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भाजपा की रिश्तेदारी में फंसा फरार कांग्रेसी: ACB/ EOW/ED भी करे तो क्या करे
रायपुर। सियासत भी गजब चीज है! यहां दुश्मन कब दोस्त बन जाए और दोस्त कब अपने के लिए ढाल बन जाए, कहना मुश्किल है. कुछ ऐसा ही नजारा आजकल छत्तीसगढ़ की राजधानी में देखने को मिल रहा है, जहां एक फरार कांग्रेसी नेता ACB/EOW और ED की लिस्ट में होने के बावजूद भाजपा नेताओं की बाप-दादा की संपत्ति बन गया है. सूत्रों की मानें तो यह फरार नेता पिछले कई सालों से एजेंसियों की आँखों में धूल झोंक रहा है, लेकिन अब तो हद ही हो गई. भाजपा के कुछ दिग्गज ही इसे बचाने के लिए दिन-रात एक कर रहे हैं!
खबर है कि पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे की गिरफ्तारी के बाद से इस महा-कांग्रेस नेता का नाम फिर सुर्खियों में है. लेकिन 'चौंकाने वाली' बात यह है कि एजेंसियां इसकी तलाश में हैं और भाजपा के अपने ही नेता एंजेंसियों के दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं. फोन पर फोन किए जा रहे हैं, मिन्नतें की जा रही हैं कि "अरे साहब, वो तो अपने ही रिश्तेदार हैं, तबीयत भी ठीक नहीं है!" अब यह बात गले से उतर नहीं रही है कि आखिर ये रिश्तेदारी अचानक से इतनी गहरी कैसे हो गई?
मजेदार बात तो यह है कि सारे हिसाब-किताब इसी फरार नेता के पास हैं. शहर के कई लोगों को पता है कि वह किले में बैठकर अपनी छुट्टी मना रहा है, लेकिन एजेंसियां बेचारी, उन्हें तो 'ठिकाना' ही नहीं मिल रहा है. अब आप ही बताइए, जब अपने ही घर के 'भेदी' लंका ढाने पर तुले हों, तो रावण भी क्या करे!
इस पूरे मामले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. क्या यह सिर्फ 'मानवीय आधार' पर मदद है या इसके पीछे कोई बड़ा राजनीतिक खेल चल रहा है? क्या यह 'फरार' नेता भाजपा के कुछ रहस्यों का ताला है, जिसे खोलना उनके लिए मुश्किल हो जाएगा? जो भी हो, इस ड्रामे ने राजनीतिक गलियारों में खलबली मचा दी है. बेचारे ACB /EOW और ED वाले भी धर्मसंकट में हैं करें तो क्या करें? अपने ही अपनों का सामना कैसे करें? शायद इसीलिए कहते हैं, सियासत में कब कौन किसका 'अपना' बन जाए, कहना मुश्किल है! और जब अपने ही ढाल बन जाएं, तो विरोधी को हथियार उठाने की जरूरत ही क्या!
