ईडी का 12पन्नों के रिमांड पत्र 25रूपये प्रति टन मामले का किंग पिन सूर्यकांत तिवारी, कैसे बने और कैसे होती थी 25 रूपये की वसूली प्रति टन यह भी बताया है …… पढ़ें पूरी समाचार

ईडी का 12पन्नों के रिमांड पत्र 25रूपये प्रति टन मामले का किंग पिन सूर्यकांत तिवारी, कैसे बने और कैसे होती थी 25 रूपये की वसूली प्रति टन यह भी बताया है …… पढ़ें पूरी समाचार रायपुर : प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी कि कोयला घोटाले आने 25 रूपए प्रति टन की अवैध वसूली मामले में कार्रवाई […]

ईडी का 12पन्नों के रिमांड पत्र 25रूपये प्रति टन मामले का किंग पिन सूर्यकांत तिवारी, कैसे बने और कैसे होती थी 25 रूपये की वसूली प्रति टन यह भी बताया है …… पढ़ें पूरी समाचार

रायपुर : प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी कि कोयला घोटाले आने 25 रूपए प्रति टन की अवैध वसूली मामले में कार्रवाई जारी है । ईडी को इस मामले में आईएएस समीर विश्नोई समेत तीन अभियुक्तों की रिमांड 8 दिनों के लिए मिल गई है। ईडी की इस पूरी कार्यवाही आयकर विभाग के छापे से मिले अभिलेखों पर आधारित है । ईडी गिरफ्तार आई ए एस समीर बिश्नोई जो कि वर्तमान में चिप्स के प्रभारी हैं ।और पूर्व में माइनिंग के डायरेक्टर और खनिज निगम के एमडी थे ,उन्हें लेकर यह बताती है कि, उन्होंने 15 जुलाई 2020 और 10 अगस्त 2020 को दो अलग अलग अधिक सूचनाओं के जरिए सभी खनिजों के परिवहन की ऑनलाइन प्रक्रिया को बदलकर उसे मैनुअल कर दिया गया था। जिससे भ्रष्टाचार के इस भानुमती का पिटारा खुलने का रास्ता साफ हो गया था।

16 महीने में 500 करोड़ की उगाही के साथ ईडी ने कोर्ट में क्या कहा है

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प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा पेश किए गए रिमांड पत्र में आई ए एस समीर बिश्नोई की भूमिका को लेकर जो लिखा है, उसका ब्यौरा तो दिया है कि कैसे उनके जरिए भ्रष्टाचार को आकार दिया गया यह उल्लेख भी किया गया है कि 16 महीने में 500 करोड़ की उगाही इस 25 रूपए प्रति टन के जरिए की गई । जो ब्योरा कोर्ट में दिया गया है वह इस तरह से है :

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“पी एम एल ए ” के अंतर्गत की गई जांच से यह पता चला है, कि कोल के परिवहन द्वारा अवैध रूपयों की उगाही के घोटाले की शुरुआत तब हुई जब जियोलॉजी और खनिज विभाग ने दिनांक 15 जुलाई 2020 को विभाग के तत्कालीन संचालक समीर बिश्नोई के हस्ताक्षर से अधिसूचना जारी की गई ।जांच से पता चला कि समीर ने अन्य शासकीय अधिकारियों के साथ मिलकर एक ऐसी रूपरेखा तैयार की जिससे पहले से मौजूद ऑनलाइन प्रक्रिया बाधित हो सके उस पर उल्लेखित अधिसूचना और उसके बाद दिनांक 10 अगस्त 2020 को समीर विश्नोई द्वारा जारी अधिसूचना में किसी भी प्रकार के परिवहन के तरीके से उपभोक्ताओं तक प्रेषित होने वाले सभी खनिजों की मैनुअल स्वीकृति अनिवार्य कर दी गई। इस निर्देश द्वारा समीर बिश्नोई के ने ऑनलाइन परिवहन अनुज्ञा पत्र के अधिक पारदर्शी प्रक्रिया को बदलते हुए खनिज मालिक और ट्रांसपोर्टर के लिए डीएम कार्यालय के खनिज विभाग से मैन्युअल एनओसी लेना अनिवार्य कर दिया ।इससे भ्रष्टाचार का भानुमती का पिटारा खुल गया ।सूर्यकांत तिवारी के नेतृत्व में नगद वही करने वालों का बड़ा तंत्र तैयार किया गया जो 8 क्षेत्रों में फैला हुआ था। जिसका कोयला के परिवहन अनुज्ञा पत्र एनओसी की अवैध उगाही एकत्रण के लिए डीएम कार्यालय कार्यालयों से सीधी भागीदारी थी ।जब तक की रिश्वत की रकम दी नहीं जाती थी ,और यह बात इस गिरोह के द्वारा डीएम कार्यालय को सूचित नहीं की जाती थी तब तक एन ओ सी नहीं दिया जाता था। परिणाम स्वरूप छत्तीसगढ़ राज्य परिवहन होने वाले प्रति टन कोयले में 25 रूपए की उगाही एकत्रित की गई । आई टी विभाग के पास उपलब्ध कागजात और उनके द्वारा साझा किया गया प्रतिवेदन से पता चलता है कि 16 महीने की अवधि में 500 करोड़ से ज्यादा की रिश्वत उगाही एकत्रित की गई ।यह राशि व्यापारियों और राजनेताओं और आईएएस तथा अन्य राज्य अधिकारियों के बीच वितरित की गई । समीर बिश्नोई के प्रत्यक्ष कृत्य द्वारा यह पूरा घोटाला संभव हुआ है ।और इसी क्षण से अवैध वसूली को आसान और संस्थागत बना दिया गया है।

ईडी ने सूर्यकांत तिवारी को किंगपिन बताया और सहयोग करने वाले प्रभावशाली अधिकारियों के नाम भी लिखें

ईडी ने रिमांड पत्र में सूर्यकांत तिवारी को पूरे कोयला घोटाला का किंगपिन बताया है । सूर्यकांत तिवारी के साथियों का नाम गिरोह के रूप में उल्लेखित है। ईडी के रिमांड पत्र में सूर्यकांत तिवारी गिरोह शब्द का प्रयोग किया गया है। ईडी ने रिमांड पत्र में 3 आईएएस इनमें से एक महिला आईएएस का जिक्र है ।और सुबे में राज्य प्रशासनिक सेवा की बेहद प्रभावशाली महिला अधिकारी सौम्या चौरसिया का नाम सहित जिक्र करते हुए लिखा है कि, उन्होंने सूर्यकांत तिवारी का साथ दिया है । ईडी ने आयकर विभाग से मिले अभिलेखों और डिजिटल साक्ष्यों का जिक्र करते हुए कोर्ट को या भी कहा है कि इस तरह से हासिल रकम का इस्तेमाल सरकारी सेवकों (अधिकारियों) और राजनेताओं को देने में खर्च किया गया है इसके कुछ हिस्से का इस्तेमाल चुनाव खर्च में भी किया गया है ।शेष रकम का बड़ा हिस्सा लेनदेन के माध्यम से एक नंबर याने काले धन को सफेद बनाने के लिए प्रॉपर्टी और कोल वाशरी में निवेश किया गया है ।

यह 25 रूपए प्रति टन ट्रांसपोर्टर कैसे और किसे देते थे

जबकि ईडी का रिमांड पत्र बचाव पक्ष के वकील से मांगे जाने पर कोर्ट ने दिया और वहां से यह सर्वजनिक हुआ। हमने यह समझने की कोशिश की है, कि आखिर कोयला का यह काला खेल को कैसे अंजाम दिया जाता था । यह 25 रूपए प्रति टन का मसला है,जो सुबे में करीब डेढ़ सालों से गूंज रहा है। आखिर वह होता कैसे था ।हमने कुछ कोल ट्रांसपोर्टरों से बात की जिन्होंने स्वाभाविक तौर पर नाम सार्वजनिक करने से साफ मना कर दिया लेकिन नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर राष्ट्रीय जगत विजन ब्यूरो को बताया ।

मूलतः प्रक्रिया है कि कोयला ट्रांसपोर्टर को जब भी कोयला लेना होता है तो वह ऑनलाइन टेंडर डालता है । यह टेंडर एम एस टी और कोलजंक्शन के जरिए ऑनलाइन होता है । ई एम डी याने बतौर गारंटी प्रति टन 500 रूपए की अमानत राशि जमा होने के बाद डिओ जारी होता है । डीओ सीएमडी बिलासपुर से उस खदान से संबंधित जीएम और एक कॉपी नीलामी हासिल करने वाले को जाती है।डीओ फिर जी एम ऑफिस से उस खदान के कांटा घर पहुंचता था जहां से कोयला उठाना होता है। जिस तारीक को डीओ खदान पहूंचता है उसके 45 दिन के भीतर कोयला उठाना होता है। यदि 45 दिन के भीतर कोयला नहीं उठाया गया तो जमानत के रूप में दी गई राशि एसईसीएल जप्त कर लेता है ।ऑनलाइन ही पीट पास जारी होता था । लेकिन करीब डेढ़ बरस पहले यह प्रक्रिया बदल दी गई थी। इसकी शुरुआत इस तरह से हुई कि कोयला लेकर जैसे ही ट्रक निकलते थे ,राज्य सरकार का खनिज अमला या अन्य विभाग के लोग लोड ट्रक को रोक लेते थे ।कई तरह की आपत्तियों के बीच एक आपत्ति यह होती थी कि ट्रक में लोड कोयले की गुणवत्ता डीओ से अलग है । इसका लैब परीक्षण कराएंगे इसके बाद ही ट्रक आगे जाएगी । इस फेर में समय गुजरता था और 45 दिनों में कोयला नहीं उठने और जमानत राशि जब्त होने का नुकसान सर के ऊपर मंडराता था । इस तकलीफ से बचने के लिए जो व्यवस्था सामने आई वह थी 25 रूपए प्रति टन के हिसाब से शुल्क का भुगतान करना ‌ ट्रांसपोर्टर को बता दिया जाता था कि 25 रूपए टन के हिसाब से राशि कहां जमा करनी है । व्यापारी डिओ लेकर जाता था और उस संबंधित संबंधित जगह पर पैसा जमा करता था तब उस डिओ पर विशिष्ट निशान बनाया जाता था । निशान लगा डिओ जीएम कार्यालय पहुंचता था और फिर वहां से खदान के कांटा घर । याने इस 25 रूपए टन का कोई लिखित रसीद अभिलेख हासिल नहीं होता था । होता था तो केवल डीओ पर एक चिन्ह बना हुआ होता था ।

चर्चा है कि खेल इससे आगे भी हुआ

कोयले के इस खेल में 25 रूपए प्रति टन के व्यवस्था के संचालक बेहद प्रभावी थे । इस कदर प्रभावी की कोई भी कुछ प्रतिरोध करने के बजाय चुपचाप व्यवस्था में सहयोग देने लगा । लेकिन मसला इससे आगे का यह भी है ,कि छत्तीसगढ़ के कोयला हाब याने रायगढ़ ,कोरबा में चर्चाओं में यह बहुत ज्यादा था चर्चाएं हैं कि बेहद बड़ा खेल लिंकेज के कोयला में हुआ । लिंकेज का कोयला उसे कहते हैं, जिसमें उद्योगों को कम कीमत पर कोयला मिलता है। इन चर्चाओं को विश्वसनीय तौर पर बताया जाता है, लेकिन इसका आधार हासिल नहीं हुआ चर्चाएं हैं, कि लिंकेज के इस कोयले को खरीद लिया जाता था। और उसे छत्तीसगढ़ में ही बाजार कीमत पर खफा दिया जाता था । चर्चा महाराष्ट्र के किसी व्यक्ति की भी होती है जिसके एक लाख टन केडीओ को छीन लिया गया और उसे डी ओ के लिए लगाई गई राशि देकर बलपूर्वक चलता कर दिया । गया इसी मसले को लेकर या दावा किया जाता है ,कि इस एक लाख टन कोयले को खपाने के लिए मैनुअल एंट्री हुई हालांकि इस दावे या की गई चर्चा की पुष्टि अभी तक नहीं हुई है । आगे भी बहुत बड़ा इसमें खुलासा होने की संभावना है।

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