ईडी बनाम ईओडब्ल्यू की चर्चा जोरों पर…..ईओडब्ल्यू…..अज्ञात अफसरों पर एफआईआर की कहानी समझ से परे…..???

ईडी बनाम ईओडब्ल्यू की चर्चा जोरों पर…..ईओडब्ल्यू…..अज्ञात अफसरों पर एफआईआर की कहानी समझ से परे…..??? नई दिल्ली/रायपुर : छत्तीसगढ़ में आज भी महादेव सट्टा एप की चर्चा जोरों पर बनी हुई है।नई सरकार की नई जांच की चर्चा आज पूरे देश और  प्रदेश मे हो रही है। जिस मुद्दे को भाजपा ने पूरे चुनाव में […]


ईडी बनाम ईओडब्ल्यू की चर्चा जोरों पर…..ईओडब्ल्यू…..अज्ञात अफसरों पर एफआईआर की कहानी समझ से परे…..???

नई दिल्ली/रायपुर : छत्तीसगढ़ में आज भी महादेव सट्टा एप की चर्चा जोरों पर बनी हुई है।नई सरकार की नई जांच की चर्चा आज पूरे देश और  प्रदेश मे हो रही है। जिस मुद्दे को भाजपा ने पूरे चुनाव में बड़े जोरो  सोर से उठाया था आज उसकी जांच की अलग अलग कहानियां देखने को मिल रही है। विधानसभा चुनाव में मोदी जी का गारंटी और बड़ा बयान भी था कि महादेव एप वाले सभी जेल के अंदर जाएंगे। पर आज जांच की पूरी कहानी को ही बदलने का काम साय सरकार में नजर आ रहा है।आज देश की बड़ी जांच एजेंसी को छत्तीसगढ़ की  एसीबी और ईओडब्ल्यू जांच एजेंसी टक्कर देने के मूड में है। जिस मामले के उठने से भूपेश बघेल की सत्ता उखड़ गई आज वही मुद्दा दो जांच एजेंसी की अलग अलग सोच व कार्यप्रणाली को दर्शा रहा है।

महादेव ऐप मामले में अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और रायपुर पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) आमने-सामने हैं। 4 मार्च को ईओडब्ल्यू रायपुर ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, महादेव ऐप के प्रमोटर सौरभ चंद्राकर और रवि उप्पल और 18 अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया।आरोपों में धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश और विश्वास का उल्लंघन जैसे गंभीर अपराध शामिल हैं। यह कार्रवाई ईडी द्वारा राज्य पुलिस को भेजे गए एक संदर्भ पत्र पर आधारित थी। इसमें केंद्रीय एजेंसी ने अपनी जांच के निष्कर्षों को साझा किया और बघेल और कई नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश की।

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हालाँकि, ईओडब्ल्यू ने कथित तौर पर जाने-माने नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों का नाम लेने से परहेज किया। इसमें केवल अज्ञात सिविल सेवकों, पुलिस अधिकारियों और विशेष कर्तव्य पर एक अधिकारी का उल्लेख था। एफआईआर न केवल लोकसभा चुनाव से पहले बघेल के लिए परेशानी खड़ी करती है, बल्कि ईओडब्ल्यू पर भी सवाल उठाती है, क्योंकि फिलहाल उसका ईडी के साथ टकराव चल रहा है।इस अज्ञात लेखनी का विषय अपने आप मे कई सवाल उठाता है।आखिर जिस मामले पर देश की इतनी बडी जांच एजेंसी न्यायालय में सारे तथ्य पेश करके अपनी जांच की वस्तुस्थिति बता रही है उस जांच रिपोर्ट को राज्य की जांच एजेंसी ईओडब्ल्यू का नही मानना लोगो को समझ मे नही आ रहा है।आखिर इतने बडे मामले में क्या दोनो जांच एजेंसी आमने सामने आ रहे है।

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अपने बयान में, राज्य खुफिया ब्यूरो में एक सहायक उप-निरीक्षक, वर्मा ने कहा कि चंद्राकर और उप्पल ने अपने अवैध कारोबार के खिलाफ कार्रवाई को रोकने के लिए कई शीर्ष-रैंकिंग पुलिस अधिकारियों, प्रशासनिक अधिकारियों और राजनेताओं को संरक्षण राशि का भुगतान किया। वर्मा ने कथित तौर पर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों तक पहुंचने के लिए हवाला नेटवर्क में धन के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान की।उन्होंने शीर्ष नौकरशाहों के साथ पैसों के आदान-प्रदान का विवरण भी दिया और यह रायपुर पीएमएलए अदालत में ईडी द्वारा दायर अभियोजन शिकायत का हिस्सा है। वर्मा के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में शीर्ष अधिकारियों को नवंबर-दिसंबर 2021 से जून 2023 तक हर महीने पैसा मिला।

छत्तीसगढ़ में अतिरिक्त एसपी (इंटेलिजेंस) और रायपुर के अतिरिक्त एसपी अभिषेक महेश्वरी को कथित तौर पर ऐप प्रमोटरों से प्रति माह 35 लाख रुपये मिलते थे। इसके अतिरिक्त, चंद्राकर और उप्पल ने माहेश्वरी को रामायण एन्क्लेव, कामदिया शंकर नगर, रायपुर में एक फ्लैट खरीदने के लिए वित्त पोषित किया। अजय यादव, आईपीएस, जो इंटेलिजेंस आईजी थे, को कथित तौर पर प्रति माह 20 लाख रुपये मिलते थे। वह वर्तमान में पुलिस मुख्यालय (पीएचक्यू), नवा रायपुर में आईजीपी के रूप में तैनात हैं। आईपीएस प्रशांत अग्रवाल, जो एसएसपी रायपुर और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो और ईओडब्ल्यू के प्रमुख थे, को कथित तौर पर प्रति माह 20 लाख रुपये मिलते थे। वह अब बस्तर क्षेत्र के पुलिस उप महानिरीक्षक (सीएएफ) के पद पर तैनात हैं।संजय ध्रुव, जो दुर्ग के अतिरिक्त एसपी थे, को कथित तौर पर प्रति माह 25 लाख रुपये मिलते थे। वे वर्तमान में सहायक महानिरीक्षक, पुलिस मुख्यालय, रायपुर के पद पर पदस्थ हैं। एसएसपी दुर्ग और रायपुर को प्रति माह 10 लाख रुपये मिलते थे। सूत्रों से पता चला है कि 2005 बैच के आईपीएस अधिकारी आरिफ शेख और 2001 बैच के अधिकारी आनंद छाबड़ा को भी कथित तौर पर पैसे मिले थे.
अपने बयान में, वर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ प्रशासनिक सेवा के एक सिविल सेवक सौम्या चौरसिया, जो सरकार में उप सचिव के रूप में कार्यरत थे और वर्तमान में 150 करोड़ रुपये से अधिक के अवैध खनन मामले से जुड़े पीएमएलए मामले में जेल में हैं, को कथित तौर पर 1 करोड़ रुपये प्राप्त हुए थे। महादेव प्रमोटर्स से प्रति माह।

इस मामले को लेकर भाजपा के विधायक मूणत ने भी विधानसभा में यह मुद्दा उठाया था।कि अफसरों को बचाने का काम किया जा रहा है।जिस पर प्रदेश के गृहमंत्री विजय शर्मा ने अपनी ओर से यह बात भी कही थी कि हमारी सरकार में किसी भी दोषी अफसर को बख्शा नही जाएगा।पंर मंत्री जी आपकी सरकार में ईओडब्ल्यू ने ईडी के आवेदन पर एफआईआर में अफसरों के नाम की जगह अज्ञात किस लिए लिख दिया।आपको इस विषय पर मनन करना चाहिए।आप ने विधानसभा में क्या कहा और आपकी जांच एजेंसी क्या कर रही है।आखिर दोनो बाते अलग साबित हो रही है।

पूर्व मुख्यमंत्री के ओएसडी सूरज कुमार कश्यप को कथित तौर पर 35 लाख रुपये का एकमुश्त भुगतान प्राप्त हुआ। पूर्व मुख्यमंत्री के पूर्व राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा को कथित तौर पर 5 करोड़ रुपये मिले थे. इन शीर्ष अधिकारियों के अलावा, 40 से अधिक अन्य वरिष्ठ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी कथित तौर पर महादेव सिंडिकेट में शामिल थे।
ईडी के संदर्भ पत्र में खुद को लाभ पहुंचाने और अवैध संपत्ति बनाने के लिए पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा आधिकारिक पदों के दुरुपयोग पर प्रकाश डाला गया। हालाँकि, ईओडब्ल्यू ने इन अधिकारियों का नाम लेने से परहेज किया और इसके बजाय केवल अज्ञात नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों का उल्लेख किया।

सूत्रों के अनुसार विधानसभा चुनाव के समय इस मामले में शामिल आईपीएस भाजपा के नेताओ को अपनी ओर से अच्छा सहयोग भी देकर आये थे। दिल्ली दरबार में भी यह बात पहुँच गयी है।सूत्रों के अनुसार अब यह मामला काफी गम्भीर होता जा रहा है। आखिरकार इस मामले में साय सरकार के किस मंत्री के आदेश पर यह सब काम ईओडब्ल्यू कर रही है।या फिर ईओडब्ल्यू स्वयं ही अपने आपको सुपीरियर बताने में लग गयी है।ऐसे बहुत से सवाल अब उठने लगे है।लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश के मंत्रिमंडल में बहुत बड़े बदलाव का मुख्य कारण महादेव सट्टा एप भी हो सकता है

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