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कर्नाटक से हुआ खुलासा मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ का

कर्नाटक से हुआ खुलासा मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ का रायपुर/कर्नाटक में कांग्रेस ने 5 साल पहले हुए गलती को स्वीकार करते हुए आगामी 5 साल में दो मुख्यमंत्री फार्मूला का खुलासा कर दिया। सीतारमैया 2 साल औऱ डी शिवकुमार 3 साल मुख्यमंत्री रहेंगे। संभवतः ये फार्मूला दो बदलाव का नतीजा दिखता है। पहला राहुल गांधी […]
कर्नाटक से हुआ खुलासा मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ का
रायपुर/कर्नाटक में कांग्रेस ने 5 साल पहले हुए गलती को स्वीकार करते हुए आगामी 5 साल में दो मुख्यमंत्री फार्मूला का खुलासा कर दिया। सीतारमैया 2 साल औऱ डी शिवकुमार 3 साल मुख्यमंत्री रहेंगे।

संभवतः ये फार्मूला दो बदलाव का नतीजा दिखता है। पहला राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा के बाद उनकी समझ का औऱ दूसरा मल्लिकार्जुन खड़गे का राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में स्वयं को स्थापित करने का। 2-3 साल के फार्मूले से एक बात और भी पुख्ता हुई कि सोनिया गांधी अकेले निर्णय वाली व्यक्ति नहीं रह गयी है अन्यथा शिवकुमार के लिए रास्ता नही खुलता।
कर्नाटक के फार्मूले से एक बात जिसका खुलासा हुआ कि कांग्रेस ने 5 साल पहले हुए 3 राज्यो राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी पार्टी में संतुलन बनाये रखने के लिए ढाई ढाई साल का फार्मूला अपनाया था। कर्नाटक की तरह यह सार्वजनिक उद्घोषणा तो नही थी लेकिन बंद कमरे की कहानी तो थी। ये भी ताकीद रही होगी कि दूसरे कार्यकाल वाले को पहला वाला सामंजस्य के साथ रखेगा औऱ दूसरा स्वस्थ मन से साथ देगा। मध्यप्रदेश में कमलनाथ , राजस्थान में अशोक गहलोत औऱ छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सत्तासीन हुए।सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया औऱ टी एस सिंहदेव सीएम इन वेटिंग थे। कमलनाथ, अशोक गहलोत औऱ भूपेश बघेल ने अपने को स्थापित करने के लिए अगले ढाई साल के मुख्यमंत्रियो की उपेक्षा का ऐसा उपक्रम किया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने तो एक ही साल में बगावत कर दी। कमलनाथ को सत्ता से वंचित होना पड़ा। अगली बगावत राजस्थान में हुई और सचिन पायलट ने बगावत की लेकिन अपेक्षित विधायक संख्याबल नही जुटा पाए न ही पार्टी छोड़ने का साहस कर पाए। तब से लेकर आज तक राजस्थान में अशोक गहलोत औऱ सचिन पायलट आमने सामने है।राजस्थान की जनता किसी भी पार्टी को दुबारा मौका नही देती है ।इस बात को ख्याल में रखकर अशोक गहलोत अपने 5 साल के कार्यकाल को ही उपलब्धि बनाने में व्यस्त है। छत्तीसगढ़ में टी एस सिंहदेव का चाल औऱ चरित्र न तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के समान है और न ही वे सचिन पायलट के समान विद्रोही तेवर वाले है। सिंहदेव आलाकमान के भरोसे बैठे रहे। छत्तीसगढ़ में वे कभी विधानसभा छोड़ते रहे तो कभी मंत्रालय छोड़ते रहे। कांग्रेस न छोड़ने की बात करते रहे तो विपक्ष के आमंत्रण की बात भी कहते रहे। एक कदम आगे – दो कदम पीछे की चाल ने उनको पूरा ही “बाबा” बना दिया। अधूरी इक्छा शक्ति और पाव भर सामर्थ्य के चलते राजनीति में कभी भी आगे नही बढ़ा जा सकता है।
कर्नाटक से कांग्रेस में जाहिर घोषणा परंपरा की शुभ शुरुवात हुई है इसका श्रेय मल्लिकार्जुन खड़गे राहुल गांधी सहित शिव कुमार को जाना चाहिए लेकिन मध्यप्रदेश में जो नुकसान हुआ, राजस्थान में जो नुकसान हो रहा है और छतीसगढ़ में जो होगा उसका क्या?