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देरी क्यों हुई? हाईकोर्ट की सख्ती के बाद 9 साल पुराना मामला बंद, DGP ने 6 SI का इंक्रीमेंट रोका
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की कड़ी फटकार के बाद पुलिस महानिदेशक (DGP) अरुण देव गौतम ने अंबिकापुर के एक 9 साल पुराने आपराधिक मामले की जांच में अत्यधिक देरी पर बड़ी कार्रवाई की है। DGP ने खुद हाईकोर्ट में व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल किया, जिसके 24 घंटे के अंदर ही साक्ष्य के अभाव में इस मामले को बंद करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। देरी के लिए जिम्मेदार 6 सब इंस्पेक्टरों (SI) की एक साल की वेतन वृद्धि (इंक्रीमेंट) रोकने के साथ, तत्कालीन Dy. SP पर भी निराशा (Displeasure) का दंड लगाया गया है।
9 साल तक चला 'जिंदा' मामला, DGP के हलफनामे के बाद 24 घंटे में खात्मा
मामला याचिकाकर्ता लखनलाल वर्मा के खिलाफ अंबिकापुर थाना में वर्ष 2016 में धारा 384, 502, 504, 34 भादवि के तहत दर्ज हुआ था। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में शिकायत की थी कि उनके दो सह-आरोपी विचारण न्यायालय से बरी हो चुके हैं, फिर भी पुलिस अनावश्यक रूप से जांच को लंबित रखे हुए है। कोर्ट ने 6 नवंबर 2025 को आदेश पारित कर DGP अरुण देव गौतम को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर देरी की वजह बताने और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की जानकारी देने को कहा था।
DGP अरुण देव गौतम ने कोर्ट को बताया कि निर्देश मिलने के तुरंत बाद पुलिस मुख्यालय ने जांच के आदेश दिए। लापरवाही के लिए तत्कालीन उप पुलिस अधीक्षक मणीशंकर चंद्रा समेत 7 अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी हुआ। नोटिस का संतोषजनक जवाब न मिलने पर तत्कालीन 6 उपनिरीक्षकों नरेश चौहान, विनय सिंह, मनीष सिंह परिहार, प्रियेश जॉन, नरेश साहू और वंश नारायण शर्मा की एक वर्ष की असंचयी वेतन वृद्धि रोक दी गई है। वहीं, तत्कालीन Dy. SP मणीशंकर चंद्रा के विरुद्ध 'निराशा' का दंड यथावत रखा गया है।
DGP ने न्यायालय को आश्वस्त किया कि आदेश का पूरी तरह पालन हुआ है। उन्होंने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता लखनलाल वर्मा के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलने के कारण मामले में अब धारा 169 सीआरपीसी के तहत अंतिम रिपोर्ट (क्लोजर रिपोर्ट) विचारण न्यायालय में पेश की जा रही है।
यह शायद छत्तीसगढ़ पुलिस का अद्भुत' रिकॉर्ड है कि जिस मामले में 9 साल तक कोई साक्ष्य नहीं मिला, उस पर हाईकोर्ट के व्यक्तिगत पेश होने के आदेश का चाबुक चलते ही 24 घंटे के अंदर खात्मा हो गया। बिना साक्ष्य के इतने साल तक एक पत्रकार को गिरफ्तार करने की कोशिश करना भी सवाल खड़े करता है। जाहिर है, न्यायपालिका की सख्ती के बिना सालों तक फाइलों की धूल झाड़ना पुलिस की पुरानी आदत है।
