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हाथ में कांटा, थाली में छेद,जिसे कोसा, अब वही बनने जा रहा है डीजीपी!

राजनीति की पिच पर कब कौन चौका मार दे और कौन क्लीन बोल्ड हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। हाल ही में कांग्रेस की संविधान यात्रा के दौरान एक बंद कमरे की खुसर-पुसर सुर्खियों में आ गई। प्रभारी सचिन पायलट से एक कद्दावर नेता ने गुहार लगाई — “भाजपा एक ऐसे व्यक्ति को डीजीपी बनाने जा रही है जो कांग्रेस के लिए घातक होगा! उसे रोकिए वरना चुनाव में बहुत नुकसान होगा।
पवन चल जाएंगे लेकिन ये नहीं चलेंगे रोक लीजिए...
प्रभारी बोले — “मैं क्या कर सकता हूं भई, ऊपर बात करो।” और कमरे में अचानक मौन का साम्राज्य छा गया।
कहानी यहीं खत्म नहीं होती। मजेदार मोड़ यह है कि यही नेता कभी उसी व्यक्ति को कटघरे में खड़ा कर चुका है। आरोपों की बरसात की, मानो वे ही सच्चे राष्ट्रनायक हों और दूसरा सिर्फ साजिशों का शिकार। जांच-पड़ताल से दूध का दूध और पानी का पानी हो गया। अब वही ‘विवादित’ व्यक्ति डीजीपी बनने की दहलीज पर है — और वो भी भाजपा की सिफारिश पर।
अब कांग्रेस का वह नेता सोच में पड़ गया है — जिसे कभी दिन-रात कोसा, वही अब कुर्सी की ओर बढ़ रहा है। कहते हैं जैसी करनी वैसी भरनी। राजनीति में आज का दुश्मन कल का दोस्त और आज का आलोचक कल का अफसर बन सकता है।
कहते हैं न — सियासत में न स्थायी दुश्मन होते हैं, न स्थायी दोस्त, बस कुर्सी स्थायी हो तो बात बने!