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क्रमोन्नत वेतनमान: 1000 से ज्यादा शिक्षकों की याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित
बिलासपुर। क्रमोन्नत वेतनमान की मांग को लेकर एक हजार से अधिक शिक्षकों द्वारा दायर याचिकाओं पर बिलासपुर हाई कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है। याचिकाओं की बड़ी संख्या के कारण हाई कोर्ट के इतिहास में यह दूसरी बार था जब एक ही मुद्दे पर इतनी ज्यादा याचिकाएं दायर की गईं। कोर्ट ने अब इस महत्वपूर्ण मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
शिक्षिका सोना साहू के फैसले के बाद मची हलचल
इस पूरे मामले की शुरुआत शिक्षिका सोना साहू को क्रमोन्नत वेतनमान देने के हाई कोर्ट के आदेश के बाद हुई थी, जिससे शिक्षा जगत में बड़ी हलचल मच गई थी। सोना साहू की याचिका पर आए हाई कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए एक हजार से ज्यादा शिक्षकों ने क्रमोन्नत वेतनमान की मांग करते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो चुकी है सरकार की याचिका
याचिकाकर्ता शिक्षकों के वकीलों ने अदालत को जानकारी दी कि राज्य सरकार ने सोना साहू मामले में हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी है। हालांकि, वकीलों ने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह लिखा है कि कानून का सवाल अभी खुला है और इस पर फैसला होना बाकी है।
हाई कोर्ट ने उठाए अहम सवाल
मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता शिक्षकों के वकीलों से अहम सवाल पूछे। कोर्ट ने पूछा कि जिस आदेश के आधार पर क्रमोन्नति दी गई थी, वह पंचायत विभाग के शिक्षकों के लिए था, तो शिक्षा विभाग में विलय के बाद उसे लागू करने का क्या आधार है?
कोर्ट ने यह भी पूछा कि सोना साहू की याचिका पर हाई कोर्ट का फैसला अन्य याचिकाओं पर क्यों प्रभावी हो? साथ ही, कोर्ट ने स्पष्टीकरण मांगा कि क्रमोन्नति का लाभ नियुक्ति की तारीख से मिलेगा या विलय की तारीख के बाद?
राज्य शासन और वकीलों के तर्क
- राज्य शासन का तर्क: राज्य शासन की ओर से पैरवी कर रहे वकीलों ने तर्क दिया कि 2017 का परिपत्र केवल नियमित सरकारी शिक्षकों पर लागू था। याचिकाकर्ता शिक्षक 2018 में संविलियन के बाद सरकारी कर्मचारी बने। इसलिए, उनकी सेवा अवधि की गणना पंचायत सेवा के प्रारंभिक वर्ष से नहीं, बल्कि संविलियन वाले वर्ष से की जानी चाहिए।
- मिसाल से इनकार: सरकार ने यह भी तर्क दिया कि सोना साहू मामले की परिस्थितियां वर्तमान याचिकाओं से पूरी तरह अलग हैं, इसलिए इसे इन मामलों में मिसाल (नजीर) के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
- पिछली सेवा की गणना: सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए सरकार ने तर्क दिया कि नियम के अनुसार, पिछली सेवा की गणना तभी की जा सकती है जब विलय से पहले की सेवा नियमित या सरकारी सेवा में हो।
