432 करोड़ शराब घोटाला: सुप्रीम कोर्ट से आबकारी अधिकारियों को बड़ी राहत, ट्रायल तक गिरफ्तारी पर रोक 

नई दिल्ली/बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के 432 करोड़ रुपए के कथित शराब घोटाले में फंसे आबकारी विभाग के राजपत्रित अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। शीर्ष अदालत ने इन अधिकारियों की गिरफ्तारी पर लगाई गई अंतरिम रोक को ट्रायल की अवधि तक स्थायी कर दिया है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने 12 नवंबर 2025 को यह आदेश सुनाया। हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह राहत सशर्त है और अधिकारियों पर कड़े प्रतिबंध लागू किए गए हैं ताकि वे जांच और साक्ष्यों को प्रभावित न कर सकें। यह मामला फरवरी 2019 से जून 2022 के बीच हुए संगठित सिंडिकेट द्वारा अवैध शराब बिक्री और डुप्लीकेट होलोग्राम लगाने से जुड़ा है, जिसमें सहायक और उप आबकारी आयुक्त जैसे उच्च पदों के याचिकाकर्ता आरोपी हैं।

कड़ी शर्तों के साथ मिली सुरक्षा 

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ताओं ने पिछली अंतरिम सुरक्षा की शर्त के अनुसार ट्रायल कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया है और जमानत बॉन्ड भी भर दिए हैं। राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता श्री महेश जेठमलानी ने तर्क दिया कि चूंकि याचिकाकर्ता उच्च पदों पर हैं, इसलिए गवाहों और साक्ष्यों को प्रभावित होने से रोकने के लिए कड़ी शर्तें लगाना आवश्यक है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने निम्नलिखित सख्त प्रतिबंध लगाए:

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  • याचिकाकर्ताओं को दो सप्ताह के भीतर अपने पासपोर्ट ट्रायल कोर्ट में जमा करने होंगे।
  •  वे ट्रायल कोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना छत्तीसगढ़ राज्य से बाहर नहीं जा पाएंगे।
  •  वे गवाहों को प्रभावित करने या सबूतों से छेड़छाड़ करने का कोई प्रयास नहीं करेंगे।
  • वे जांच अधिकारी के समक्ष जब भी बुलाया जाए, उपस्थित होंगे और सहयोग करेंगे।

 

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कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि यदि वे ट्रायल कोर्ट में अनुपस्थित रहते हैं तो इसे जमानत की शर्तों का दुरुपयोग माना जाएगा। कोर्ट ने इस संबंध में सभी लंबित विशेष अनुमति याचिकाएँ निस्तारित कर दी हैं। मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर 2025 को तय की गई है।

सरकारी बचाव पर उठे गंभीर सवाल

सूत्रों के अनुसार, इस पूरे मामले में छत्तीसगढ़ सरकार की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। यह बात सामने आई है कि राज्य सरकार ने न तो अंतरिम जमानत पर और न ही रेगुलर जमानत पर इन अधिकारियों की जमानत का पुरजोर विरोध किया। यहां तक कि एसीबी ने भी चालान पेश करते समय इन अधिकारियों की गिरफ्तारी न करते हुए यह कहा था कि उनकी गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं है।

राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज है कि इन अधिकारियों को सरकार ही बचा रही है। विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्तीसगढ़ में गारंटी दी थी कि भ्रष्टाचारी चाहे कोई भी हो, वह जेल की सलाखों में होगा और सजा मिलकर रहेगी। अब इस मामले में सरकार के ढीले रवैये को देखते हुए विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि मोदी जी की गारंटी छत्तीसगढ़ में जुमला साबित हो रही है और वर्तमान राज्य सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने वादे को पूरी तरह से फेल करने में लगी हुई है।

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