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पति पर नपुंसकता का आरोप मानसिक क्रूरता, तलाक का वैध आधार नहीं: हाईकोर्ट
बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बिना किसी मेडिकल सबूत के पति पर नपुंसकता जैसे गंभीर आरोप लगाना मानसिक क्रूरता है और यह तलाक का वैध आधार नहीं है। यह मामला जांजगीर-चांपा के एक पति-पत्नी के तलाक से जुड़ा है। पति ने फैमिली कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने पति की याचिका मंजूर करते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि पत्नी ने पति के खिलाफ बेवजह क्रूरता और परित्याग के आरोप लगाए हैं। ऐसे में इस शादी को जारी रखना उचित नहीं है।
जांजगीर-चांपा निवासी एक शिक्षाकर्मी की शादी 2 जून 2013 को बलरामपुर की एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता से हुई थी। शादी के बाद से ही दोनों के बीच अनबन शुरू हो गई। पत्नी चाहती थी कि पति अपनी नौकरी छोड़ दे या ट्रांसफर करा ले। साल 2017 से दोनों अलग अलग रहने लगे। 7 साल बाद 2022 में पति ने तलाक के लिए फैमिली कोर्ट में अर्जी दी। फैमिली कोर्ट में सुनवाई के दौरान पत्नी ने पति पर नपुंसकता का आरोप लगाया, लेकिन उसके पास इस दावे को साबित करने के लिए कोई मेडिकल रिपोर्ट नहीं थी। दूसरी ओर पति ने कहा कि पत्नी ने उस पर एक पड़ोसी महिला के साथ अवैध संबंध का झूठा आरोप लगाया था। इस मामले को सुलझाने के लिए हुई एक सामाजिक बैठक में भी पत्नी ने अपने जीजा के साथ झगड़ा किया था।
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि बिना किसी मेडिकल प्रमाण के पति पर इस तरह का गंभीर आरोप लगाना मानसिक क्रूरता है। ऐसे आरोप न केवल पति के सम्मान को ठेस पहुंचाते हैं बल्कि उसके मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालते हैं। कोर्ट ने माना कि पत्नी द्वारा लगाए गए सभी आरोप निराधार थे। इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को गलत बताया और पति को तलाक की मंजूरी
दे दी।
