आखिर कांग्रेस अध्यक्ष पद से दूर क्यों भाग रहे हैं मुख्यमंत्री मंत्री?

आखिर कांग्रेस अध्यक्ष पद से दूर क्यों भाग रहे हैं मुख्यमंत्री मंत्री? दिल्ली : कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद इन दिनों म्यूजिकल चेयर बन गया है। कांग्रेस अध्यक्ष का पद कांग्रेस नेताओं के इर्द गिर्द घूम रहा हैं। मगर सभी नेता अध्यक्ष बनने से इनकार कर रहे है। कांग्रेस पार्टी के हर बड़े नेता […]

आखिर कांग्रेस अध्यक्ष पद से दूर क्यों भाग रहे हैं मुख्यमंत्री मंत्री?

दिल्ली : कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद इन दिनों म्यूजिकल चेयर बन गया है। कांग्रेस अध्यक्ष का पद कांग्रेस नेताओं के इर्द गिर्द घूम रहा हैं। मगर सभी नेता अध्यक्ष बनने से इनकार कर रहे है। कांग्रेस पार्टी के हर बड़े नेता चाहते हैं कि राहुल गांधी ही एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें। मगर राहुल गांधी अध्यक्ष बनने से लगातार इंकार कर रहे हैं। उन्होंने पार्टी नेताओं को साफ शब्दों में कह दिया है कि वह किसी भी सूरत में कांग्रेस अध्यक्ष बनना नहीं चाहते हैं। वह बिना पद के ही पार्टी का काम करना चाहते हैं।

राहुल गांधी के इंकार के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, पार्टी महासचिव मुकुल वासनिक, वर्किंग कमेटी की सदस्य कुमारी शैलजा सहित कई नेताओं के नाम अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल हो गए हैं। मगर कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी चाहती हैं कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अध्यक्ष का पद संभालें। अशोक गहलोत कांग्रेस पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता हैं। वह इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ काम कर चुके हैं। ऐसे में वह सब के साथ तालमेल बिठाकर काम कर सकते हैं।

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जैसे ही कांग्रेसी हलकों में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए अशोक गहलोत का नाम आगे आया वैसे ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अध्यक्ष बनने से इंकार कर दिया। गहलोत का कहना है कि राहुल गांधी ही अध्यक्ष के रूप में पार्टी को मजबूत कर सकते हैं। उनका कहना है कि अध्यक्ष के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने के लिए कई कार्य प्रारंभ किए थे। जिसका लाभ आने वाले समय में कांग्रेस को मिलेगा। गहलोत राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने के लिए 250 से अधिक बड़े नेताओं से समर्थन लेकर राहुल गांधी को मनाने का प्रयास कर रहे हैं।

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गहलोत का कहना है कि मुझे राजस्थान की जिम्मेवारी मिली हुई है। जहां मेरा कार्यकाल बाकी है। अभी मैं राजस्थान की जनता की सेवा करना चाहता हूं। गहलोत का कहना है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री के साथ ही गुजरात में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव के लिए उन्हें सोनिया गांधी ने वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। ऐसे में वह अपनी दोनों जिम्मेदारियों का सफलतापूर्वक निर्वहन कर रहे हैं। उनका प्रयास है कि गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बाहर कर कांग्रेस की सरकार बनाएं। अभी वह इसी मिशन में लगे हुए हैं। ऐसे में कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद संभालना उनके लिए अनुकूल नहीं है।

यह सभी को पता है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत वर्तमान में कांग्रेस पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता हैं। वे इंदिरा गांधी, राजीव गांधी व नरसिम्हा राव की सरकार में मंत्री रह चुके हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महासचिव, सेवा दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ ही गहलोत तीन बार राजस्थान कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष, राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता और तीसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में काम कर रहे हैं। राजस्थान में अशोक गहलोत कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे हैं। बहुमत नहीं मिलने पर भी जोड़-तोड़ कर वह दूसरी बार सरकार बनाकर सफलतापूर्वक चला रहे हैं, ऐसे में वह किसी भी स्थिति में मुख्यमंत्री का पद नहीं छोड़ना चाहते हैं।

गहलोत को पता है कि यदि वह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर जयपुर से दिल्ली जाते हैं तो उनके स्थान पर कांग्रेस आलाकमान उनके कट्टर विरोधी सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बना सकता है। जो गहलोत किसी भी स्थिति में नहीं होने देना चाहते हैं। अशोक गहलोत व सचिन पायलट के बीच छत्तीस का आंकड़ा किसी से छुपा हुआ नहीं है। दोनों नेता एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते रहते है। कांग्रेस आलाकमान द्वारा अपने स्तर पर दोनों नेताओं के मध्य सुलह करवाने के उपरांत भी दोनों नेताओं के मन अभी तक नहीं मिल पाए हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नहीं चाहेंगे कि उनके बाद पायलट राजस्थान में मजबूत होकर अपने पैर जमा सकें।


गहलोत को पता है कि राजस्थान की राजनीति व दिल्ली की राजनीति में बड़ा फर्क है। राजस्थान की राजनीति को तो वह वर्षों से अपनी अंगुली पर नचा रहे हैं। मगर दिल्ली जाने के बाद ऐसा कर पाना संभव नहीं होगा। उनको पता है कि यदि वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन भी जाते हैं तो पार्टी तो गांधी परिवार के नियंत्रण में रहेगी। ऐसे में वह मात्र कठपुतली बनकर रह जाएंगे। ऊपर से राजस्थान भी उनके हाथ से निकल जाएगा।

अगले कुछ महीनों में गुजरात, हिमाचल प्रदेश की विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। उसके बाद अगले साल कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभाओं के चुनाव होंगे। यदि विधानसभाओं के चुनावी नतीजे कांग्रेस पार्टी के मनमाफिक नहीं रहते हैं तो पूरी जिम्मेदारी उनकी मानी जाएगी। तब असफलता का ठीकरा उनके सर ही फूटेगा। गहलोत किसी भी सूरत में ऐसा नहीं होने देना चाहते हैं। इसीलिए वह दिल्ली जाने के लिए आनाकानी कर रहे हैं।

कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी की अपनी-अपनी वफादारों की मंडली है। जिन की सलाह पर यह नेता काम करते हैं। यदि गहलोत दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में इन वफादार नेताओं की बातों को अनसुना करते हैं तो उन्हें उनकी साजिशों का शिकार होना पड़ेगा। और उनका दिल्ली की राजनीति में टिके रहना मुश्किल हो जाएगा। अभी गहलोत राजस्थान में जैसा चाहते हैं वैसा ही पार्टी करती है। राजस्थान के अधिकांश मंत्री व विधायक उनके ही वफादार हैं। राजनीतिक नियुक्तियों में भी ज्यादातर गहलोत समर्थकों को पदों से नवाजा गया है।

पिछले दिनों राजस्थान से राज्यसभा की तीन सीट के चुनाव हुये थे। जिनमें गहलोत ने कांग्रेस आलाकमान की पसंद को तवज्जो देते हुये तीनों ही बाहरी लोगों को चुनाव जीता कर भेजा था। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक, रणदीप सिंह सुरजेवाला व प्रमोद तिवारी राजस्थान से राज्यसभा सांसद हैं। यह सभी दिल्ली की राजनीति में भारी-भरकम नेता माने जाते हैं तथा दिल्ली में गहलोत की खुलकर पैरवी करते हैं। दिल्ली में अपनी मजबूत लॉबी के बल पर ही गहलोत पायलट को हासिये पर लगा पाये हैं।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पांच बार लोकसभा, पांच बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। गहलोत 1980 में पहली बार लोकसभा सदस्य बने थे और उसी दौरान 1982 में इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में उप मंत्री बनाए गए थे। उसके बाद राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने पर भी गहलोत केंद्र सरकार में राज्य मंत्री बने थे। पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में भी गहलोत को राज्यमंत्री बनाया गया था। इस तरह उनको तीन प्रधानमंत्रियों के मंत्रिमंडल में काम करने का अनुभव है। वहीं संगठन की दृष्टि से भी गहलोत इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव, सीताराम केसरी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ काम कर चुके है। कांग्रेस में अभी उनसे पुराने नेता तो हो सकते हैं मगर उनसे वरिष्ठ नेता शायद ही कोई हो, जिसने इतने पदों का निर्वहन करते हुये सफलतापूर्वक इतनी लंबी राजनीतिक पारी खेली हो।

गहलोत को पता है कि राजनीति में हमेशा बहार नहीं रहती है। उदय के साथ अस्त भी होता है। इसीलिये वह चाहते हैं कि राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में अपना तीसरा कार्यकाल पूरा करें और यदि अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को प्रदेश में सफलता मिलती है तो वह फिर से मुख्यमंत्री ही बनें ना कि कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष। क्योंकि कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद आगे के सभी विकल्प बंद हो जाते हैं। इस बात का उन्हें बखूबी ज्ञान है। इसीलिए गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से इंकार कर रहे हैं।

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