शासन प्रशासन के नाक के नीचे मरवाही के जंगल में कोल माफियाओं का सुरंग,बेखौफ हो रही है कोयले की तस्करी –

शासन ,प्रशासन के नाक के नीचे मरवाही के जंगल में कोल माफियाओं का सुरंग,बेखौफ हो रही है कोयले की तस्करी – गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (GPM) : जिले में कोयला माफियाओं ने अवैध खनन के लिए सुरंग तैयार कर लिया है। इसे कुछ ग्रामीणों ने देखा और मीडिया को जानकारी दी। खबर मिलने पर राष्ट्रीय जगत विजन भी […]

शासन ,प्रशासन के नाक के नीचे मरवाही के जंगल में कोल माफियाओं का सुरंग,बेखौफ हो रही है कोयले की तस्करी

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (GPM) : जिले में कोयला माफियाओं ने अवैध खनन के लिए सुरंग तैयार कर लिया है। इसे कुछ ग्रामीणों ने देखा और मीडिया को जानकारी दी। खबर मिलने पर राष्ट्रीय जगत विजन भी वहां पहुंचा और देखा कि किस तरह से कोयला माफियाओं ने अलग-अलग जगह पर कुल 15 किलोमीटर की सुरंग तैयार कर रखा है। मामला मरवाही वन परिक्षेत्र अंतर्गत उषाढ़ बीट का है।   मरवाही वन मंडल इन दिनों कोयला माफियाओं के लिए स्वर्ग बना हुआ है। यहां अवैध उत्खनन कर कोयले की जमकर तस्करी की जा रही है। दरअसल ये इलाका पेंड्रा-गौरेला-मरवाही, कोरिया और मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले से जुड़ता है। अनूपपुर के आमाडांड में कोयला खदान है। आला अधिकारियों की नाक के नीचे लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर जंगलों के अंदर कई किलोमीटर की सुरंग बनाकर कोयले का अवैध कारोबार वन विभाग एवं प्रशासन की मिली भगत से पनप रहा है। माफियाओं ने जमीन के अंदर ही कई किलोमीटर तक जंगलों को खोखला कर दिया है । और मरवाही के आसपास गांवों में बड़े-बड़े कोल डिपो बनाकर कोयले का अवैध कारोबार किया जा रहा है। जिसकी भनक न तो वन विभाग को है और न तो माइनिंग विभाग को है ऐसा कहना है प्रशासन का जबकि जिले के गठन को दो साल से ज्यादा का समय बीत चुका है। इसके बावजूद इस पर शासन प्रशासन के द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया जाना हैरत पैदा कर रहा है। जब राष्ट्रीय जगत विजन के द्वारा मरवाही वनमंडलाधिकारी दिनेश पटेल से बात की गई, तो उन्होंने कहा कि मामला आपके द्वारा संज्ञान में लाया गया है, जो काफी गंभीर है। इस पर तत्काल जांच कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।       दशकों से चल रहे इस अवैध कोयला उत्खनन और तस्करी की जानकारी विभाग में बैठे उच्चाधिकारियों को न हो, ऐसा होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, क्योंकि बिना किसी मिलीभगत के इतने किलोमीटर तक जंगलों को खोद डालना संभव नहीं है। इस बारे में मरवाही विधायक डॉक्टर केके ध्रुव ने कहा कि यह गंभीर मामला है। इस मामले में जिले के अधिकारियों से बात करके इस पर तत्काल रोक लगाने का प्रयास किया जाएगा, साथ ही यदि मरवाही में कोयला मिल रहा है, तो एसईसीएल से चर्चा करके इस अवैध खदान को वैध रूप से संचालित करने की दिशा में भी प्रयास किया जा सकता है। भाजपा जिला महामंत्री राकेश चतुर्वेदी ने कोयले के कारोबार के इस अवैध उत्खनन पर जमकर निशाना साधते हुए कहा कि शासन-प्रशासन की सांठगांठ से यह कोयले का अवैध कारोबार कई सालों से बदस्तूर जारी है और लाखों-करोड़ों रुपए के गोलमाल कर अवैध खनन का यह मामला है। इस अवैध खनन को वैध करके मरवाही और इस जिले के लोगों को रोजगार भी दिया जा सकता है ।और शासन को राजस्व की भी विधिवत प्राप्ति हो सकती है। शासन प्रशासन को इस ओर गंभीरता से ध्यान देकर इसमें संलिप्त लोगों के खिलाफ सरकार को कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। स्थानीय निवासी मुकेश जायसवाल का कहना है कि यह काला कारनामा हर हाल में रोका जाना चाहिए। इसका कुछ भाग मनेंद्रगढ़ वनमंडल में भी आता है। यानी ये मध्यप्रदेश, कोरिया, मरवाही के बॉर्डर इलाके में आता है। इस तस्करी के विरोध करने पर सुरक्षा समिति के दो सगे भाईयों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।उन्होंने कहा कि मैं जिला पुलिस में टास्क फोर्स मेंबर और ग्राम सुरक्षा समिति में उपाध्यक्ष था, मैं भी सक्रिय था, मुझे भी मार दिया जाता, इसलिए मैं चुप रहा। मुकेश ने कहा कि 2005 में उन्होंने पहला पत्र सीसीएफ को इसलिए लिखा था, लेकिन कुछ नहीं हुआ।  ग्रामीण बताते हैं कि गर्मी और ठंड के समय सबसे अधिक कोयला उत्खनन किया जाता है। जंगल में सुरंगें बना दी गई हैं, जो कई किलोमीटर अंदर तक है। वहीं बरसात के समय इन सुरंगों को पत्थर डालकर बंद कर दिया जाता है और गर्मी में फिर से माफिया इनसे कोयले की तस्करी करते है। वहीं सुरंगों को धंसने से बचाने के लिए जंगलों से काटी हुई सरई या साजा की लकड़ियों को काटकर टेका बनाया गया है। सुरंग में मजदूरों के जरिए खुदाई की जाती है। यहां मजदूरों को बिना किसी सुरक्षा के उतार दिया जाता है। ये दिन रात कोयले की खुदाई करने में लगे रहते हैं, जिन्हें पर बोरी और दिहाड़ी मजदूरी के नाम पर 100 रुपए दिया जाता है। मजदूर खदान के अंदर से कोयला निकालकर बोरी में भरकर साइकिलों के जरिए डंपिंग स्थल तक पहुंचाते हैं। इसके बाद तस्कर कोयले को बड़े-बड़े वाहनों के जरिए परिवहन कर कोल डिपो में खपाते हैं। ऐसे में मजदूर हमेशा खतरों के बीच काम करते हैं और उनकी जानमाल की जवाबदेही लेने वाला कोई नहीं है

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