रेत घाट पर चली गोली, भाजपा विधायक के करीबी का गुर्गा घायल; हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना, क्षेत्र में अवैध खनन बेलगाम

कोटा के लमेर घाट पर वारदात, पुलिस की दुर्घटना थ्योरी पर सवाल; अवैध खनन और राजनीतिक संरक्षण के बीच हाईकोर्ट का आदेश भी बेअसर

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बिलासपुर। कोटा थाना क्षेत्र के लमेर रेत घाट पर सोमवार (5 मई 2025) शाम हुई गोलीबारी से हड़कंप मच गया। इस वारदात में सत्ताधारी भाजपा विधायक के एक करीबी के लिए काम करने वाले एक गुर्गे, गिरजाशंकर यादव उर्फ दीपक यादव के पैर में गोली लगी है। उन्हें गंभीर हालत में बिलासपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। इस घटना ने एक बार फिर रेत घाटों पर अवैध कब्जे, राजनीतिक संरक्षण और कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, वहीं हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद अवैध रेत खनन के बेलगाम होने की पोल भी खोल दी है।

बताया जा रहा है कि जिस लमेर घाट पर यह घटना हुई, उस पर भाजपा विधायक के एक करीबी का अवैध राज चलता है। सूत्रों के अनुसार, गोली चलाने वाला छबि यादव और घायल गिरजाशंकर, दोनों ही उस करीबी के लिए घाट पर 'वसूली' का काम करते थे। आरोप है कि सत्ता बदलने के साथ ही प्रभावशाली लोगों का रेत घाटों पर कब्जा हो जाता है, क्योंकि यह रातोंरात कमाई का बड़ा जरिया बन गया है। वर्तमान में इस विधायक के करीबी का सेंदरी, निरतू, घुटकू, लमेर, कोटा, बेलगहना, तखतपुर जैसे कई घाटों पर कब्जा बताया जाता है, जहां हथियारबंद गुर्गे अवैध वसूली करते हैं।

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, सोमवार शाम गिरजाशंकर, छबि और दीपक रजक समेत कई लोग घाट पर मौजूद थे। किसी बात को लेकर उनके बीच विवाद शुरू हुआ, जो इतना बढ़ा कि छबि यादव के हाथ में मौजूद पिस्तौल से चली गोली सीधे गिरजाशंकर के पैर में जा लगी।

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हालांकि, कोटा पुलिस की कहानी अलग है। पुलिस का कहना है कि गिरजाशंकर यादव ने पूछताछ में बताया कि छबि यादव उन्हें पिस्तौल दिखा रहा था, जिसे वे नकली समझ रहे थे। इसी दौरान गलती से ट्रिगर दब गया और गोली चल गई। पुलिस ने छबि की निशानदेही पर पिस्तौल बरामद कर ली है और जांच जारी है कि पिस्तौल कहां से आई। पुलिस इसे 'दुर्घटनावश फायर' बता रही है और किसी आपसी विवाद या रंजिश से इनकार कर रही है।

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लेकिन, इस घटना ने अवैध रेत खनन के गोरखधंधे की पोल खोल दी है, जहां हाईकोर्ट के आदेशों की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि अवैध रेत उत्खनन करने वालों पर पुलिस सीधे कार्यवाही कर सकती है, लेकिन यह आदेश बेअसर साबित हो रहा है। सवाल उठता है कि आखिर क्यों पुलिस और माइनिंग विभाग इन अवैध खनन माफियाओं के खिलाफ कार्यवाही नहीं कर रहे हैं? क्या खनन माफियाओं और इन विभागों के बीच कोई तालमेल है? 

स्थानीय लोग इसे सुशासन पर सवालिया निशान खड़ा कर रहे है। यह भी आरोप है कि मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की स्वच्छ छवि को उन्हीं की पार्टी के कुछ लोग इस तरह के कार्यों से बदनाम कर रहे हैं। इस पर माइनिंग और पुलिस की चुप्पी संदेह पैदा करती है।

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