली का यह हिस्सा बैरियर से लेकर राजधानी तक बँटता है? बहरहाल, सियासत में सब्र का अंदाज़ भी खूब मुश्किल होता है, खासकर तब जब अपनों से ही फासला रखना पड़े और उन्हीं से इश्क भी करना हो।

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