मुक्तांजलि घोटाला: क्या मंत्री पर भारी नौकरशाही?

 

रायपुर, छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ में गरीबों की लाशों का सौदा करने वाली मुक्तांजलि एंबुलेंस (1099) सेवा में कथित तौर पर 100 करोड़ रुपये से अधिक के भ्रष्टाचार का मामला गरमाता जा रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस बड़े फर्जीवाड़े की फाइल को स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने दबा दिया है, और अब अंदरखाने 5 करोड़ रुपये के बड़े लेन-देन से सेटलमेंट की चर्चाएं बाजार में गर्म हैं। यह स्थिति मुख्यमंत्री साय की सुशासन की बात पर सवाल खड़े कर रही है, जहां भ्रष्टाचारियों को कथित तौर पर "सर आंखों पर बिठाया जा रहा है"।

मामले का खुलासा होने के बाद स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने जांच के आदेश दिए थे। शुरुआती जांच स्वास्थ्य संचालक आईएएस प्रियंका शुक्ला और योजना के राज्य नोडल अधिकारी ने की, लेकिन नामित अधिकारी को क्लीनचिट दे दी गई। इसके बाद, जब फिर से फर्जीवाड़े का बड़ा मामला सामने आया, तो स्वास्थ्य मंत्री ने दोबारा जांच के आदेश दिए। हालांकि, अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है, जिससे अधिकारियों की मिलीभगत की आशंका पुख्ता होती दिख रही है।

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सूत्रों के मुताबिक, एंबुलेंस का संचालन कर रही कंपनी "कैंप" फर्जीवाड़े को लगातार अंजाम दे रही है, जिसे अधिकारियों का खुला संरक्षण प्राप्त है। इस बड़े भ्रष्टाचार के खेल में योजना के नोडल अधिकारी कमलेश जैन की शिकायत ACB, EOW और सीधे मुख्यमंत्री से की गई है। आश्चर्यजनक रूप से, जैन अभी भी अपने पद पर बने हुए हैं, जबकि वह दूसरे विभाग, मेडिकल कॉलेज के संविदा शिक्षक हैं। इस स्थिति से साफ है कि स्वास्थ्य विभाग में बैठे नौकरशाह, सुशासन की सरकार के मंत्री की भी नहीं सुन रहे हैं।

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स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने एक बार फिर कार्रवाई करने की बात कही है, लेकिन जिस तरह से इस मामले को दबाया जा रहा है, उससे यह स्पष्ट है कि इस पूरे भ्रष्टाचार में कई बड़े अफसरों का संरक्षण है। ऐसे में, यह बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या यह मामला सत्ताधारी दल के लिए गले की हड्डी न बन जाए। विशेषज्ञों का मानना है कि मुख्यमंत्री को तत्काल इस मामले की जांच सीबीआई या ईडी को सौंप देनी चाहिए ताकि इस विभाग के कारनामे खुलकर सामने आ सकें और सुशासन की साख बरकरार रहे।

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